Book Title: Dravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Author(s): Thakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan
Catalog link: https://jainqq.org/explore/034194/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “અહો! શ્રુતજ્ઞાનમ્ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર ૧૫૭ 'દ્રવ્ય પરિક્ષા ઔર ધાતુ ઉત્પત્તિ : દ્રવ્ય સહાયક : પૂ. આ. શ્રી રામચંદ્રસૂરીશ્વરજી મ.સા. સમુદાયના પૂ. સાધ્વી શ્રી જયવર્ધનાશ્રીજી મ.સા. તથા પૂ. સાધ્વી શ્રી સુરજિતાશ્રીજી મ. સા. ની પ્રેરણાથી ગુજરી પેઠ, ઇચલકરંજી શ્રાવિકા ઉપાશ્રયના જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી : સંયોજક : શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાન ભંડાર શા. વિમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૫ (મો.) 9426585904 (ઓ.) 22132543 સંવત ૨૦૬૯ ઈ. ૨૦૧૩ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०६५ (ई. 2009) सेट नं.-१ ક્રમાંક प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। પુસ્તકનું નામ र्त्ता-टीडाडार - संपाह पू. विक्रमसूरिजी म.सा. પૃષ્ઠ पू. जिनदासगणि चूर्णीकार पू. मेघविजयजी गणि म. सा. 001 002 003 004 005 006 007 008 009 010 011 012 013 014 015 016 017 श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार संयोजक - शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद - 05. 018 019 020 021 022 023 024 025 026 027 028 029 श्री नंदीसूत्र अवचूरी श्री उत्तराध्ययन सूत्र चूर्णी श्री अर्हद्गीता भगवद्गीता श्री अर्हच्चूडामणि सारसटीकः श्री यूक्ति प्रकाशसूत्रं श्री मानतुङ्गशास्त्रम् अपराजितपृच्छा शिल्प स्मृति वास्तु विद्यायाम् शिल्परत्नम् भाग - १ शिल्परत्नम् भाग - २ प्रासादतिलक काश्यशिल्पम् प्रासादमञ्जरी राजवल्लभ याने शिल्पशास्त्र शिल्पदीपक वास्तुसार दीपार्णव उत्तरार्ध જિનપ્રાસાદ માર્તણ્ડ जैन ग्रंथावली હીરકલશ જૈન જ્યોતિષ | न्यायप्रवेशः भाग-१ दीपार्णव पूर्वार्ध | अनेकान्त जयपताकाख्यं भाग - १ | अनेकान्त जयपताकाख्यं भाग-२ प्राकृत व्याकरण भाषांतर सह तत्त्पोपप्लवसिंहः शक्तिवादादर्शः क्षीरार्णव वेधवास्तु प्रभाकर पू. भद्रबाहुस्वामी म.सा. पू. पद्मसागरजी गणि म.सा. पू. मानतुंगविजयजी म.सा. श्री बी. भट्टाचार्य | श्री नंदलाल चुनिलाल सोमपुरा श्रीकुमार के. सभात्सव शास्त्री श्रीकुमार के. सभात्सव शास्त्री श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री विनायक गणेश आपटे श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री नारायण भारती गोंसाई श्री गंगाधरजी प्रणीत श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री प्रभाशंकर ओघडभाई શ્રી નંદલાલ ચુનીલાલ સોમપુરા श्री जैन श्वेताम्बर कोन्फ्रन्स શ્રી હિમ્મતરામ મહાશંકર જાની श्री आनंदशंकर बी. ध्रुव श्री प्रभाशंकर ओघडभाई पू. मुनिचंद्रसूरिजी म. सा. श्री एच. आर. कापडीआ श्री बेचरदास जीवराज दोशी श्री जयराशी भट्ट, बी. भट्टाचार्य श्री सुदर्शनाचार्य शास्त्री श्री प्रभाशंकर ओघडभाई श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 238 286 84 18 48 54 810 850 322 280 162 302 156 352 120 88 110 498 502 454 226 640 452 500 454 188 214 414 192 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 030 031 032 033 034 035 036 037 038 039 040 041 042 043 044 045 046 047 048 049 050 051 052 053 054 शिल्परत्नाकर प्रासाद मंडन श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-१ | श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-२ श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय-३ (?) श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय - 3 (२) (૩) श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्याय -५ વાસ્તુનિઘંટુ તિલકમન્નરી ભાગ-૧ તિલકમન્નરી ભાગ-૨ તિલકમન્નરી ભાગ-૩ સપ્તસન્ધાન મહાકાવ્યમ સપ્તભઙીમિમાંસા ન્યાયાવતાર વ્યુત્પત્તિવાદ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક સામાન્યનિર્યુક્તિ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક સપ્તભઙીનયપ્રદીપ બાલબોધિનીવિવૃત્તિઃ વ્યુત્પત્તિવાદ શાસ્ત્રાર્થકલા ટીકા નયોપદેશ ભાગ-૧ તરઙિણીતરણી નયોપદેશ ભાગ-૨ તરઙિણીતરણી ન્યાયસમુચ્ચય સ્યાદ્યાર્થપ્રકાશઃ દિન શુદ્ધિ પ્રકરણ બૃહદ્ ધારણા યંત્ર જ્યોતિર્મહોદય श्री नर्मदाशंकर शास्त्री पं. भगवानदास जैन पू. लावण्यसूरिजी म.सा. पू. लावण्यसूरिजी म.सा. पू. लावण्यसूरिजी म.सा. पू. लावण्यसूरिजी म.सा. पू. लावण्यसूरिजी म.सा. પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરા પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. વિજયઅમૃતસૂરિશ્વરજી પૂ. પં. શિવાનન્દવિજયજી સતિષચંદ્ર વિદ્યાભૂષણ શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) પૂ. લાવણ્યસૂરિજી શ્રીવેણીમાધવ શાસ્ત્રી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી પૂ. દર્શનવિજયજી પૂ. દર્શનવિજયજી સં. પૂ. અક્ષયવિજયજી 824 288 520 578 278 252 324 302 196 190 202 480 228 60 218 190 138 296 210 274 286 216 532 113 112 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાન ભંડાર ભાષા | 218. | 164 સંયોજક – બાબુલાલ સરેમલ શાહ શાહ વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન हीशन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, महावाह-04. (मो.) ८४२७५८५८०४ (यो) २२१३ २५४३ (5-मेल) ahoshrut.bs@gmail.com महो श्रुतज्ञानमjथ द्धिार - संवत २०७5 (5. २०१०)- सेट नं-२ પ્રાયઃ જીર્ણ અપ્રાપ્ય પુસ્તકોને સ્કેન કરાવીને ડી.