Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 78
________________ ७२ द्रव्य संग्रह ( जुजइ ) लगाते हैं । ( सो ) दे । (आइरिओ) आचार्य (भेश्रो ) ध्यान करने योग्य है । जो दर्शन, ज्ञान को प्रधानता से युक्त हैं। वीर्य, चारित्र तथा श्रेष्ठ तप में अपने को तथा शिष्यों को लगाते हैं वे आचार्य ध्यान करने योग्य हैं । प्र० - आचार्य परमेष्ठी किन्हें कहते हैं ? उ०- जो पंचाचार का स्वयं पालन करते हैं तथा शिष्यों से भी पालन कराते हैं वे आचार्य परमेष्ठी कहलाते हैं। प्र० - पंचाचार के नाम व लक्षण बताइये । ० - पंचाचार - १ - दर्शनाचार, ४- तपाचार, ५- -वीर्याचार | २ - ज्ञानाचार, ३ चारित्राचार, दर्शनाचार - निर्दोष सम्यक् दर्शन का पालन करना दर्शनाचार है । ज्ञानाधार - अष्टांग सहित सम्यक ज्ञान को आराधना करना शानाचार है । चारित्राचार - तेरह प्रकार के चारित्र का निर्दोष रूप से आचरण करना । तपाचार- बारह प्रकार के तपों का निर्दोष रीति से पालन करना । वोर्याचार — अपनी शक्ति नहीं छिपाते हुए उत्साहपूर्वक संयम को आराधना करना बीर्याचार है । प्राचार्य परमेष्ठो का उपकार बताइये । उ०- भव्यजीवों को जिनधर्म की दीक्षा देकर मोक्षमार्ग में लगाना, हित की शिक्षा देना, शिष्यों का संग्रह -निग्रह आदि आचार्य परमेष्ठी के उपकार हैं ! उपाध्याय परमेष्ठी का स्व जो रयणत्तयत्तो, निरो सो उनन्सानो अप्पा, अविवरक्सो नमो तस्स ॥५३॥ 'अन्ययार्थ ( रयणसयतो ) रस्तजय से युक्त (ओ) ओ । (अप्पा) बारमा । (वि) निष्य (शम्भोबदेसणे ) धर्मोपवेश देने में ( भिरदो )

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