Book Title: Dravyasangrah
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 13
________________ द्रव्य संग्रह मानोपयोग के भेव गागं अटुपियप्यं मविषुवमोही अणाणणाणाणि । मणपज्जयकेवलमषि, पन्क्ल परोक्तभेयं ॥५॥ मन्बयार्य {णाणं ) जान। ( अवियप्पं ) आठ प्रकार का है। { अगाणपाणाणि ) अशान रूप और ज्ञान रूप। ( मदिसुदओही) मतिज्ञान, श्रुत. जाम, भवधिज्ञान 1 (मणपब्जय ) मनःपर्ययशान । ( केवल) केवलज्ञान । (पवि ) और। (यही मानोपयोग ) (पचक्सपरोक्खमेयं च प्रत्यक्ष और परोक के मेद से दो प्रकार का है। झानोपयोग अशान और शान रूप से आठ प्रकार का है--कुमतिमान, २-कुश्रुतशान, ३-कुअवधिशान, ४-मसिशान, ५-श्रुतमान, ६-अवधिज्ञान, ५-प्रतःपर्ययशान और ८-फेवलज्ञान । और वही मानोपयोग प्रत्यक्ष और परोक्ष के भेद से दो प्रकार का है। प्रा-कुशान किसने हैं ? कुशान तीन है--कुमति, कुलत, ३-कुअवधि। मन-सम्यक् शान कितने हैं ? उ०-सम्यक् ज्ञान पात्र है-१-मसिझान, २-शुतज्ञान, ३-अवषिशान, ४-मनःपर्ययज्ञाम, ५-केवलजान । प्र-मतिमाम किसे कहते हैं ? च-पांच इन्द्रिय बौर मन को सहायता से होने वाला मान मतिकान कहलाता है। प्र०-श्रुतशान किसे कहते हैं ? ज-मतिज्ञान पूर्वक होने वाला शान श्रुसशान कहलाता है। प्रल-अवविज्ञान किसे कहते हैं ? १०-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादापूर्वक जो रूपी पापों की स्पष्ट जानता है वह अवषिशान है।

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