વી.ડી. બનાવી તેની યાદી. या पुस्तsी www.ahoshrut.org वेबसाईट ५२थी ugl stGirls sी शाशे. ક્રમ પુસ્તકનું નામ ता-टी815२-संपES પૃષ્ઠ 055 | श्री सिद्धहेम बृहवृत्ति बृहदन्यास अध्याय-६ | पू. लावण्यसूरिजी म.सा. 296 056 | विविध तीर्थ कल्प प. जिनविजयजी म.सा. 160 057 लारतीय टन भए। संस्कृति सनोमन पू. पूण्यविजयजी म.सा. 058 | सिद्धान्तलक्षणगूढार्थ तत्त्वलोकः श्री धर्मदत्तसूरि 202 059 | व्याप्ति पञ्चक विवृत्ति टीका श्री धर्मदत्तसूरि જૈન સંગીત રાગમાળા श्री मांगरोळ जैन संगीत मंडळी | 306 061 | चतुर्विंशतीप्रबन्ध (प्रबंध कोश) | श्री रसिकलाल एच. कापडीआ 062 | व्युत्पत्तिवाद आदर्श व्याख्यया संपूर्ण ६ अध्याय |सं श्री सुदर्शनाचार्य 668 063 | चन्द्रप्रभा हेमकौमुदी सं पू. मेघविजयजी गणि 516 064| विवेक विलास सं/. | श्री दामोदर गोविंदाचार्य 268 065 | पञ्चशती प्रबोध प्रबंध | पू. मृगेन्द्रविजयजी म.सा. 456 066 | सन्मतितत्त्वसोपानम् | सं पू. लब्धिसूरिजी म.सा. 420 06764शमाता वही गुशनुवाह गु४. पू. हेमसागरसूरिजी म.सा. 638 068 | मोहराजापराजयम् सं पू. चतुरविजयजी म.सा. 192 069 | क्रियाकोश सं/हिं श्री मोहनलाल बांठिया 428 070 | कालिकाचार्यकथासंग्रह सं/. | श्री अंबालाल प्रेमचंद 406 071 | सामान्यनिरुक्ति चंद्रकला कलाविलास टीका | सं. श्री वामाचरण भट्टाचार्य 308 072 | जन्मसमुद्रजातक सं/हिं श्री भगवानदास जैन 128 मेघमहोदय वर्षप्रबोध सं/हिं श्री भगवानदास जैन 532 on જૈન સામુદ્રિકનાં પાંચ ગ્રંથો १४. श्री हिम्मतराम महाशंकर जानी 376 060 322 073 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ '075 374 238 194 192 254 260 | જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૧ 16 | જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૨ 77) સંગીત નાટ્ય રૂપાવલી 13 ભારતનાં જૈન તીર્થો અને તેનું શિલ્પ સ્થાપત્ય 79 | શિલ્પ ચિન્તામણિ ભાગ-૧ 080 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૧ 081 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૨ | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૩ 083. આયુર્વેદના અનુભૂત પ્રયોગો ભાગ-૧ કલ્યાણ કારક 085 | વિનોરન શોર કથા રત્ન કોશ ભાગ-1 કથા રત્ન કોશ ભાગ-2 088 | હસ્તસગ્નીવનમ 238 260 ગુજ. | | श्री साराभाई नवाब ગુજ. | શ્રી સYTમારું નવાવ ગુજ. | શ્રી વિદ્યા સરમા નવીન ગુજ. | શ્રી સારામારું નવીન ગુજ. | શ્રી મનસુબાન મુવામન ગુજ. | શ્રી નન્નાથ મંવારમ ગુજ. | શ્રી નન્નાથ મંવારમ ગુજ. | શ્રી ગગન્નાથ મંવારમ ગુજ. | . વન્તિસાગરની ગુજ. | શ્રી વર્ધમાન પર્વનાથ શત્રી सं./हिं श्री नंदलाल शर्मा ગુજ. | શ્રી લેવલાસ ગીવરાન કોશી ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરીન લોશી સ. પૂ. મેનિયની સં. પૂ.વિનયની, પૂ. पुण्यविजयजी आचार्य श्री विजयदर्शनसूरिजी 114 '084. 910 436 336 087 2૩૦ 322 (089/ 114 એન્દ્રચતુર્વિશતિકા સમ્મતિ તર્ક મહાર્ણવાવતારિકા 560 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार क्रम 272 240 सं. 254 282 466 342 362 134 70 316 224 612 307 संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०६७ (ई. 2011) सेट नं.-३ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। | पुस्तक नाम कर्ता टीकाकार भाषा संपादक/प्रकाशक 91 | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-१ वादिदेवसूरिजी सं. मोतीलाल लाघाजी पुना 92 | | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-२ वादिदेवसूरिजी | मोतीलाल लाघाजी पुना 93 | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-३ बादिदेवसूरिजी | मोतीलाल लाघाजी पुना 94 | | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-४ बादिदेवसूरिजी मोतीलाल लाघाजी पुना | स्याद्वाद रत्नाकर भाग-५ वादिदेवसूरिजी | मोतीलाल लाघाजी पुना 96 | पवित्र कल्पसूत्र पुण्यविजयजी साराभाई नवाब 97 | समराङ्गण सूत्रधार भाग-१ भोजदेव | टी. गणपति शास्त्री 98 | समराङ्गण सूत्रधार भाग-२ भोजदेव | टी. गणपति शास्त्री 99 | भुवनदीपक पद्मप्रभसूरिजी | वेंकटेश प्रेस 100 | गाथासहस्त्री समयसुंदरजी सं. | सुखलालजी 101 | भारतीय प्राचीन लिपीमाला | गौरीशंकर ओझा हिन्दी | मुन्शीराम मनोहरराम 102 | शब्दरत्नाकर साधुसुन्दरजी सं. हरगोविन्ददास बेचरदास 103 | सबोधवाणी प्रकाश न्यायविजयजी ।सं./ग । हेमचंद्राचार्य जैन सभा 104 | लघु प्रबंध संग्रह जयंत पी. ठाकर सं. ओरीएन्ट इन्स्टीट्युट बरोडा 105 | जैन स्तोत्र संचय-१-२-३ माणिक्यसागरसूरिजी सं, आगमोद्धारक सभा 106 | सन्मति तर्क प्रकरण भाग-१,२,३ सिद्धसेन दिवाकर सुखलाल संघवी 107 | सन्मति तर्क प्रकरण भाग-४.