Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 80
________________ ७४ द्रव्य संग्रह प्र०-मोक्षमार्ग कौन-सा है ? उभ-निश्चय से सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र मोक्षमार्ग है। प्र० साधु कौन कहलाते हैं ? उ-जो रत्नत्रय को साधना शुद्ध रोति से करते हैं वे साधु परमेष्ठो कहलाते हैं। ध्येय, ध्याता, ध्यान का स्वरूप जं किंधिधि वितंतो णिरोहवित्ती हवे जवा साहू। लखूणय एयत्तं तदाहु तं तस्स पिच्चर्य झाणे ॥५५॥ अमाया ( अदा ) जिस समय! ( साह ) साधु । (एयत्तं ) एकाग्रता को। (लद्धणय ) प्राप्त कर । ( जं) जिस । ( किंचिवि) किसी भी ध्यान करने योग्य बनाको । (मिमी) विचार करता आ (चिरोहवित्तो) इच्छारहित हो जाता है । ( तदा) उस समय । (छ) निश्चय से (सं) यह । (तस्स ) उसका । ( णिच्चयं ) निश्चय से 1 (माण ) ध्यान । (हवे ) होता है। जिस समय साधु विषय-कषायों को त्याग कर अरहन्तादि किसी भो ध्यानयोग्य वस्तु का ध्यान करता था, इच्छारहित होता है । (आत्मचिन्तन में लीन हो जाता है। उस समय उसके निश्चय से ध्यान होता है। प्रा-साधु के निश्चय ध्यान कब होता है ? उप-अब साधु विषयकषायों से विमुख होकर अरहन्तादि का ध्यान करता हुआ आएम-चिन्तन में लीन हो जाता है तब उसके निश्चय ध्यान होता है। प्र-निश्चय ध्यान किसे कहते हैं? उ०-पर से भिन्न स्व आत्मा में लोनता निश्चय ध्यान है । प्र०-ध्यान करने वाला क्या कहलाता है? उ०-ध्याता' कहलाता है। प्र-जिसका ध्यान किया जाता है उन्हें क्या कहते हैं ? उस-'ध्येय' कहते हैं।

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