Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 75
________________ द्रव्य संग्रह (सुइदेहत्यो ) शुभ देह में स्थित है। ( सुबो ) वह शुद्ध। ( अप्पा) वात्मा । ( अरिहो ) अरिहंत है। (विचितिजो) वह ध्यान करने योग्य निशानेबार घालिगा कर्भ नष्ट कर दिये हैं। जो दर्शन, शान, सुक मौर वीर्य से सहित हैं, शभदेह में स्थित हैं वे शुद्ध आस्मा अरिहंत हैं और ध्यान करने योग्य हैं। मा-नित्य ध्यान करने योग्य कौन है ? ज.-'अरिहंत'। प्र०-अरिहंत किन्हें कहते हैं ? उ०-जिसने चार घातिया कर्म नष्ट कर दिये हैं तथा जो अनन्त दर्शन, शाल, सुख और वोर्य से युक्त हैं, उन्हें अरिहन्त कहते हैं। प्र.-वातिया कर्म किसे कहते हैं ? वे चार कौन से हैं ? उम्-जो जीव के अनुजोवो गणों का बात करते हैं वे घातिया कर्म कहलाते हैं। वे चार---ज्ञानावरण, २-दर्शनावरण, ३-मोहनीय और ४-अन्तराय हैं। प्र०-अनुजीवो गुण किसे कहते हैं ? उभ-भावस्वरूप गुणों को अनुजीवी गुण कहते हैं। प्र०-अनन्त चतुष्टय कौन से हैं ? उ.-अनन्तदर्शन, अनन्तमान, अनन्तसुल और अनन्तवीय-ये अनन्त चतुष्टय कहलाते हैं। प्र.-किस कर्म के नाश से कौन-सा गुण प्रगट होता है ? उ०-ज्ञानावरण कर्म के क्षय से अनन्तमान । वर्शनावरण , , अनन्तदर्शन । मोहनीय , अनन्तसुख । अन्तराय , अनन्तवोर्य प्रकट होता है। प्र०-अरिहन्त जिस शुभ देह में स्थित रहते हैं उसका नाम बताइये। च०-परमौदारिक शरीर को शुभ देह कहते हैं। अरिहन्त भगवान का यही शरीर होता है। प्र.-परमौदारिक शरीर किसे कहते हैं ? -जिस शरीर में से हरीराषित अनन्त निगोदिया बीय पूर्णरूपेण

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