Book Title: Dravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Author(s): Thakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 49
________________ द्रव्यपरीक्षा मुद्द विलाई कोरं मासा नव तुल्लि तिन्नि धाऊ य । तंबं दिवड्ड मासं सेस कणय रुप्प अद्धद्धं ॥६७॥ पउण ति टंका मुल्लं इमस्स सेसाण कमिण पाऊणं । जा पाय टंकओ हुइ इक्कारस मुद्द तुल्लि समा(") ॥६॥ माहोवयस्स मुद्दा तुल्लो इक्कस्स सड्ड चउमासा।। संजोय तिन्नि धाऊ पिहु पिहु नामेहि तं भणिमो ॥६९।। रुव कणय गुज चउ चउ तंबउ गुणवीस वीरवंमो य(")। मुल्लु चउवीस जइथल* हीरावंमस्स वावीसं(') ॥७॥ (७) विलाईकोर मुद्रा ११ तोल्ये। मासा ९ मूल्ये टंका 5२।। २।। २। ३२ १ १ ॥ ३१॥ 500 500 5.1 (८) २४ वीरवरमु मासा ४॥ तृधातु • सोनउ . रूपउ । त्रांबा ० राती ४ . राती ४ रा० १९ (९) २२ हीरावरमु मासा ४॥ तृधातु • सोनउ रूपउ तांबा • ०रा० ३॥ रा० ३॥ १९॥ ६७. विलाईकोरमुद्रा तीन धातु को तौल में नौ मासा है, जिसमें डेढ मासा तांबा और शेष चांदी और सोना आधा-आधा अर्थात् पौने चार मासा चांदी और षोने चार मासा सोना है। कोष्ठकानुसार इनकी मुद्रा ग्यारह समझनी चाहिए। ६८. इनका मूल्य पौने तीन टंका और अवशिष्ट दस का पाव पाव टंका कम करते पाव टंका रहा । ये ग्यारह मुद्राएं तौल में बराबर हैं । अर्थात् २।।।, २०, २१, २, १३, १शा, ११, १, om, or, ०। टंका हुआ। ६९. महोवा की मद्राएं तौल में एक साढे चार मासा की और सोना, चाँदी, तांबा तीनों घातु मिश्रित हैं जिन्हें मैं पृथक पृथक् नामों से कहता हूँ। ७०. वीरवर्म देव (चंदेल) को मुद्रा में चार-चार रत्तो सोना, चांदी और उन्नीस रत्ती तांबा है उसका मूल्य बाईस जयथल है (कोष्टकानुसार सोना ३३, चांदी ३३ और ताम्र १९३ रत्ती है।) उस समय जयथल या जीतल प्रचलित मुद्राएँ थी, खरतर गच्छ-युगप्रधानाचार्य गुर्वावली में सं० १३७५ में कलिकाल केवली श्रीजिनचंदसूरि के समय फलोदी तीर्थ में महत्तियाणा सेढू द्वारा बारह हजार देकर मन्त्रिपद ग्रहण एवं अन्य सब मिलाकर तीर्थ में तीस हजार जैथल आय होने का उल्लेख है। हस्तिनापुर तीर्थ में बीस हजार जैथल देकर ठ० देवसिंह द्वारा इन्द्रपद ग्रहण, ठ० हरिराज द्वारा:आमात्य पद ग्रहण करने और इस तीर्थ में कुल मिलाकर डेढ लाख जयथल आमदनी होने का उल्लेख है। Aho! Shrutgyanam

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