Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 25
________________ द्रव्य संग्रह १९ संसारी जोव व्यवहारनय से चौदह मार्गणा और चौदह गुणस्थानों को अपेक्षा चौदह चौदह प्रकार के होते हैं किन्तु शुद्ध निश्चयनय की दृष्टि से सभी संपारो जीव शुद्ध हैं। उनमें कोई भेद नहीं है। प्र०-जोव चौदह प्रकार के किस अपेक्षा से हैं ? उ०-व्यवहारनय मे जोव चौदह मार्गणा, चौदह गुणस्थान वाले होने से चौदह प्रकार के होते हैं। प्र०-जीव शुद्ध किस अपेक्षा से है ? उ०-शुद्ध निश्चयनय को दृष्टि से । प्र-जोव के चौदह भेद मार्गणा अपेक्षा बताइये । (चौदह मार्गणाएँ) उ.-मार्गणाएँ चौदह होती है अतः उस सम्बन्ध से जीव के भी चौवह भेद हो गये--:-गति मार्गणा, २-इन्द्रिय मार्गणा, ३-कायमार्गणा, ४-योगमार्गणा, ५-वेदमार्गणा,६-कषायमार्गणा,ज्ञानमार्गणा, ८-संयममागंणा, ५-दर्शनमार्गणा, १०-लेश्यामार्गणा, ११-भव्यत्वमार्गणा, १२-सम्यक्त्व मार्गणा, १३-संझिस्व मार्गणा और १४-आहार मार्गणा । प्र-मार्गणा किसे करते हैं ? ज०-जिनधर्म विशेषों से जोवों का अन्वेषण किया जाय उन्हें मार्गणा . कहते हैं। प्र०-गुणस्थान किसे कहते हैं ? उल-मोह और योग के निमित्त से होने वाले आत्मा के गुणों ( भावों को तारतम्यरूप अवस्थाविशेष ) को गुणस्थान कहते हैं। प्र.-गुणस्थान कितने होते हैं ? उ०-चौदह गुणस्थान होते हैं-१-मिथ्यात्व, २-सासादन, ३-मित्र, ४-अविरत, ५-देशविरत, ६-प्रमत्तविरत, ७-अप्रमत्तविरत, ८-अपूर्वकरण, २-अनिवृत्तिकरण, १०-सूक्ष्मसाम्पराय, ११-उपशान्तमोह, १२-क्षीणमोहा १३-सयोगकेवली, १४-अयोगकेवली । प्र-शुद्धनय से संसारी जीव के कितने गुणस्पांन और मार्गणा होतो हैं तथा व्यवहारनय से कितने ? उ.-शुद्ध निश्चयनय से संसारो जोब के गुणस्थान भी नहीं और मार्गणा मी नहीं होती हैं। प्र-सिद्ध भगवान के गुणस्थान और मार्गणाएँ बताइये। उम्-सिद्ध भगवान गुणस्थान और मार्गणाओं से रहित-गुणस्थानातीत व मार्गणातीत है।

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