Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 46
________________ ४० अर्थ द्रव्य संग्रह आमा के जिस परिणाम से पुद्गल कर्म आता है वह जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा गया भावास्तव जानना चाहिए तथा कर्मों का आना दिव्यास्त्रव होता है । प्र० - आस्रव किये कहते हैं ? उ०- आत्मा में कर्मों का आना आस्रव कहलाता है । ० - आस्रव के कितने भेद है ? उ०- दो भेद हैं- १ - भावाचंव २ द्रव्यासव । P प्र० - मावास्रव किसे कहते हैं ? उ०- मिध्यास्व, अविरति, प्रमाद, परिणामों से कर्मों का आस्रव होता है कहते हैं । कषाय और योग रूप जिन उन परिणामों को भावाल प्र० - द्रव्यासव का स्वरूप बताइये । उ-ज्ञानावरणादि पुद्गल कर्मों का आना द्रव्यासव कहलाता है । प्र० - परिणाम किसे कहते हैं ? ० आत्मा के शुभाशुभ भाव परिणाम कहलाते हैं । . भाषालय के नाम व भेद मिच्छत्ताविरदिपमादजोगको हावओऽथ विष्णेया । पण पण पावसति च कमलो भेदा हु पुव्वस्स ॥ ३०॥ • अन्वयार्थ... ( पुवस्स) पूर्व के अर्थात् भावानव के मैदाभेद । (मिच्छत्ताविरदिपमादजोगकोहादओ ) मिध्यात्व अविरति, प्रमाद, योग तथा कषाय हैं । (दु) और ( कमसो ) क्रम से वे । ( पण ) पांच ( पण ) पांच ( पणदस ) पन्द्रह | ( सिय) तीन (चदु) चार प्रकार के । (विष्णेया) बानने चाहिए। Brd गिय्यास्व, अविरति, प्रमाद, योग एवं कषाय ये भावास्त्रय के भेद कम से पांच पांच, पन्द्रह तीन और चार प्रकार के जानने चाहिए। 2

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