५ सिद्धसेन दिवाकर सुखलाल संघवी 108 | न्यायसार - न्यायतात्पर्यदीपिका सतिषचंद्र विद्याभूषण एसियाटीक सोसायटी 109 | जैन लेख संग्रह भाग-१ पुरणचंद्र नाहर | पुरणचंद्र नाहर 110 | जैन लेख संग्रह भाग-२ पुरणचंद्र नाहर सं./हि पुरणचंद्र नाहर 111 | जैन लेख संग्रह भाग-३ पुरणचंद्र नाहर सं./हि । पुरणचंद्र नाहर 112 | | जैन धातु प्रतिमा लेख भाग-१ कांतिविजयजी सं./हि | जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार 113 | जैन प्रतिमा लेख संग्रह दौलतसिंह लोढा सं./हि | अरविन्द धामणिया 114 | राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह विशालविजयजी सं./गु | यशोविजयजी ग्रंथमाळा 115 | प्राचिन लेख संग्रह-१ विजयधर्मसूरिजी सं./गु | यशोविजयजी ग्रंथमाळा 116 | बीकानेर जैन लेख संग्रह अगरचंद नाहटा सं./हि नाहटा ब्रधर्स 117 | प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग-१ जिनविजयजी सं./हि | जैन आत्मानंद सभा 118 | प्राचिन जैन लेख संग्रह भाग-२ जिनविजयजी सं./हि | जैन आत्मानंद सभा 119 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-१ गिरजाशंकर शास्त्री सं./गु | फार्वस गुजराती सभा 120 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-२ गिरजाशंकर शास्त्री सं./गु | फार्बस गुजराती सभा 121 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-३ गिरजाशंकर शास्त्री फार्बस गुजराती सभा 122 | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-१ | पी. पीटरसन रॉयल एशियाटीक जर्नल 123|| | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-४ पी. पीटरसन रॉयल एशियाटीक जर्नल 124 | ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. इन मुंबई सर्कल-५ पी. पीटरसन रॉयल एशियाटीक जर्नल 125 | कलेक्शन ऑफ प्राकृत एन्ड संस्कृत इन्स्क्रीप्शन्स पी. पीटरसन | भावनगर आर्चीऑलॉजीकल डिपा. 126 | विजयदेव माहात्म्यम् | जिनविजयजी सं. जैन सत्य संशोधक 514 454 354 सं./हि 337 354 372 142 336 364 218 656 122 764 404 404 540 274 सं./गु 414 400 Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार संयोजक - शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार संवत २०६८ (ई. 2012) सेट नं.-४ - - - प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। पुस्तक नाम भाषा प्रकाशक कर्त्ता / संपादक साराभाई नवाब महाप्रभाविक नवस्मरण गुज. साराभाई नवाब गुज. हीरालाल हंसराज गुज. पी. पीटरसन अंग्रेजी कुंवरजी आनंदजी शील खंड 133 करण प्रकाशः ब्रह्मदेव 134 | न्यायविशारद महो. यशोविजयजी स्वहस्तलिखित कृति संग्रह यशोदेवसूरिजी 135 भौगोलिक कोश- १ डाह्याभाई पीतांवरदास 136 भौगोलिक कोश-२ डाह्याभाई पीतांबरदास जिनविजयजी 137 जैन साहित्य संशोधक वर्ष १ अंक - १, २ जिनविजयजी जिनविजयजी जिनविजयजी जिनविजयजी जिनविजयजी क्रम 127 128 जैन चित्र कल्पलता 129 जैन धर्मनो प्राचीन इतिहास भाग - २ 130 ओपरेशन इन सर्च ओफ सं. मेन्यु. भाग-६ 131 जैन गणित विचार 132 | दैवज्ञ कामधेनु ( प्राचिन ज्योतिष ग्रंथ) 138 जैन साहित्य संशोधक वर्ष १ अंक ३, ४ 139 जैन साहित्य संशोधक वर्ष २ अंक - १, २ 140 जैन साहित्य संशोधक वर्ष २ अंक-३, ४ ४ 141 जैन साहित्य संशोधक वर्ष ३ अंक-१, 142 जैन साहित्य संशोधक वर्ष ३ अंक-३, 143 नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-१ 144 नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-२ 145 नवपदोनी आनुपूर्वी भाग-३ 146 भाषवति 147 जैन सिद्धांत कौमुदी (अर्धमागधी व्याकरण) 148 मंत्रराज गुणकल्प महोदधि 149 फक्कीका रत्नमंजूषा- १, २ 150 | अनुभूत सिद्ध विशायंत्र (छ कल्प संग्रह) 151 सारावलि 152 ज्योतिष सिद्धांत संग्रह 153 १ २ ज्ञान प्रदीपिका तथा सामुद्रिक शास्त्रम् नूतन संकलन आ. चंद्रसागरसूरिजी ज्ञानभंडार - उज्जैन श्री गुजराती श्वे. मू. जैन संघ हस्तप्रत भंडार कलकत्ता सोमविजयजी सोमविजयजी सोमविजयजी शतानंद मारछता रनचंद्र स्वामी जयदयाल शर्मा कनकलाल ठाकूर मेघविजयजी कल्याण वर्धन विश्वेश्वरप्रसाद द्विवेदी रामव्यास पान्डेय हस्तप्रत सूचीपत्र हस्तप्रत सूचीपत्र गुज. सं. सं./अं. गुज. गुज. गुज. हिन्दी हिन्दी हिन्दी हिन्दी हिन्दी हिन्दी गुज. गुज. गुज. सं./हि प्रा./सं. हिन्दी सं. सं./ गुज सं. सं. सं. हिन्दी हिन्दी साराभाई नवाब साराभाई नवाब हीरालाल हंसराज एशियाटीक सोसायटी जैन धर्म प्रसारक सभा व्रज. बी. दास बनारस सुधाकर द्विवेदि यशोभारती प्रकाशन गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी गुजरात वर्नाक्युलर सोसायटी जैन साहित्य संशोधक पुना जैन साहित्य संशोधक पुना जैन साहित्य संशोधक पुना जैन साहित्य संशोधक पुना जैन साहित्य संशोधक पुना जैन साहित्य संशोधक पुना शाह बाबुलाल सवचंद शाह बाबुलाल सवचंद शाह बाबुलाल सवचंद एच. बी. गुप्ता एन्ड सन्स बनारस भैरोदान सेठीया जयदयाल शर्मा हरिकृष्ण निबंध महावीर ग्रंथमाळा पांडुरंग जीवाजी बीजभूषणदास जैन सिद्धांत भवन बनारस श्री आशापुरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार श्री आशापुरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार पृष्ठ 754 84 194 171 90 310 276 69 100 136 266 244 274 168 282 182 384 376 387 174 320 286 272 142 260 232 160 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार | पृष्ठ 304 122 208 70 310 462 512 संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०६९ (ई. 2013) सेट नं.-५ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तके www.