Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 57
________________ द्रव्य संग्रह प्र-अविपाक निर्जरा बताइये? उतपश्चरण के द्वारा अवधि के पहले हो बंधे हुए कर्मों का एकदेश मड़ना अधिपाक निर्जरा है। यह निर्जरा पाल में डालकर पकाये गये आम के समान होती है। प्र०-पाक्षमार्ग को सहचारी या मुक्ति में कारणभूत निर्जरा कौन-सो उ०-अविपाक निजरा मोक्षमार्ग को सहकारी है । कारण कि सविपाक निर्जरा 'गजस्नान' के समान अप्रयोजनोय है । प्रा-निर्जरा में विशेष कार्यकारी कौन है | कैसे ? उ.-निर्जरा में विशेष कार्यकारी तप है। बिना तप के आत्मा कभी भो शुद्ध नहीं हो सकती है 1 बिना तपाये सोना शुद्ध नहीं होता, बिना अग्नि में तपाये रोटो नहीं पकती, उसी प्रकार बिना बाह्य-आभ्यन्तर तप के आत्मा पर लगा कर्ममेल छूटता नहीं है । यद्यपि सिद्धराशि के अनातवें भाग तथा अभव्यराशि के अनन्त गुणा कर्मपरमाणु प्रतिसमय खिरते हैं पर 'तप' रूप अलौकिक शक्ति के द्वारा इससे अधिक मो खिरते हैं। प्र.-तप किसे कहते हैं ? संक्षेप में तप के भेद फितने हैं ? उ.-संक्षेप में तप दो प्रकार का है-१-बाल तप, २-आभ्यन्तर तप। प्रक-बाह्य तप किसे कहते हैं? उ-जो बाहर से देखने में आता है अथवा जिसे अन्यजन भी करते हैं, यह बाह्म तप है। प्र-बाह्य तप के भेद बताओ। उ.-१-अनशन, २-अवमौदर्य, ३-वृतिपरिसंस्थान, ४-रसपरित्याग, ५-विविक्तशय्यासन और ६-कायक्लेश । प्र.-आभ्यन्तर तप किसे कहते हैं ? उ.-जिन तपों का आत्मा से घनिष्ठ सम्बन्ध है वै आभ्यन्तर सप कहलाते हैं। प्र०-आभ्यन्तर तप के भेद बताइये । उ.-१-प्रायश्चित, २-विनय, ३-वैश्यावृत्य, ४-स्वाध्याय, ५-युत्सर्ग और ६-ध्यान ।

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