Book Title: Dravyasangrah Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 1
________________ मुनि नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव : एक परिचय रा० फूलचन जैन प्रेमी अध्यक्ष जैनदर्शन विभाग सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी जैन साहित्य के इतिहास में नेमिचन्द्र नाम के अनेक लेखकों का उल्लेख मिलता है। गोम्मटसार, त्रिलोकसार आदि शौरसेनी प्राकृत ग्रन्थों के सुप्रसिद्ध रचयिता आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ( दसवीं पाती ई.) को ही अधिकांश लोग द्रव्यसंग्रह का कर्ता मानते हैं, किन्तु कुछ विद्वानों के महत्त्वपूर्ण अनुसंधान ने दोनों लेखकों की भिन्नताएं स्पष्ट कर दी हैं । उनके अनुसार द्रव्यसंग्रह के रचयिता आचार्य नेमिचन्द्र सिमान्तबक्रवर्ती नहीं, अपितु मुनि नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव (ईसा की ११वीं शती का अन्तिमपाद और विक्रम की १२वीं शती का पूर्वार्ध) हैं। यह द्रव्यसंग्रह की अन्तिम गाथा और इसके संस्कृत वृत्तिकार ब्रह्मदेव (विक्रम सं० ११७५) के प्रारम्भिक कयन से भी स्पष्ट है । इसके अतिरिक्त यन्धकार के विषय में अन्य जानकारी उपलब्ध नहीं होती। ब्रह्मदेव के अनुसार धारा नरेश भोजदेव के राज्यान्तर्गत वर्तमान ( कोटा राजस्थान ) के समीप कोशोरायपाटन जिसे प्राचीन काल में आश्रम कहते थे, में द्रव्यसंग्रह की रचना मनिसुव्रत के मन्दिर में बैठकर नेमिचन्द्र सिवान्तिदेव ने की। उस समय यहाँ का शासक श्रीपाल मण्डलेश्वर या। राणा हम्मीर के समय केशोरायपाटन का नाम 'आनमपत्तन' था। ब्राह्मदेव ने अपनी वृत्ति के प्रारम्भिक वक्तव्य में यह भी स्पष्ट किया है कि श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव ने प्रारम्भ में मात्र २६ गाथाओं में इसकी रचना 'लघु-द्रव्यसंग्रह' नाम से की थी, बाद में विशेष तत्त्वज्ञान के लिए उन्होंने इस ( ५८ गाथाओं से युक्त ) "बृहद्-द्रव्यसंग्रह" की रचना की। इन दोनों रूपों में वर्तमान में यह ग्रन्थ उपलब्ध भी होता है। द्रव्यसंग्रह अथवा बहद द्रव्यसंग्रह को ब्रह्मदेव ने इसे शुद्ध और अशद्ध स्वरूपों का निश्चय और व्यवहार नयों से कथन करने वाला अध्यात्मशास्त्र कहा है। शौरसेनी प्राकृत को ५८ गापाओं वाले प्रस्तुत अनुपम लघु ग्रन्थ में छह द्रव्य, सात तत्व, पांच अस्तिफाय, नौ पदार्थ तथाPage Navigation
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