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। | क्रम | पुस्तक नाम कर्ता/संपादक विषय | भाषा संपादक/प्रकाशक 154 | उणादि सूत्रो ओफ हेमचंद्राचार्य | पू. हेमचंद्राचार्य | व्याकरण | संस्कृत जोहन क्रिष्टे 155 | उणादि गण विवृत्ति | पू. हेमचंद्राचार्य व्याकरण संस्कृत पू. मनोहरविजयजी 156 | प्राकृत प्रकाश-सटीक भामाह व्याकरण प्राकृत जय कृष्णदास गुप्ता 157 | द्रव्य परिक्षा और धातु उत्पत्ति | ठक्कर फेरू धातु संस्कृत /हिन्दी | भंवरलाल नाहटा 158 | आरम्भसिध्धि - सटीक पू. उदयप्रभदेवसूरिजी ज्योतीष संस्कृत | पू. जितेन्द्रविजयजी 159 | खंडहरो का वैभव | पू. कान्तीसागरजी शील्प | हिन्दी | भारतीय ज्ञानपीठ 160 | बालभारत पू. अमरचंद्रसूरिजी | काव्य संस्कृत पं. शीवदत्त 161 | गिरनार माहात्म्य दौलतचंद परषोत्तमदास तीर्थ संस्कृत /गुजराती | जैन पत्र 162 | गिरनार गल्प पू. ललितविजयजी | तीर्थ संस्कृत/गुजराती | हंसकविजय फ्री लायब्रेरी 163 | प्रश्नोत्तर सार्ध शतक पू. क्षमाकल्याणविजयजी | प्रकरण हिन्दी | साध्वीजी विचक्षणाश्रीजी 164 | भारतिय संपादन शास्त्र | मूलराज जैन साहित्य हिन्दी जैन विद्याभवन, लाहोर 165 | विभक्त्यर्थ निर्णय गिरिधर झा संस्कृत चौखम्बा प्रकाशन 166 | व्योम बती-१ शिवाचार्य न्याय संस्कृत संपूर्णानंद संस्कृत युनिवर्सिटी 167 | व्योम वती-२ शिवाचार्य न्याय संपूर्णानंद संस्कृत विद्यालय | 168 | जैन न्यायखंड खाद्यम् | उपा. यशोविजयजी न्याय संस्कृत /हिन्दी | बद्रीनाथ शुक्ल 169 | हरितकाव्यादि निघंटू | भाव मिथ आयुर्वेद संस्कृत /हिन्दी | शीव शर्मा 170 | योग चिंतामणि-सटीक पू. हर्षकीर्तिसूरिजी | संस्कृत/हिन्दी | लक्ष्मी वेंकटेश प्रेस 171 | वसंतराज शकुनम् पू. भानुचन्द्र गणि टीका | ज्योतिष खेमराज कृष्णदास 172 | महाविद्या विडंबना पू. भुवनसुन्दरसूरि टीका | ज्योतिष | संस्कृत सेन्ट्रल लायब्रेरी 173 | ज्योतिर्निबन्ध । शिवराज | ज्योतिष | संस्कृत आनंद आश्रम 174 | मेघमाला विचार पू. विजयप्रभसूरिजी ज्योतिष संस्कृत/गुजराती | मेघजी हीरजी 175 | मुहूर्त चिंतामणि-सटीक रामकृत प्रमिताक्षय टीका | ज्योतिष | संस्कृत अनूप मिश्र 176 | मानसोल्लास सटीक-१ भुलाकमल्ल सोमेश्वर ज्योतिष ओरिएन्ट इन्स्टीट्यूट 177 | मानसोल्लास सटीक-२ भुलाकमल्ल सोमेश्वर | ज्योतिष संस्कृत ओरिएन्ट इन्स्टीट्यूट 178 | ज्योतिष सार प्राकृत भगवानदास जैन ज्योतिष प्राकृत/हिन्दी | भगवानदास जैन 179 | मुहूर्त संग्रह अंबालाल शर्मा ज्योतिष | गुजराती | शास्त्री जगन्नाथ परशुराम द्विवेदी 180 | हिन्दु एस्ट्रोलोजी पिताम्बरदास त्रीभोवनदास | ज्योतिष गुजराती पिताम्बरदास टी. महेता 264 144 256 75 488 | 226 365 न्याय संस्कृत 190 480 352 596 250 391 114 238 166 संस्कृत 368 88 356 168 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543. E-mail : ahoshrut.bs@gmail.com शाह विमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-380005. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०७१ (ई. 2015) सेट नं.-६ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की डिजिटाइझेशन द्वारा डीवीडी बनाई उसकी सूची। यह पुस्तकेwww.ahoshrut.org वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। क्रम विषय | भाषा पृष्ठ पुस्तक नाम काव्यप्रकाश भाग-१ | संपादक / प्रकाशक पूज्य जिनविजयजी 181 | संस्कृत 364 182 काव्यप्रकाश भाग-२ 222 183 काव्यप्रकाश उल्लास-२ अने ३ 330 184 | नृत्यरत्न कोश भाग-१ 156 185 | नृत्यरत्र कोश भाग-२ ___ कर्ता / टिकाकार पूज्य मम्मटाचार्य कृत पूज्य मम्मटाचार्य कृत उपा. यशोविजयजी श्री कुम्भकर्ण नृपति श्री कुम्भकर्ण नृपति श्री अशोकमलजी | श्री सारंगदेव श्री सारंगदेव श्री सारंगदेव श्री सारंगदेव 248 504 संस्कृत पूज्य जिनविजयजी संस्कृत यशोभारति जैन प्रकाशन समिति संस्कृत श्री रसीकलाल छोटालाल संस्कृत श्री रसीकलाल छोटालाल संस्कृत /हिन्दी | श्री वाचस्पति गैरोभा संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत/अंग्रेजी | श्री सुब्रमण्यम शास्त्री संस्कृत श्री मंगेश रामकृष्ण तेलंग गुजराती मुक्ति-कमल-जैन मोहन ग्रंथमाला 448 188 444 616 190 632 | नारद 84 | 244 श्री चंद्रशेखर शास्त्री 220 186 | नृत्याध्याय 187 | संगीरत्नाकर भाग-१ सटीक | संगीरत्नाकर भाग-२ सटीक 189 | संगीरत्नाकर भाग-३ सटीक संगीरनाकर भाग-४ सटीक 191 संगीत मकरन्द संगीत नृत्य अने नाट्य संबंधी 192 जैन ग्रंथो 193 | न्यायबिंदु सटीक 194 | शीघ्रबोध भाग-१ थी ५ 195 | शीघ्रबोध भाग-६ थी १० 196| शीघ्रबोध भाग-११ थी १५ 197 | शीघ्रबोध भाग-१६ थी २० 198 | शीघ्रबोध भाग-२१ थी २५ 199 | अध्यात्मसार सटीक 200 | छन्दोनुशासन 201 | मग्गानुसारिया संस्कृत हिन्दी सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा 422 हिन्दी सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा 304 श्री हीरालाल कापडीया पूज्य धर्मोतराचार्य पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य ज्ञानसुन्दरजी पूज्य गंभीरविजयजी एच. डी. बेलनकर 446 |414 हिन्दी सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा हिन्दी सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा हिन्दी सुखसागर ज्ञान प्रसारक सभा संस्कृत/गुजराती | नरोत्तमदास भानजी 409 476 सिंघी जैन शास्त्र शिक्षापीठ 444 संस्कृत संस्कृत/गुजराती श्री डी. एस शाह | ज्ञातपुत्र भगवान महावीर ट्रस्ट 146 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543. E-mail : ahoshrut.bs@gmail.com शाह विमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-380005. