Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 4
________________ दो शब्द तत्त्व बोध एक मौलिक विधा है जो हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है । आज का मानब विज्ञान, राजनीति आदि बड़े-बड़े रहस्यों को जानता है, किन्तु दर्शन, धर्म और तत्त्व- ज्ञान का जहाँ तक प्रश्न है वह सर्वथा कोरा है । दार्शनिक तत्वों की जानकारी न होने के कारण सुख व शान्ति की उपलब्धि उनको नहीं हो पा रही है। जिस लक्ष्य को हम प्राप्त करना पर रहे, वह नहीं हो रहा है। इस दृष्टि को पाकर आचार्यों ने का रहस्य हम सबको बताया। आज की नयी पीढ़ी विशेषकर नये-नये आकर्षक साहित्य पढ़ने में विवान है । परम पू० अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी, विदुषी आर्यिका बाल ब्रह्मवारिणी सोम्यमूर्ति १०५ स्याद्वादमती माता जी ने आधुनिक समय को देखते हुए प्रश्नोत्तर रूप में 'द्रव्य संग्रह' नामक ग्रन्थ की हिन्दी में टीका की, आज माँग थी। इस प्रकार के कृति की जो पू० माता जी ने आचार्यश्री विमलसागर जी महाराज की प्रेरणा से तथा ज्ञानदिवाकर आचार्य श्री भरतसागर जी महाराज के मार्गदर्शन में तैयार की। साहित्य समाज का दर्पण है, व्यक्ति गतिशील है तथा नयी-नयी खोज में विश्वास करता है । द्रव्य संग्रह नामक ग्रन्थ में जीवादि छह द्रव्यों का वर्णन अत्यन्त स्पष्टता से किया गया है। वर्णन संक्षिप्त होने पर भी पूर्ण और गम्भीर है। इसमें तीन अधिकार और ५८ गाथाएँ हैं। आशा है सभी जिज्ञासु पाठकगण एवं विद्यार्थी वर्ग इसे प्रश्नोत्तर रूप में हृदयंगम करके छह द्रव्यों के स्वरूप को सरलता से समझने का प्रयास करेंगे। जैनाचार्यों ने श्रावकों के लिये दान एवं पूजा- ये दो कर्तव्य मुख्य रूप से बताये हैं । जिसमें ज्ञान-दान का अपना विशेष महत्त्व है। ० धर्मचन्द शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य, ज्योतिषाचार्य

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