________________
द्रव्य संग्रह
प्र०-आभ्यन्तर क्रियाएँ कौन-सी हैं ?
१०-मानसिक भीतरी ग्राओं सौ ग्यतार मा कहाँ है। जैसे-क्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्व, राग-द्वेष आदि। मानसिक अशुभ बिचारों का द्वन्द्व आदि सब आभ्यन्तर क्रियाएं हैं।
प्र०बाह्य-आभ्यन्तर क्रिया कौन रोकता है ?
7-'णाणो'-शानी पुरुष अपनी मानसिक, वाचनिक व कायिक याभ्यन्तर और बाह्य क्रियाओं को रोकते हैं।
प्रक-बाह्य-आभ्यन्तर क्रियाओं के निरोध से ज्ञानो के फिसकी प्राप्ति होतो है ?
उ०-निश्चय चारित्र की। प्र-निश्चय चारित्र किसे कहते हैं ?
उ०-बाह्य-आभ्यन्तर क्रियाओं के निरोष से प्रादुर्भूत आत्मा को -शुद्धि को निश्चय सम्यक् चारित्र कहते हैं।
मोक्ष के हेतुओं को पाने के लिए ध्यानकी प्रेरणा कुविहं पि मोक्लहे माणे पाउणविज मुणो णियमा । सम्हा पयत्तचित्ता, जूयं झाणं समग्भसह ॥४७॥ अम्बया
(ज) क्योंकि । ( मणी ) मुनिजन । ( दुविहं पि)दोनों ही प्रकार के । ( मोक्खहे) मोक्ष के कारणों को । ( णियमा) नियम से । (माणे) ध्यान में। ( पाउपादि) पा लेते हैं। (तम्हा ) इसलिए। (जयं ) तुम सब । ( पयत्तचित्ता) सावधान होकर । ( साणं ) ध्यान का । (समग्मसह) अभ्यास करो।
अर्थ
__क्योंकि मुनिराज दोनों हो प्रकार के कारणों को नियम से ध्यान में पा लेते हैं इसलिए तुम सब सावधान होकर ध्यान का अभ्यास करो।
ध्यान करने का उपाय मा मुखमाह मा रजह सा दुस्सह इटुणिस्थेसु । मिरमिन्ह मा विसं विवित्तमाणपसिसीए ॥४॥