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार - संवत २०७२ (ई. 201६) सेट नं.-७ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की डिजिटाइझेशन द्वारा डीवीडी बनाई उसकी सूची। पृष्ठ 285 280 315 307 361 301 263 395 क्रम पुस्तक नाम 202 | आचारांग सूत्र भाग-१ नियुक्ति+टीका 203 | आचारांग सूत्र भाग-२ नियुक्ति+टीका 204 | आचारांग सूत्र भाग-३ नियुक्ति+टीका 205 | आचारांग सूत्र भाग-४ नियुक्ति+टीका 206 | आचारांग सूत्र भाग-५ नियुक्ति+टीका 207 | सुयगडांग सूत्र भाग-१ सटीक 208 | सुयगडांग सूत्र भाग-२ सटीक 209 | सुयगडांग सूत्र भाग-३ सटीक 210 | सुयगडांग सूत्र भाग-४ सटीक 211 | सुयगडांग सूत्र भाग-५ सटीक 212 | रायपसेणिय सूत्र 213 | प्राचीन तीर्थमाळा भाग-१ 214 | धातु पारायणम् 215 | सिद्धहेम शब्दानुशासन लघुवृत्ति भाग-१ 216 | सिद्धहेम शब्दानुशासन लघुवृत्ति भाग-२ 217 | सिद्धहेम शब्दानुशासन लघुवृत्ति भाग-३ 218 | तार्किक रक्षा सार संग्रह बादार्थ संग्रह भाग-१ (स्फोट तत्त्व निरूपण, स्फोट चन्द्रिका, 219 प्रतिपादिक संज्ञावाद, वाक्यवाद, वाक्यदीपिका) वादार्थ संग्रह भाग-२ (षट्कारक विवेचन, कारक वादार्थ, 220 | समासवादार्थ, वकारवादार्थ) | बादार्थ संग्रह भाग-३ (वादसुधाकर, लघुविभक्त्यर्थ निर्णय, 221 __ शाब्दबोधप्रकाशिका) 222 | वादार्थ संग्रह भाग-४ (आख्यात शक्तिवाद छः टीका) कर्ता / टिकाकार भाषा संपादक/प्रकाशक | श्री शीलंकाचार्य | गुजराती | श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य गुजराती श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती | श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | | गुजराती | श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती | श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती | श्री माणेक मुनि श्री शीलंकाचार्य | गुजराती श्री माणेक मुनि श्री मलयगिरि | गुजराती श्री बेचरदास दोशी आ.श्री धर्मसूरि | सं./गुजराती | श्री यशोविजयजी ग्रंथमाळा श्री हेमचंद्राचार्य | संस्कृत आ. श्री मुनिचंद्रसूरि श्री हेमचंद्राचार्य | सं./गुजराती | श्री बेचरदास दोशी श्री हेमचंद्राचार्य | सं./गुजराती | श्री बेचरदास दोशी श्री हेमचंद्राचार्य | सं./गुजराती श्री बेचरदास दोशी आ. श्री वरदराज संस्कृत राजकीय संस्कृत पुस्तकालय विविध कर्ता संस्कृत महादेव शर्मा 386 351 260 272 530 648 510 560 427 88 विविध कर्ता । संस्कृत | महादेव शर्मा 78 महादेव शर्मा 112 विविध कर्ता संस्कृत रघुनाथ शिरोमणि | संस्कृत महादेव शर्मा 228 Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठक्कुर फेरू विरचिता द्रव्यपरीक्षा और धातूत्पत्ति सम्पादक श्री भंवरलाल नाहटा सध्च प्राक़त विद्यापीठ वैशाली) प्राकृत जैनशास्त्र अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली १९७६ Aho! Shrutgyanam Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aho! Shrutgyanam Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राकृत जैन शोष-संस्थान ग्रन्थमाला संख्या-१५ प्रधान सम्पादक डा० नागेन्द्र प्रसाद, एम. ए., डी. लिट. निदेशक, प्राकृत जैनशास्त्र एवं अहिंसा शोध-संस्थान, वैशाली ठक्कुर फेरू विरचिता द्रव्यपरीक्षा और धातूत्पत्ति (ঢাকুন বিশ্রামীনার্জি) सम्पादक श्री भंवरलाल नाहटा प्राकृत जैनशान एवं अहिंसा शोध-संस्थान, वैशाली १९७६ Aho! Shrutgyanam Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1976 All Rights Reserved Price Rs. 3.50 Published on behalf of the Research Institute of Prakrit, Jainology and Ahimsa, Vaishali (Bihar) by Dr. Nagendra Prasad, M. A., D. Litt., Director and Printed in India at the Tara Printing Works, Varanasi. Aho! Shrutgyanam Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ కన్ The Government of Bihar established the Research. Institute of Prakrit, Jainology and Ahimsa at Vaishali in 1955 with the object inter alia to promote advanced studies and research in Prakrit and Jainology and to publish works of permanent value to scholars. This Institute is one of the six Research Institutes established and being run by the Government of Bihar. The other five are: (i) Mithila Institute of Post-graduate Studies and Research in Sanskrit Learning at Darbhanga; (ii) K. P. Jayaswal Research Institute for research in Indian History, at Patna; (iii) Bihar Rastra Bhasa Parishad for research and publication in Hindi, at Patna; (iv) Nava Nalanda Mahavihara for Post-graduate studies and research in Pali and Buddhist learning, at Nalanda and (v) Institute of Post-graduate Studies and Research in Arabic and Persian, at Patna. As a part of the programme of rehabilitating and reorientating ancient learning and scholarship this is the Research Volume Number 14 which is a new edition of Nayacandra Suri's Rambhämañjari with English