Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ द्विपृष्ट चरित्रं . सान्वय भाषांतर // 9 // // 9 // GANESHWECAUSE अन्ववः-अद्य विध्यशक्तिना चिरात् सख्यं साधु दर्शितं, यत मे जीवितव्यं असौ गुणमंजरी याचिता. // 26 // अर्थः-आजे विंध्यशक्तिए घणे काळे मित्राइ तो सारी देखाडी ! केमके मारां जीवनसरखी आ गुणमंजरीनी तेणे मागणी करी . खमुखेनैव यद्येतदणिष्यत्स मे पुरः / अदास्यमुत्तरं तस्य स्वकृपाणमुखेन तत् // 27 // अन्वयः-यदि सः मे पुरः स्व मुखेन एच एतत् अभणिष्यत्, तत् तस्य स्व कृपाण मुखेन उत्तरं अदास्थ. // 27 // अर्थः-कदाच तेणे मारीपासे पाताना मुखथीज आ हकीकत कही होत, तो तेने मारी तलवारनी अणीथीज उत्तर आपत. क्रोधाग्निर्वर्धमानो मे धक्ष्यति त्वामपि ध्रुवम् / तत्तूर्णं गच्छ मा यच्छ दूतदारणदुयेशः // 28 // अन्वयः-मे वर्धमानः क्रोध अग्निः खां अपि ध्रुवं धक्ष्यति, तत् तूर्णं गच्छ! दूत दारण दुर्यशः मा यच्छ ? // 28 // अर्थः-मारो वृद्धि पामतो क्रोधरूपी अग्नि तने पण खरेखर बाळी नाखशे, माटे तुं तुरत चाल्यो जा? अने दुतने मारीनाखवानो अपजश मने नही आप? // 28 // इति कोपिनि भूपेऽसौ वण्ठैः कण्ठे धृतः पुमान् / अपमानात्समधिकं गत्वाख्यद्विन्ध्यशक्तये // 29 // अन्वयः-इति भूपे कोपिनि वैठैः कंठे धृतः असौ पुमान्, गत्वा अपमानात् समधिकं विंध्यशक्तये आख्यत् // 29 // अर्थः-एरीते ते राजा कोपा मान थवाथी लुच्चा नोकरोए गर्छ पकडीने (कहाडी मेलेला) ते दूते (त्यांथी) निकळीने ते अपमानथी पण अधिक वर्णन ते विध्यशक्तिराजाने कही संभळाव्यं. // 29 // ESO COSAS P.P.AC.Gunratnasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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