Book Title: Dravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Author(s): Thakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 22
________________ ब्रम्यपरीक्षा मालिका विधि वतलाई गई है। गा०४१ तक स्वर्ण व्यवहार, गा०४२-४३ में धातु की छीजत औरगा० ४४ से ४५ तक मूल्य निकालने की विधि बतलाई इसके पश्चात् मुद्राओं का प्रकरण आरंभ होता है। गा० ५१ से ५५ तक रौप्य मुद्रायें वर्णित हैं जैसे पूतली, खीमली, कजानी, प्रादनी, रीणी, रूवाई, खराजमी और वालिष्ट । मुद्राओं का मूल्य बताते हुए देवगिरी-दौलताबाद की सीघण (१२१० से १२४७) इकमसी तारा, अधमसी (गा० ५४) करारी, खटियालग, रीणी और नरहड़ मुद्राओं का मूल्य अपनी नजर से या अग्नि में तपा कर चासनी से परीक्षा करनी चाहिए लिखा है। गा०५६ में भगवान रामचंद्र की पूजनीय दो प्रकार की संयोगी और वियोगी सीतारामी स्वर्णमुद्राओं का वर्णन किया गया है जो विना भुनाने गलाने योग्य है। गा० ५७ में चौकड़िया, सीरोहिया और त्रिभुवनगिरी के यादव राजा कुमारपाल की 'कुमरू' मुद्रा का वर्णन किया गया है। ५८वीं गाथा पद्मा मुद्रा का वर्णन करती है। गा० ५९-६० में फिर देवगिरि की सीघण, महादेवी, ठाणकर, लोहकंडी, बाणकर (रामवाण) चोखीराम-खड्डघर एवं केसरी और कौलादेवी मुद्राओं का वर्णन है। गा०६१ में लिखा है कि और भी मुद्राओं और चारमासे की दीनार आदि स्वर्ण मुद्राओं का मूल्य सोने की बान और तोल से जानना चाहिए। गा०६२ से ७२ तक त्रिधातु मुद्राओं का वर्णन है । सभी मुद्राओं में प्रतिशत कितना सोना कितना चाँदी और कितना तांवा है, इसकी तौल और मोल एवं जिस कोटि की धातु उसमें व्यवहृत हई है, उसका वर्णन है। वाराणसी की पद्मा मुद्रा की धातु-परिमाण बतलाकर जितशत्रु राजा की भगवा मुद्रा का वर्णन किया गया है जो भगवान के दर्शन के हेतु वनवायी हुई सीतारामी मुद्रा के सदृश पूजनीय थी। आगे विलाईकोर, वीरब्रह्म (वीरवर्म चंदेल), हीरावर्मा और त्रिलोकवर्मा की मुद्राओं का वर्णन कर भोज की विविध मुद्रानों का उल्लेख मात्र किया गया है। वालंभ या वल्लभ मुद्रा भी त्रिधातु निर्मित थी, जिसका मूल्य जीतल-जयपाल मुद्रा से आंका जाता था। ___ इसके पश्चात् गा. ७३ से खुरासानी द्विधातु मुद्राओं का वर्णन है जिन पर पारसीलिपि में चिन्हाक्षर लिखे रहते हैं । ये भंभई, एकटिप्पी, सिकदरी, कुरुलुकी, पलाहोरी, समोसी, लगामो पेरी, जमाली और मसूदी कई प्रकार की थीं। ७८ वीं गाथा में अब्दुली और कुतुली नामकी अठनारी मुद्राओं का वर्णन है। गा० ७९ से ८१ तक महाराजा विक्रमादित्य की गोजिगा, दउराहा, भीमाहा, चोरी मोरी, करड़, कूर्मरूपी व कालाकचारि नामक चांदी-तांबे की द्विधातु मुद्राओं का मोल-तोल धातु-परिमाण बतलाया गया है। गा० ५२ से ९३ तक गुजरात के महाराजा कुमारपाल, अजयपाल, भीमदेव, लवणप्रसाद, वीसलदेव और अर्जुनदेव की कुमरपुरी, अजयपुरी, भीमपुरी, Aho! Shrutgyanam

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