translation. The Government of Bihar hope to continue to sponsor such projects and trust that this humble service to the world of scholarship and learning would bear fruit in fulness of time. Aho! Shrutgyanam Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aho! Shrutgyanam Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रधान सम्पादकीय लगभग तीस वर्ष पूर्व णोधप्रेमी था अगरचंद नाहटा पोर भंवरलाल नाहटा ने कलकत्ते के एक जैन ज्ञानभण्डार में अन्य नाम (माग कोमदी गणिज्योतिर) से अभिहित छ: सौ वर्ष पुरानी पाण्डुलिपि को खोज निकाला और उसका प्रेस कापियां तैयार कर पुरातत्त्वाचार्य मुनि जिनविजय जी के पाम प्रकाशनार्थ भेना। वे मूल ग्रन्थ सन् १९६१ में "रत्नपरोक्षादि मप्तग्रन्थ संग्रह" नाम मे "गजस्थानप्राच्यविद्याप्रतिष्ठान", जोधपुर, द्वारा प्रकाशित हुए। इसमें (१) रत्नपरीक्षा, (२) द्रव्यपरीक्षा, (३) धातूत्पत्ति, (४) ज्योतिषसार, (५) गणितमार, (६) वास्तुसार, (७) खरतरगच्छ युगप्रवान चतुष्पदिका-ये मात ग्रन्थ थे। इनमे से वास्तुसार पं० भगवान दास जैन द्वारा जयपुर से मानुवाद पहले से प्रकाशित था। ये सभी विभिन्न विषयों के महत्त्वपूर्ण प्रतिनिधि ग्रन्थ हैं। इनमें 'ज्योतिषसार' और "गणितसार" के अतिरिक्त अन्य चारों ग्रन्थों का सम्पादन श्री भंवरलाल नाहटा ने कई वर्ष पूर्व किया था। "रत्न परीक्षा' नाहटा ब्रदर्स, कलकत्ताद्वारा सं० २०२० म प्रकाशित हई। "द्रव्यपरीक्षा" और "धानन्यत्ति" के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए इन्हें इस संस्थान से प्रकाशित करने का निर्णय किया गया। ___ इस ग्रन्थ के मूल रचयिता ठक्कुर फेरू एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् भोर तत्कालान भारताय शासनतंत्र के उच्चाधिकारी व्यक्ति थे। ये धांधिया गोत्र के परम जैन श्रावक थे। इन्होंने सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में दिल्ली राज्य के मंत्रिमण्डल में विभिन्न पदों पर रहकर अपने सक्रिय अनुभव से कुछ ग्रन्थों की रचना को थो। शाहो सजाने के रत्नों के अनुभव के आधार पर जिस प्रकार उन्हान "रत्नपराक्षा” का रचना का उसो प्रकार 'ढिल्लिय टकसाल कज्जठिए" अथात् दिल्ली टकशाल के गवनर के पद पर रह कर प्राचीन अवाचान सभी मुद्रामा का अनुभव प्राप्त कर "द्रयाराक्षा" लिखा। ठाकुर फरू ने अपने भाई अोर पुत्र के ज्ञानार्थ इसकी रचना सं० १३७५ में दिल्ला में का थी। ___ 'द्रव्यपरीक्षा' का केवल भारतीय साहित्य में ही नहीं विश्वसाहित्य में भी महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है। प्राचीन मुद्रा-सिक्कों के सम्बन्ध में यत्र-तत्र स्फट वर्णन प्राचीन साहित्य में भले हा पाये जायँ पर मात सौ वर्ष पूर्व एतद्विषयक स्वतंत्र रूप से रचित यह पुस्तक अपना विशिष्ट महत्त्व रखती है। भारतीय संग्रहालयों में प्राप्त सामग्रो के आधार पर यदि इम ग्रन्थ का विशद विवेचन किया जाय तो प्राचीन मुद्राओं के सम्बन्ध में एक नयी दिशा मिलेगी। इस ग्रन्थ में गाथा १ से ४ तक मंगलाचरण है। तत्पश्चात् चाशनी, चाशनी शोध विधि, उपादान धातुओं में सोसा, चाँदी, सोना आदि को चाशनी, Aho! Shrutgyanam Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( vi ) मिश्रदल शोधन, रौप्यवनमालिका, कनक वनमालिका, स्वर्ण व्यवहार, हास्य, मौल्य, तौल आदि धातु की पूर्व प्रक्रिया का वर्णन ५० गाथा तक किया गया है। इसके बाद मुद्राप्रकरण प्रारम्भ होता है। मुद्रा-प्रकरण में ठक्कुर फेरू ने तत्कालीन प्राप्य मंकड़ों प्रकार की रोप्य मुद्रा, स्वर्ण मुद्रा, त्रिधातु-मिश्रित-मुद्रा, द्विधातु मुद्रा, खुरासानी मुद्रा, अठनारी मुद्रा, गूर्जरी मुद्रा, मालवी मुद्रा, नलपुर मुद्रा, चंदेरिकापुर मुद्रा, जालंधरी मुद्रा और दिल्ली मुद्रा में पहले तोमर राजाओं की और वाद में ५५ प्रकार की तत्कालीन मुसलमानी मुद्राओं का स्वरूप देकर अलाउद्दीन सुलतान आदि की विविध मुद्राओं का वर्णन किया है। फिर सोना, चाँदी और ताँबे की अनेक मुद्राओं का स्वरूप वताया गया है। दूसरी पुस्तक “धातूत्पत्ति" है जो कुल ५७ गाथाओं में समाप्त होती है । इस में मंगलाचरण का अभाव है जवकि ठक्कुर फेरू के सभी ग्रन्थ मंगलाचरण से प्रारम्भ होते हैं। इस कृति में रचयिता ने न तो कहीं अपना नाम गाथाओं में दिया है और न रचनाकाल ही। पर सं० १४०३ की पुष्पिका के अनुसार ठक्कर फेरू हो इस पुस्तक के रचयिता हैं। अनुमानत: लेखक ने 'द्रव्यपरोक्षा' के परिशिष्ट के रूप में इसे लिखा। संवत १३७५ में 'द्रव्यपरीक्षा' लिखने के साथ ही इसकी रचना हुई। इसलिए दोनों पुस्तकों को क साथ प्रकाशित करने का निर्णय पाठकों को समीचीन लगेगा। ___ इसमें पीतल, ताँवा, सीसा, राँगा, काँसा, पारा, हिंगुलु और सिन्दूर का स्वरूप २७ गाथाओं तक बताकर कपूर, अगर, चन्दन, मृगनाभि कस्तूरी, कुंकुम तथा धूप के साथ-साथ दक्षिणावर्त शंख, रूद्राक्ष, शालग्राम आदि के दिव्य प्रभाव का परिचय कराया गया है । "द्रव्यपरोक्षा" और "धातूत्पत्ति” को विद्वज्जगत् के समक्ष उपस्थित करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष और सन्तोष का अनुभव हो रहा है। यदि इनसे गम्भीर अध्ययन और शोध-कार्य में लगे व्यक्तियों को कुछ भो लाभ हो सका तो संस्थान अपने उद्देश्य में सफल होगा। पुस्तकों की सुन्दर और आकर्षक छपाई के लिए तारा