Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ प्रम्य संग्रह प्र.-उदाहरण देकर समझाइये कि आत्मा अमूर्तिक क्यों है तथा पुदगल मूर्तिक क्यों है ? -आत्मा को कोई छू नहीं सकता, कोई उसका स्वाद नहीं के सकता, उसका कोई वर्ण नहीं समा न उसमें खुशबू है, न बदबू किन्तु पुद्गल में ये सब पाये जाते हैं। जैसे आम पुदगल है। इसे हम देश मो सको पी सकते हैयह है या नरम। इसको गन्ध मी के सकते हैं तथा इसका खट्टा-मीठा स्वाद भी ले सकते हैं। इन्हीं कारणों से आत्मा का अमूर्तिकपना और पुद्गल का मूर्तिकपना सिद्ध है । प्र०-आत्मा इन्द्रियों को सहायता से नहीं जाना जाता है तो वह है, यह कैसे निर्णय करे ? उ.-यद्यपि मतिक इन्द्रियों की सहायता से अमूर्तिक मात्मा नहीं जाना जाता है फिर 'अहं' (मैं) शब्द से आरमा की प्रतीति होती है। मैं सुखी, में दुखो, मैं निधन, मैं धनवान बावि । लड्डू खाने पर मोठा, नीम खाने पर कड़वा लगता है। लड्ड साने पर सुख और कोटा शुभ जाने पर दुख होता है। यह सुख-दुःख का वेदन जिसमें होता है वह पारमा है । यह स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से जाना जाता है। दूसरों के शरीर में बात्मा का ज्ञान अनुमान से जाना जाता है। अन्यथा जिन्दा व्यक्ति और मुर्दा व्यक्ति का निर्णय नहीं हो पामेगा। प्र०-आपका बास्मा मूर्तिक है या अमूर्तिक है, क्यों? उ०-हमारा आस्मा मूर्तिक है क्योंकि हम अभी कम से यह संसारी जीव हैं। प्र-सिद्ध भगवान का आत्मा कैसा है ? उ.-सिद्ध भगवान प्रमूर्तिक हैं क्योंकि पुद्गल. कर्मबन्ध से सर्वचा रहित ( छूट गये ) हैं। व्यवहारनय से जोव को का कर्ता है पुग्गलकम्माबोण कसा घबहारवो दुणिश्चयो । घेक्षणकम्माणाबा सुबणया सुखभावाणं ॥८॥ बम्बया (आदा) आत्मा । ( ववहारो) व्यवहारनय से। (पुग्यलकम्मा

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83