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अर्थ
द्रव्य संग्रह
आमा के जिस परिणाम से पुद्गल कर्म आता है वह जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा गया भावास्तव जानना चाहिए तथा कर्मों का आना दिव्यास्त्रव होता है ।
प्र० - आस्रव किये कहते हैं ?
उ०- आत्मा में कर्मों का आना आस्रव कहलाता है ।
० - आस्रव के कितने भेद है ?
उ०- दो भेद हैं- १ - भावाचंव २ द्रव्यासव ।
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प्र० - मावास्रव किसे कहते हैं ? उ०- मिध्यास्व, अविरति, प्रमाद, परिणामों से कर्मों का आस्रव होता है कहते हैं ।
कषाय और योग रूप जिन उन परिणामों को भावाल
प्र० - द्रव्यासव का स्वरूप बताइये ।
उ-ज्ञानावरणादि पुद्गल कर्मों का आना द्रव्यासव कहलाता है ।
प्र० - परिणाम किसे कहते हैं ?
० आत्मा के शुभाशुभ भाव परिणाम कहलाते हैं ।
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भाषालय के नाम व भेद मिच्छत्ताविरदिपमादजोगको हावओऽथ विष्णेया ।
पण पण पावसति च कमलो भेदा हु पुव्वस्स ॥ ३०॥
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अन्वयार्थ...
( पुवस्स) पूर्व के अर्थात् भावानव के मैदाभेद । (मिच्छत्ताविरदिपमादजोगकोहादओ ) मिध्यात्व अविरति, प्रमाद, योग तथा कषाय हैं । (दु) और ( कमसो ) क्रम से वे । ( पण ) पांच ( पण ) पांच ( पणदस ) पन्द्रह | ( सिय) तीन (चदु) चार प्रकार के । (विष्णेया) बानने चाहिए।
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गिय्यास्व, अविरति, प्रमाद, योग एवं कषाय ये भावास्त्रय के भेद कम से पांच पांच, पन्द्रह तीन और चार प्रकार के जानने चाहिए।
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