प्रिंटिंग प्रेस, वाराणसी के व्यवस्थापकों को धन्यवाद दिए विना मैं नहीं रह सकता। अपने सहयोगियों को भी उनके परामर्श और सहयोग के लिए मैं धन्यवाद देता हूँ। नागेन्द्र प्रसाद निदेशक प्राकृत जैन शास्त्र एवं अ संस्थान, वैशाली। Aho! Shrutgyanam Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना जयपुर वाले पं० भगवानदास जैन ने सर्व प्रथम ठक्कुर फेरू के वास्तुसार प्रकरण को गुजराती व हिन्दी अनुवाद सहित सचित्र सुसम्पादित कर प्रकाशन किया तभी से उन ठक्कुर फेरू की प्रसिद्धि विद्वत् समाज में व्याप्त हो गई थी। उस प्रकरण के साथ रत्नपरीक्षा का कुछ त्रुटक भाग भी प्रकाशित हुआ था। इसके पश्चात् जव सं० १९९४ में हमने "दादा जिनकुशलसूरि" पुस्तक लिखी तो युगप्रधानाचार्य गुर्वावली में भी कन्नाणा और दिल्लो के अधिवासी इस परमाहत श्रावक का नाम दिल्ली के मुख्य श्रावकों के साथ कई बार आया। जैन साहित्य महारथी श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने "जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास" में इनके ग्रन्थों का नामोल्लेख किसी ज्ञानभण्डार की सूची के आधार पर किया पर उन्ोंने स्वयं इनके ग्रन्थ देखे हों ऐसा नहीं लगता। उस विशाल ग्रन्थ में से नाम के आधार पर ग्रन्थ का आशय आकलन कर लेना समुद्र में से रत्न खोज के निकालने जैसा कठिन कार्य था। और आजतक किम प्राधार से देसाई महोदय ने नामोल्लेख किया इसका कोई पता नहीं लगा और न किसी प्रति की हो उपलब्धि हुई। कलकत्ता की श्री नित्य-विनय-मणि-जीवन जैन लायब्ररी से हमारा संबन्ध लगभग ४५ वर्षों से था। वहाँ से हम यथावश्यक हस्तलिखित ग्रंथ निकलवा कर लाते और समुचित उपयोग करते थे और अलभ्य या नवोन ग्रंथ कहीं से भी प्राप्त होता तो उसकी खोज में सतत संलग्न रहते थे। सं० २००१ में एक बार मैंने हस्तलिखित ग्रंथसूची देखते “सारा कौमुदी गणित ज्योतिष" नामसे उल्लिखित ठक्कुर फेरू की ६० पत्रों वाली प्रति का नाम देखा तो उसे अपनी नोट बुक में फिर कभी ग्राकर अवश्य देखने के लिए नोट कर लिया। थोडे दिन वाद पूज्य काकाजी अगरचंदजी नाहटा बीकानेर से पधारे । उन्होंने मेरी नोटबुक में नाम देखा तो उन्हें विलम्ब कहाँ था ? तुरन्त जाकर प्रति निकलवा कर देखी तो प्रानन्द की सीमा न रही क्योंकि उस सूची में उल्लिखित उक्त नामक ग्रंथ के विपरीत ठक्कुर फेरू के विविध विषय के सात ग्रन्थ थे जिनमें 'द्रव्यपरीक्षा' तो अपने विषय का एक बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ था। - काकाजी ने उस प्रति को लाकर सुन्दर प्रेसकापी बनाने के लिए मुझे सौंपा और पुरातत्त्वाचार्य मुनि श्री जिनविजय जी को इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि की सचना दी। उन्होंने इसे सिंघी जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित करने की उत्सुकता वतलाई और मैंने यथाशीघ्र सभी ग्रन्थों को प्रेम कापी तैयार कर प्रकाशित वास्तुसार के पाठान्तगदि सह मुनि जी को बम्बई भेज दी। मूनि जी ने मूल प्रति देख कर प्रकाशन करने का निर्णय किया। मूल प्रति भी उन्हें दी गई पर Aho! Shrutgyanam Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( viii ) उनके भारतीय विद्या भवन छोड कर राजस्थान पधार जाने पर उसका प्रकाशन निरन्तर प्रेरणा के फल स्वरूप राजस्थान पुरातत्त्व ग्रन्थमाला से सं० २०१७ में हो पाया। इसी बीच हमने ठक्कर फेरू के ग्रन्थों का परिचायक निबन्ध इलाहा. बाद से प्रकाशित "विश्ववाणी" को भेज दिया जो उसमें प्रकाशित हआ। उपाध्याय श्री सुखसागर जी के कलकत्ता पधारने पर मैंने उनके शिष्य मुनि कान्तिसागर जी को फेरू के ग्रन्थों की सूचना दी तो उन्होंने भी तत्काल एक निबन्ध लिखकर "विशाल भारत" मासिक में प्रकाशित किया। इस प्रकार ठक्कुर फेरू की प्रसिद्धि साहित्य संसार में व्याप्त हो गई। ___ काकाजी अगरचंदजो की आज्ञा से मैंने १ रत्न परीक्षा २ युगप्रधान और ३ धातूत्पत्ति प्रकरण का हिन्दी अनुवाद कर डाला था पर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रस्तुत द्रव्यपरीक्षा का अनुवाद करना बाकी था। काकाजी ने डा. वासुदेव शरण अग्रवाल को इसको सूचना दी और लाहौर वाले डॉ० बनारसीदास जैन को इसका अनुवाद करने का भार सौंपा। डॉ० साहव ने पांच गाथाओं का अनुवाद करके नमूने स्वरूप भेजा पर उन्हें सन्तोष न हुआ। इसके बाद काकाजी ने मुझे आदेश दिया कि तुम्हारे से जैसा भी हो सके अनुवाद कार्य सम्पन्न कर दो। मैंने लगभग बीस वर्ष पूर्व उसका जैसा भी समझ में आया अनुवाद करके भेज दिया। डा. वासुदेव शरणजी ने इसे मूल अनुवाद और टिप्पणी आदि सहित न्यूमेस्मेटिक सोसायटी से प्रकाशित करा देने को कहा था पर उसे सचारु सम्पादनार्थ रख छोड़ा। मेरी कापी उनके पास ही रही जिसे उनके स्वर्गवास के पश्चात् हमने प्राप्त करके इसकी ऐतिहासिक टिप्पणी लिखने के लिए अपने विद्वान् मित्र डा० दशरथ शर्मा को सौंपा। उन्हें भी अवकाश न मिला और सात-आठ वर्ष के पश्चात् काकाजी ने जोधपुर जाकर वह कापी लाकर मुझे भेजी जिसमें अन्त के कुछ पृष्ठ खो गए थे। मैंने बोस वर्ष पूर्व किए अनुवाद को फिर से मिलाकर नये रूप में तैयार करना प्रारंभ किया और जैसा हो सका प्रस्तुत किया। यद्यपि पारिभाषिक शब्द बाहल्य और विषय की अनभिज्ञतावश जैसा अनुवाद हना है उसे सन्तोषजनक तो नहीं कहा जा सकता पर जिस रूप में बना उसे विद्वानों