Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 67
________________ द्रव्य संग्रह प्र-दर्शन किसे कहते हैं ? उ०-सामान्य अंश को जानना दर्शन है। प्र.-शान किसे कहते हैं ? उ-विशेष अंश को जानना ज्ञान है। प्र-छमस्थ (अल्पज्ञानो) किसे कहते हैं ? उ.-संक्षेप में पांच ज्ञान होते हैं-- मतिज्ञान, श्रुतमान, अबधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान । इन पांच ज्ञानों में से प्रारम्भ के चार ज्ञान वाले छमस्थ ( अल्पत्र ) कहलाते हैं। प्र० केवली किसे कहते हैं ? उ०-जिन्हें केवलज्ञान हो जाता है वे सर्वज्ञ या केवली कहलाते हैं। प्र-छमस्थ जीव के उपयोग का क्रम बताइये । २०-छद्मस्थ जोन पहले देखते हैं और फिर बाद में जानते हैं, किसो पदार्थ को देखे बिना छद्मस्थ उसे जान हो नहीं सकते इसलिए छदमस्थों के पहले दर्शनोपयोग होता है और बाद में ज्ञानोपयोग होता है। प्र. केवलशानो के उपयोग का क्रम बताइये । ज-केवलज्ञानी किसी भी पदार्थ को एक हो साथ देखते और जानते हैं इसलिए उनका दर्शनोपयोग और ज्ञानोपयोग एक साथ होता है ( बक्रम) प्र० केवलज्ञानी किसे कहते हैं? उ०-जो त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थों को युगपत् जानते हैं वे केवलशानी कहलाते हैं। व्यवहार चारित्र का स्वरूप असुहावो विणिवित्ती सुहे पविसी य जाण चारितं । पसमिविगुत्तिभव, यवहारणया दु मिणभणियं ॥४५॥ अन्वयार्थ ( ववहारणथा ) व्यवहारनय से। ( असुहादो) अशुभ कार्य से । (घिणिवित्ती ) निवृत्ति । ( ब ) और । ( सुहे ) शुभ कार्य में। (पवित्ती) प्रवृत्ति ! ( जिणभणियं ) जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा हुआ। (धारित) चारित्र । (जाण) जानो । (दु) और वह पारिष । ( वयसमिदिगुत्तिस्व ) वत, समिति, गुप्तिरूप है ।

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