Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram
Author(s): Vardhamansuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 8
________________ द्विपृष्ट - चरित्र // 7 // RECRUAE अन्वयः-(हे) स्वामिन् ! नरेंद्र वृंद वंद्यः असि, तत् कया :अपि शक्त्या, सात् मणि इव, तस्मात् तां ग्रहीतुं उद्यतः भव? | सान्वय अर्थः-हे स्वामी! आप तो राजाओना समूहोने नमवालायक छो, माटे कोइ पण शक्तिथी सर्पपासेथी मणिनीपेठे तेनीपासेथी | भाषांतर तेणीने लेवाने प्रयत्नवान थाओ? // 19 // इति श्रुत्वाथ हृष्टेन तं सन्मान्य महीभुजा / दौत्याय प्रहितो मन्त्री सभान्तः पर्वतं जगौ // 20 // // 7 // ___ अन्वयः-अथ इति श्रुत्वा हृऐन महीभुजा तं सन्मान्य दौत्याय प्रहितः मंत्री सभांतः पर्वतं जगौ. // 20 // अर्थः-पछी एम सांभळीने खुशी थयेला ते विध्यशक्तिराजाए तेनो सत्कार करीने, ते (स्त्री मेळववानी) विष्टिमाटे मोकलेलो मंत्री सभानी अंदर बेठेला ते पर्वतराजाने कहेवा लाग्यो के, // 20 // कालकूटममित्राणां मित्राणां तु सुधारसः / विन्ध्यशक्तिब्रवीति त्वां मन्मुखेन सखा तव // 21 // ___ अन्वयः-अमित्राणां कालकूटं, मित्राणां तु सुधा रसः, तव सखा विध्यशक्तिः मन्मुखेन त्वां ब्रवीति. // 21 // अर्थः-शत्रुओने झेरसमान, तथा मित्रोने अमृतरससमान तमारा मित्र विध्यशक्तिराजा मारां मुखथी तमोने कहेवरावे छे के, यस्ते वैरी स मे वैरी यः सुहृन्मे स ते सुहृत् / या ते श्रोः सा ममापि श्रीर्या मे भूः सा तवापि भूः अन्वयः-यः ते वैरी, स मे वैरी, यः मे सुहृत्, स ते सुहृत्, या ते श्रीः, सा मम अपि श्रीः, या मे भूः, सा तव अपि भूः | अर्थ:-जे तमारो शत्र, ते मारो पण शत्रु, जे मारो मित्र, ते तमारो पण मित्र, जे तमारी लक्ष्मी, ते मारी पण लक्ष्मी, अने || PPA G MS Jun Gun Andris

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