Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 45
________________ द्रव्य संग्रह प्र०-तत्त्व किसे कहते हैं ? उ०- 'तस्य भावः तस्व' जिस वस्तु का जो भाव है वह तत्त्व है । प्र० - पदार्थ कितने हैं ? उ०- सात तत्वों में पुण्य पाप को मिलाने पर - जीव, अजोव, आसव, बॅच, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप - नौ पदार्थ कहलाने लगते हैं । 1-05 ० - नौ पदार्थों का स्वरूप संक्षेप में बताइये | ३९ उ०- १. जीव - जिसमें चेतना पायी जाए वह जीव है । २. अजीव जिसमें चेतना नहीं है वह अजीब है। ३. मालव- कर्मों का आना आस्रव है । ४. ब - कर्मों का आत्मा के साथ दूध पानो को तरह मिल जाना बन्ध है । ५. संबर-- आत्मा में कर्मों का आना, रुक जाना संवर है । ६. निर्जरा - कर्मों का एक देश खिर जाना या सड़ जाना निर्जरा है | ७. मोक्ष – कर्मो का सर्वदेश खिर जाता या सड़ जाना मोका है । ८. पुष्प — जो आत्मा को पवित्र करे वह पुण्य कहलाता है । ९. पाप – जो आत्मा की शुभ से रक्षा करे अर्थात् जो माना का पतन करे वह पाप कहलाता है । भावालय व द्रव्यालय के लक्षण आसवदि जेण कम्मं, परिणामेणप्पणी स विज्ओ । भावासवो जिणुसो, कम्मासवणं परो होदि ।। २९ ।। अन्वयार्थ ( परिणामेण ) परिणाम आता है । ( स ) वह । ( अप्पणी ) आत्मा के । ( जेण ) जिस । से ( कम् ) पुद्गल कर्म । ( आसर्वादि ) ( जिणुतो ) जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा गया। ( भावासवो ) भावाक्षव । ( विष्णेओ ) जानना चाहिए। (कम्मासवन) कर्मों का आना । ( परो ) द्रव्यास्त्र | ( होदि ) होता है ।

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