Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 16
________________ द्रव्य संग्रह प्र.-व्यवहार से (सामान्य) जीव का लक्षण क्या है? स०-व्यवहारनय से आठ प्रकार का ज्ञान और चार प्रकार का दर्शन जीव का लक्षण है। प्र०-शुद्ध निश्चयनय से जीव किसे कहते हैं ? उ०-जिसमें शुद्ध दर्शन और ज्ञान पाया जाता है, शव निश्चयनय से वह जीव है। प्रा-शुद्ध निश्चयनय किसे कहते हैं ? ३०-पर सम्बन्ध से रहित वस्तु के गुणों के कथन करने वाले ज्ञान को शुद्ध निश्चयनय कहते हैं। अमूर्सल अधिकार बरसपंचगंधा को फासा अट्ट निच्चया जीवे । पो संति अमुत्ति तबो ववहारा मुसि बंधादो ॥७॥ बन्नया (च्चिया) निश्चयनय से। (जीवे) जोव में । (पंच पाण) पांच वर्ण। ( पंच रस ) पांच रस। (दो गंधा ) दो गंध। (अट्ठ फासा) और आठ स्पर्श । ( णो) नहीं। ( सन्ति ) है। (सदो) इसलिए (सो) यह । (अमुत्ति) अमूर्तिक है। (ववहारा) व्यवहारनय से । (बंधादो) कर्मबन्ध को अपेक्षा । ( मुति ) मूर्तिक । ( अस्थि ) है। वर्ष निश्चयनय से जीव में पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श नहीं है। इसलिए यह अमूर्तिक है। व्यवहारनय से कर्मबन्ध की अपेक्षा जीव मूर्तिक है। प्र०-मूर्तिक किसे कहते हैं ? उ.-जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ग पाया जाया है उसे मूर्तिक कहते हैं। प्र०-अमतिक किसे कहते हैं? -जिसमें स्पर्श, रस, गंध और वर्ण नहीं पाये जाते हैं उसे अभूतिक

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