Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 77
________________ : EX द्रव्य संग्रह प्र० - सिद्धालय में सिद्धों का आकार बताइये । उ०- सिद्ध परमेष्ठी का आकार पुरुषाकार है। वे लोकान में अपने अंतिम शरीर से किञ्चित् न्यून आकार के रूप में रहते हैं । प्र० - सिद्ध परमेष्ठी की प्रतिमा केसी होती है ? उ०- सिद्ध परमेष्ठी की प्रतिमा अष्टप्रातिहार्य रहित तथा चिह्न रहित होती है। प्र० - अरहन्त परमेष्ठों की प्रतिमा कैसी होती है ? उ०- नासाग्र दृष्टि, वीतराग मुद्रा अष्टप्रातिहार्य, यक्ष-यक्षिणी और चिह्नादि परिकर सहित प्रतिमा मरहन्त परमेष्ठी को होती है । प्र० - सिद्धालय में अनन्त सिद्ध एक साथ कैसे सिर्फ ४५ लाख योजन का है ) क्या वे एक दूसरे से हैं ? रहते हैं ? ( वह बाधित नहीं होते उ०- यद्यपि सिद्धक्षेत्र ४५ लाख योजन का है फिर भी वह अनन्तानन्स सिद्ध परमेष्ठी रहते हैं । यह 'अवगाहन' गुण को विशेषता है। शुद्ध आरमा अमूर्तिक है अतः सभी सिद्ध अमूर्तिक होने से परस्पर बाबा को प्राप्त नहीं होते हैं । प्र०- उदाहरण देकर समझाइये। उ०- जैसे— एक कमरे में एक हजार पावर का लट्टू ( बल्ब) का काश फैल रहा है उसी में उसी पावर के सौ-दो सौ और भी बल्ब लगा दीजिए। सबका प्रकाश, प्रकाश में समाता जाता है। कोई किसी को बाधा नहीं पहुंचाता है ठीक उसी प्रकार सिद्धालय में चैतन्य बल्ब रूप आत्माओं का ज्ञान प्रकाश, अनन्त आत्माओं का एक साथ विस्तारित होकर रहता है, किसी को बाधा नहीं होती है। आचार्य परमेष्ठी का स्वरूप सण गाणपहाणे, बोरियचारितवरतवायारे । 1 अप्पं परं च जुज, सो बाइरिओ सुणी होओ ।। ५२ ॥ अन्ययार्थ ( जो ) जो ( मुणी ) मुनि । ( दंसणणाणपहाणे ) दर्शन और मान की प्रधानता सहित। ( वीरियचा रित्तवरतवायारे) कोर्य, चारित्र तथा श्रेष्ठ तपाचार में। (अप्पं ) अपने को । (च ) और ( परं) दूसरों को

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