Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 60
________________ द्रव्य संग्रह पुण्य और पाप का निरूपण सुहअसुहभावजुत्ता,पुणं पावं हवंति खलु जोषा । सावं सुहाज णाम, गोदं पुण्णं पराणि पाय च ॥३८ सावयार्थ ( सुहअसुहभावजुत्ता) शुभ और अशुभ भाव से युक्त । ( जोषा) जीव । (खल ) निश्चय से (गणं ) गा मा पाप रूप । (हवंति ) होते हैं। । सादं ) सातावेदनोय। ( सुहाउ ) शुभ आयु । (णामं ) शुभ नाम । ( गोद ) उच्च गोत्र । ( पुष्णं ) पुष्य रूप है । ( च ) और । ( पराणि) असातावेदनीय, अशुभ नाम कर्म, अशुभायु और नीच गोत्र । ( पावं ) पास रूप हैं। शुभ भाव युक्त जीव पुण्यरूप तथा अशुभ भाव युक्त जोष पापल्प होते हैं। सातावेदनीय, शुभमआयु, शुभनाम और उच्धगोत्र-ये पुण्यस्य कर्म हैं और दूसरे असातावेदनीय, अशुभ आयु, अशुभ नाम और नीच गोत्र पापरूप हैं। प्र०-पुण्य कितने प्रकार का है? उ०-पुण्य दो प्रकार का है-भावपुण्य और द्रव्यपुण्य । प्र०-पाप कितने प्रकार का है ? ३०-पाप भी दो प्रकार का है-भावपाप और द्रव्यपाप । प्र०-भावपुण्य और द्रव्यपुण्य का स्वरूप बताओ। २०-शुभ भावों को धारण करने वाले जोव भावपुण्य कहलाते हैं. तथा कर्मों की प्रशस्त प्रकृतियों को द्रव्यपुण्य कहते हैं। प्र-शुभभाव कौन से है ? बताइये । स०-जोवों की रक्षा करना, सत्य बोलना, चारी नहीं करना, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, अरहन्त भक्ति करना, पञ्चपरमेष्ठो नमन, गुरुभक्ति, वैश्यावृत्य, बान, दया, मैत्री, प्रमोद आदि शुभ भाव हैं। प्र०-अशुभ भाव कौन से है ? 30-हिसा, झूठ, चोरी आदि पांच पाप करना, देव-शास्त्र-गुरु को उपासना नहीं करना, गुरुओं की निन्दा करना, दान, दया, संयम, तपादि का पालन नहीं करना, वेष, मान, माया, लोभादि पाप भाव अशुभ भाव है।

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