Book Title: Dvipushta Vasudev Charitram Author(s): Vardhamansuri Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 7
________________ द्विपृष्ट का निर्दम्भतत्परीरम्भसंभवत्पुलका मुदम् / तदलंकारसाराधिष्टानदेव्योऽपि बिभ्रति // 16 // सान्वय चरित्रं ___ अन्वयः-निर्दभ तत् परीरंभ संभवत् पुलकाः, तत् अलंकार सार अधिष्ठान देव्यः अपि मुदं विभ्रति. // 16 // भाषांतर अर्थ:-कपटरहित एवां तेणीना आलिंगनथी रोमांचित थयेली, तेणीना मनोहर आभूषणोनी अधिष्टायिका देवीओ पण आनंद पामे छे. // 16 // तयैव कान्तया देव त्वत्तः पर्वतकोऽधिकः / श्रिया सैन्येन रूपायैर्गुणैस्तु त्वं ततोऽधिकः // 17 // अन्वयः-(हे) देव ! तपा कांतया एव पर्वतकः त्वत्तः अधिकः, तु श्रिया सैन्येन रूप आयैः गुणैः त्वं ततः अधिकः // 17 // || अर्थ. हे स्वामी! ते स्त्रीथीज ते पर्वतराजा तमाराथी चडीयातो छे, परंतु लक्ष्मी, सैन्य, अने रूप आदिक गुगोवडे तो तम तेनाथी चडीयाता छो. // 17 // तयातीव भवान्भाति भवतातीव भाति सा / पृथग्भावेन भवतोर्न श्रीरिन्दुनिशोरिव // 18 // __अन्वयः-तया भवान् अतीव भाति, सा भवता अतीव भाति, इन्दु निशोः इव भवतोः पृथग्भावेन श्रोः न. // 18 // अर्थ. तेणीथी तमो अत्यंत शोभो एम छो, अने ते तमाराथी अत्यंत शोभे एम छे, परंतु चंद्र अने रात्रिनीपेठे तमो बन्नेवच्चेनी (ज्यांसुधी) जूदाइ छे, (त्यांसुधो) शोभा थाय तेम नथी. // 18 // नरेन्द्रवृन्दवन्द्योऽसि स्वामिन् शक्त्या कयापि तत् / सर्पादिव मणिं तस्मात्तां ग्रहीतुं भवोद्यतः // 19 // ||2|| CAREER -9640S P.P.AC.Gunratnasur M.S. un G A TPage Navigation
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