Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 56
________________ द्रव्य संग्रह निर्जरा का लक्षण व उसके भेद जहकालेण तवेण च भुत्तरसं कम्मपुरगलं जेण । भावेण सडवि णेया तस्सडणं चेदि णिज्जरा दुविहा ॥३६॥ बम्बयाणं ( जहकालेण ) यथाकाल में ( अवधि पुरो होने पर)। ( य ) और । ( तवेण } तप से। ( भुत्तरस } जिनका फल भाग लिया है। ( कम्मपुग्गलं ) ऐसा कर्म पुद्गल । (जेग) जिस। { भावेग ) भाव से । ( सडदि ) झड़ जाता है। (च) और। (तस्पडणं ) कर्मों का झड़ना । { इदि ) इस प्रकार 1 ( णिज्जरा) निर्जरा । ( विहा) दो प्रकार को। पिप जानना चाहिए। धर्म अवधि पूरी होने पर और तप से जिसका फल भोग लिया है ऐसा कम पुद्गल जिन भावों से झड़ जाता है वह भावनिर्जरा है और को का झड़ना व्यनिर्जरा है। इस प्रकार निर्जरा दो प्रकार को जाननो चाहिए। प्र-निर्जरा किसे कहते हैं ? उसके भेद बताइये। जा-अंधे हुए कर्मों का अंशतः झड़ना निर्जरा कहलातो है। निर्जरा के दो भेद हैं-१-भाव निर्जरा, २-व्य निर्जरा । ( दूसरे प्रकार से) १-सविपाक, २-अविपाक निर्जरा। प्र.-भावनिर्जरा किसे कहते हैं ? ०-जिन परिणामों से बंधे हुए कर्म एकदेश सड़ जाते हैं उसे भावनिर्जरा कहते हैं। प्र.-द्रम्यनिर्जरा किसे कहते हैं ? च-बंधे हुए कर्मों का एकदेश निर्जरित होना द्रव्यनिजरा है। प्र-सविपाक निर्जरा बताइये । ज०-अपनी अवधि पाकर या फल देकर बंधे हुए कर्मों का अंशतः सड़ना सविपाक निर्जरा है। यह निर्जरा समय के अनुसार पक कर अपने भाप गिरे हुए बाम के समान होती है।

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