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द्रव्य संग्रह
प्र०-तत्त्व किसे कहते हैं ?
उ०- 'तस्य भावः तस्व' जिस वस्तु का जो भाव है वह तत्त्व है ।
प्र० - पदार्थ कितने हैं ?
उ०- सात तत्वों में पुण्य पाप को मिलाने पर - जीव, अजोव, आसव, बॅच, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य और पाप - नौ पदार्थ कहलाने लगते हैं ।
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० - नौ पदार्थों का स्वरूप संक्षेप में बताइये |
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उ०- १. जीव - जिसमें चेतना पायी जाए वह जीव है ।
२. अजीव जिसमें चेतना नहीं है वह अजीब है।
३. मालव- कर्मों का आना आस्रव है ।
४. ब - कर्मों का आत्मा के साथ दूध पानो को तरह मिल जाना बन्ध है ।
५. संबर-- आत्मा में कर्मों का आना, रुक जाना संवर है ।
६. निर्जरा - कर्मों का एक देश खिर जाना या सड़ जाना निर्जरा है |
७. मोक्ष – कर्मो का सर्वदेश खिर जाता या सड़ जाना मोका है ।
८. पुष्प — जो आत्मा को पवित्र करे वह पुण्य कहलाता है । ९. पाप – जो आत्मा की शुभ से रक्षा करे अर्थात् जो माना का पतन करे वह पाप कहलाता है ।
भावालय व द्रव्यालय के लक्षण
आसवदि जेण कम्मं, परिणामेणप्पणी स विज्ओ । भावासवो जिणुसो, कम्मासवणं परो होदि ।। २९ ।।
अन्वयार्थ
( परिणामेण ) परिणाम
आता है । ( स ) वह ।
( अप्पणी ) आत्मा के । ( जेण ) जिस । से ( कम् ) पुद्गल कर्म । ( आसर्वादि ) ( जिणुतो ) जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा गया। ( भावासवो ) भावाक्षव । ( विष्णेओ ) जानना चाहिए। (कम्मासवन) कर्मों का आना । ( परो ) द्रव्यास्त्र | ( होदि ) होता है ।