Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 81
________________ द्रव्य संग्रह प्र०चित की एकाग्रता को क्या कहते है ? उ०- 'ध्यान' कहते हैं । प्र० ध्यान का फल क्या है ? उ०- निराकुल सुख को प्राप्ति ध्यान का फल है । परम ध्यान का लक्षण मा चिट्टह मा जंपह मा चितह किवि जेण होइ थिरो । अप्पा अप्पम्मि रओ इणमेव परं हवे शाणं ॥ ५६ ॥ अन्वयार्थ 15, मा ( किवि ) कुछ भी । ( मा चिगृह ) शरीर से चेष्टा न करो । अंह ) मुंह से न बोलो। ( मा चितह) मन से न सोचो। ( ग ) जिससे (अप्पा) आत्मा । ( अप्यस्मि आत्मा में (थिरो ) स्थिर । ( होइ ) होकर । ( रओ) लवलीन हो । इणमेव ) यही । उत्कृष्ट । ( झाणं ) ध्यान | ( हवे ) है | ) ( परं ) अर्थ शरीर से चेष्टा न करो। मुँह से कुछ भी न बोलो। मन से कुछ भी मत सोचो जिससे मात्मा, आत्मा में स्थिर होकर लवलीन हो यही उत्कृष्ट ध्यान है । प्र० - ध्यान परम कौन-सा है ? उ०- मानसिक, वाचनिक और कायिक व्यापार को छोड़कर आरमा का आश्मा में लीन हो जाना परम ध्यान है । प्र०- परम ध्यान की सिद्धि कैसे होती है ? उ०- वीतरागी, निर्ग्रन्य, दिगम्बर मुनिराज को ही परम धान को सिद्धि होती है । ध्यान के उपाय तवसुदवदयं चेवा झाणरहधुरंधरो हवे जम्हा तम्हा ततियणिरदा तल्लद्धीए सवा होई ॥५७॥ अन्वयार्थ ( जम्हा ) क्योंकि । ( तयसुवदनं) तप, श्रुत और व्रत को धारण करने वाला । ( वेदा ) आत्मा । ( माणरहधुरंधरो ) ध्यानरूपी रथ की घुरा को धारण करने में समर्थ | ( हवे ) होता है । ( तम्हा ) इसलिए ।

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