Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 43
________________ द्रव्य संग्रह ३७ मुद्गल परमाणु से व्याप्स हो । ( तं ) उसे । (खु) निश्चय से । ( सम्बाद्वाणदानरिह ) समस्त अणुओं को स्थान देने में समर्थ । ( पदेस ) प्रदेश ( जाणे ) जानो । अर्थ ( पुद्गल के सबसे छोटे टुकड़े को अणु कहते हैं ) एक पुद्गल परमाणु जितना साकात मेरता है, अणुओं को स्थान देने में समर्थ प्रदेश जानो । उसे प्र० - प्रदेश का लक्षण बताइये । उ०- एक पुद्गल परमाणु जितने आकाश क्षेत्र को घेरे, उसे प्रदेश कहते हैं । प्र० यदि परमाणु जितने क्षेत्र में रहता है उसे प्रदेश कहते हैं तो वहीं अन्य परमाणु कैसे रहेंगे ? उ०- आकाश में अवगाहन शक्ति है अत: एक प्रदेश में नाना सूक्ष्म परमाणु भी समा सकते हैं। जैसे-लोहे में अग्नि के प्रदेश समा जाते हैं । आकाश के जिस एक प्रदेश पर काल का एक अणु या एक कालरूप समाया है उसी प्रदेश में धर्म-अधर्म द्रव्य के प्रदेश भी समाये हुए हैं। यदि उसी में अन्य सूक्ष्म परमाणु भी आ जाएँ तो वे भो समा सकते हैं। प्र० - असंख्यात प्रदेशी लोक में अनन्त जीव, अनन्तानन्त पुद्गल कैसे रहते हैं ? ज० - यह आकाश द्रव्य में रहने वाले अवगाहन गुण का प्रभाव है। एक निगोदिया जीव के शरीर में सिद्धराशि से अनन्त गुण समाये हुए हैं। इसी प्रकार असंख्वासप्रदेशी लोकाकाश में अनन्तानन्त जीव और उनसे भी अनन्त गुणे पुद्गल समाये हुए हैं। प्र० - जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्यों की संख्या बताइये । ज० - जीव - अनन्तानन्त हैं । पुद्गल - जीव द्रव्य से अनन्तगुणे पुद्गल हैं । धर्मद्रव्य, अधर्म द्रव्य - एक -एक हैं। आकाश - एक अखण्ड द्रव्य है । छः द्रव्यों के निवास को अपेक्षा इसके दो भेद हैं-१ -लोकाकाश, २-अलोकाकाश । कालद्रव्य - असंख्यात हैं ।

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