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द्रव्य संग्रह बर्ष
उपयोग दो प्रकार का है-१-दर्शनोपयोग, २-झानोपयोग । उनमें दर्शनोपयोग चार प्रकार का होता है--चक्षुदर्शनोपयोग, २-अचक्षुदर्शनोपयोग, ३-अधिदर्शनोपयोग और ४-केबलदर्शनोपयोग।
प्र०-उपयोग किसे कहते हैं ? ३०-चैतन्यानुविधायी आत्मा के परिणाम को उपयोग कहत हैं। प्र०-उपयोग का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
उ.-उप याने समीप या निकट । योग का अर्थ है सम्बन्ध । जिसका आत्मा से निकट सम्बन्ध है उसे उपयोग कहते हैं। शानदर्शन का भारमा से निकट सम्बन्ध है । अतः इन दोनों को उपयोग कहते हैं।
प्र०-दर्शनोपयोग किसे कहते हैं ?
उल-जो वस्तु के सामान्य अंश को ग्रहण करे उसे दर्शनोपयोग कहते हैं।
प्र०-जानोपयोग किसे कहते हैं ? जल-जो वस्तु के विशेष अंश को ग्रहण करे उसे शानोपयोग कहते
प्र०-चक्षुदर्शनोपयोग किसे कहते हैं ?
उ०-इन्द्रिय से उत्पन्न होने वाले ज्ञान के पहले जो वस्तु का सामान्य प्रतिभास होता है, उसे चक्षुदर्शनोपयोग कहते हैं।
प्र०-अचक्षुदर्शनोपयोग किसे कहते हैं ?
३०-चक्षु इन्द्रिय को छोड़कर शेष स्पर्शन, रसना, प्राण और कर्ण सया मन से होने वाले शान के पहले जो वस्तु का सामान्य आभास होता है उसे अचक्षुदर्शन कहते हैं।
प्र०-अवधिदर्शन किसे कहते हैं ।
२०-अवषिजान के पहले जो वस्तु का सामान्य आभास होता है उसे अवधिवर्शन कहते हैं।
प्र-केवलदर्शन किसे कहते हैं ?
उ० केवलज्ञान के साथ होने वाले वस्तु के सामान्य आभास को केवलदान कहते है।