Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 33
________________ द्रव्य संग्रह प्र० - धर्मद्रव्य जोव और पुद्गल के लिए कौन-सा निमित्त है ? उ०- धर्मद्रव्य जीव और पुद्गल में गमन में सहकारी उदासीन निमित्त है क्योंकि यह जबरन किसी को चलाता नहीं। हाँ कोई चलता है तो सहायक होता है । प्र० - धर्मद्रव्य कहाँ पाया जाता है ? उ०- सम्पूर्ण लोकाकाश में धर्म द्रव्य पाया जाता है। धर्म द्रव्य कोसहायता बिना जोब पुद्गल का चलना-फिरना, एक स्थान से दूसरे स्थानजाना आदि सारी किंवाऐं नहीं बन सकती हैं। अधर्मद्रव्य का स्वरूप ठाणजुवाण अधम्मो, पुग्गलजीवाण ठाणसहयारी । छाया जह पहिराणं गच्छंता शेव सो घरई ॥ १८ ॥ मम्वयार्थ... 1 २७. (जह ) जैसे। (छाया) छाया । ( ठाणजुदाण ) ठहरते हुए - ( पहियाणं ) राहगीरों को ( ठाणसहवारी) ठहरने में सहायक होतो है । (तह) उसी प्रकार ( पुद्गलजोवाण ) पुद्गल और [ जोवों को ठहरने में सहायक ] ( अधम्मो ) अधमं द्रव्य होता है। ( सो) वह अधमें-द्रव्य है । ( गच्छंता ) चलते हुए पुद्गल और जोड़ों को । ( णेव ) नहीं । ( धरई ) ठहराता है । अर्थ जैसे छाया ठहरते हुए राहगीरों को ठहरने में सहायता पहुँचाता हैं, उसी प्रकार अधर्म द्रव्य ठहरे हुए जोव पुद्गल को ठहरने में सहायता पहुँचाता है। वह अधर्म द्रव्य चलते हुए जोय और पुद्गल को ठहाता नहीं है । प्र० - अधमं द्रव्य जोव पुद्गलों के ठहराने में कौन-सा निमित्त है ? उ०- उदासोन निमित्त है क्योंकि जैसे छाया किसी को जबरन नहो ठहराती, उसी तरह अधर्म द्रव्य भी किसो को जबरन नहीं ठहराता । प्र-धमं द्रव्य और अधर्म द्रव्य दोनों कहां रहते हैं ? उ०- समस्त लोकाकाश में रहते हैं ।

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