Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 63
________________ ५७ द्रव्य संग्रह अम्बया-- ( रयणतयं ) रस्नत्रय (सम्यकदर्शन, शान और चारित्र ) । (अप्पाणं ) यात्मा को 1 ( मुयस्तु ) छोड़कर । ( अण्णववियम्हि ) दूसरे द्रव्य में । (ण) नहीं । ( वट्टई ) रहता! ( तह्मा ) इसलिए । । तत्तियमहो) रत्नत्रय सहित । ( आदा ) आत्मा। (ह) हो। ( मोक्खस्स ) मोक्ष का । ( कारणे ) कारण । ( होदि ) होता है। पर्व रलत्रय आरमा को छोड़कर दूसरे द्रव्यों में नहीं रहता है इसलिए रत्नत्रय सहित आत्मा हो मोक्ष का कारण होता है। प्र-निश्चयनय से रत्नत्रययुक्त मारमा ही मोक्ष का कारण क्यों है ? उ०पयोंकि रत्नत्रय आरमा अर्थात् जीवद्रव्य को छोड़कर अन्य में नहीं पाया जाता है। प्र-ये रत्नत्रय कौन-से हैं? उ.-1-सम्यकदर्शन, २-सम्यक्शान, ३-सम्यकनारित्र । सम्यक् न किसे कहते हैं ? जोबाकीसदहणं, सम्मतं वामप्पणो तं तु। दुरभिणिवेसविमुक्कं गाणं सम्म खु होवि सदि अम्हि ॥४१॥ बम्बया { जीवादीसदहणं ) जीवादि सात तरवों का श्रदान करना । ( सम्मतं) सम्यग्दर्शन है। (स ) वह । ( अपणो ) आरमा का। (रुवं ) स्वरूप है। {तु ) और । ( जम्हि ) जिस सम्यग्दर्शन के। ( सदि ) होने पर । (दुरभिगिवेसविमुषर्क ) संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय रहित । { णाणं ) शान । ( ख ) से। ( सम्म ) सम्यक्झान । ( होदि ) होता है । जोवादि सात तस्वों का श्रदान करना सम्यग्दर्शन है। यह सम्यकदर्शन आत्मा का वास्तविक स्वरूप है। इस सम्यकदर्शन के होने पर हो शान सम्पज्ञान कहलाता है। और यह शान संशय, विपर्यय प्रया अनध्यवसाय से रहित होता है।

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