के समक्ष रख कर प्रकाश में ला देना ही आवश्यक समझा ताकि अधिकारी विद्वान् इस विषय में विशेष शोध पूर्वक महत्वपूर्ण सामग्री विद्वत् संसार के समक्ष प्रस्तुत कर सकें। -भंवरलाल नाहटा Aho! Shrutgyanam Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका प्रचीन भारतीय वाङ्मय में यहाँ की समृद्धि अद्वितीय थी और असंख्य स्वर्णमुद्राएँ लोगों के पास विद्यमान थी । आज के समय में उसकी तुलना नहीं की जा सकती । राजाओं और सेठ साहूकारों के दान की राशि लाखों करोड़ों स्वर्ण मुद्राएं थीं । विभिन्न देश की मुद्राओं से भण्डार भरपूर रहता था । यद्यपि कई स्थानों में आदिवासी लोग सौ वर्ष पहले भी वस्तुनों के परिवर्त्तन से काम चलाते थे पर इससे मुद्राओं का अभाव नहीं समझ लेना चाहिए । प्राचीन साहित्य में स्वर्ण, हेम, कनक, सोनैया, द्रव्य, दीनार, टंका आदि नामों से लाखों करोड़ों के दानादि का वर्णन पाया जाता है । मध्यकालीन साहित्य में भी मुद्राओं का उल्लेख स्थान-स्थान पर पाया जाता है । प्रबन्ध चिन्तामणि ( पृ० १२ ) में सालाहन ने चार गाथायें दस करोड़ स्वर्ण देकर ग्रहण की, लिखा है । विक्रमादित्य और भोज-भीम के प्रबन्धों में भी दान में करोड़ों स्वर्ण मुद्रायें देने का उल्लेख है । उसी के पृ० ३५ में काव्य के पारितोषिक में आठ करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ दी, लिखा । पू० ६९ में मयणल्ल देवी ने बहत्तर लाख का बाहुलोड़ कर उठवा दिया लिखा है । पुरातन प्रबन्ध संग्रह के पृ० ३० में आरासणीय नेमिचैत्यप्रबन्ध में 'दीनार सहस्र ४५ विमलो निर्गतः' लिखा है । उस जमाने में कागज के नोटों का प्रचलन नहीं था। एक देश की मुद्रा दूसरे देश में उसमें रहे हुए धातु द्रव्य के आधार पर नाणावट का व्यापार और मुद्रा परिवर्तन चलता था । ठक्कुर फेरू के प्रस्तुत ग्रंथ से यह चारुतया प्रमाणित है । ग्रन्थसार : द्रव्य परीक्षा का निर्माण ठक्कुर फेरू ने दिल्ली की टकसाल के अधिकारी रूप में रहकर अपने विशाल अनुभव से किया है। इसकी प्रारंभिक तीन गाथाओं में पहली में महालक्ष्मी को नमस्कार मंगलाचरण दूसरी व तीसरी में दिल्ली की टकसाल के अधिकारी रूप में रहकर भ्राता और पुत्र के लिए इस ग्रन्थ की रचना का संकल्प करते हुए चौथी गाथा में उसके पहले प्रकरण में चासनी का दूसरे में स्वर्ण रौप्य शोधने का तोसरे में मूल्य और चौथे में सर्व प्रकार की मुद्राओं का वर्णन करूँगा लिखा है। गाथा ५ से ७ तक चासनी की विधि, गा० ८-९ में सीसे की चासनी गा० १० में रौप्य चासनी और गा० १४ तक नाणय, उहक्क, हरजम, रीणी और चक्कलिय द्रव्य की चासनी के पांच प्रकार कहे हैं। गा० १५-१६ में सलाहो ढालने की विधि कही है । गा० १७ से २३ तक सोने को शुद्ध करने की चासनो का वर्णन, गा० २४-२५ में चाँदी और गा० २६-२९ तक मिश्रवल शोचन विधि है। गा० ३० मं कण चर्ण शोधन, ३१-३२ में चाँदी की वनमालिका बनवारी और गा० ३७ तक सोने की वन Aho! Shrutgyanam Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ब्रम्यपरीक्षा मालिका विधि वतलाई गई है। गा०४१ तक स्वर्ण व्यवहार, गा०४२-४३ में धातु की छीजत औरगा० ४४ से ४५ तक मूल्य निकालने की विधि बतलाई इसके पश्चात् मुद्राओं का प्रकरण आरंभ होता है। गा० ५१ से ५५ तक रौप्य मुद्रायें वर्णित हैं जैसे पूतली, खीमली, कजानी, प्रादनी, रीणी, रूवाई, खराजमी और वालिष्ट । मुद्राओं का मूल्य बताते हुए देवगिरी-दौलताबाद की सीघण (१२१० से १२४७) इकमसी तारा, अधमसी (गा० ५४) करारी, खटियालग, रीणी और नरहड़ मुद्राओं का मूल्य अपनी नजर से या अग्नि में तपा कर चासनी से परीक्षा करनी चाहिए लिखा है। गा०५६ में भगवान रामचंद्र की पूजनीय दो प्रकार की संयोगी और वियोगी सीतारामी स्वर्णमुद्राओं का वर्णन किया गया है जो विना भुनाने गलाने योग्य है। गा० ५७ में चौकड़िया, सीरोहिया और त्रिभुवनगिरी के यादव राजा कुमारपाल की 'कुमरू' मुद्रा का वर्णन किया गया है। ५८वीं गाथा पद्मा मुद्रा का वर्णन करती है। गा० ५९-६० में फिर देवगिरि की सीघण, महादेवी, ठाणकर, लोहकंडी, बाणकर (रामवाण) चोखीराम-खड्डघर एवं केसरी और कौलादेवी मुद्राओं का वर्णन है। गा०६१ में लिखा है कि और भी मुद्राओं और चारमासे की दीनार आदि स्वर्ण मुद्राओं का मूल्य सोने की बान और तोल से जानना चाहिए। गा०६२ से ७२ तक त्रिधातु मुद्राओं का वर्णन है । सभी मुद्राओं में प्रतिशत कितना सोना कितना चाँदी और कितना तांवा है, इसकी तौल और मोल एवं जिस कोटि की धातु उसमें व्यवहृत हई है, उसका वर्णन है। वाराणसी की पद्मा मुद्रा की धातु-परिमाण बतलाकर जितशत्रु राजा की भगवा मुद्रा का वर्णन किया गया है जो भगवान के दर्शन के हेतु वनवायी हुई सीतारामी मुद्रा के सदृश पूजनीय थी। आगे विलाईकोर, वीरब्रह्म (वीरवर्म चंदेल), हीरावर्मा और त्रिलोकवर्मा की मुद्राओं का वर्णन कर भोज की विविध मुद्रानों का उल्लेख मात्र किया गया है। वालंभ या वल्लभ मुद्रा भी त्रिधातु निर्मित थी, जिसका मूल्य जीतल-जयपाल मुद्रा से आंका जाता था। ___ इसके पश्चात् गा. ७३ से खुरासानी द्विधातु मुद्राओं का वर्णन है जिन पर पारसीलिपि में चिन्हाक्षर लिखे रहते हैं । ये भंभई, एकटिप्पी, सिकदरी, कुरुलुकी, पलाहोरी, समोसी, लगामो पेरी, जमाली और मसूदी कई प्रकार की थीं। ७८ वीं गाथा में अब्दुली और कुतुली नामकी अठनारी मुद्राओं का वर्णन है। गा० ७९ से ८१ तक महाराजा विक्रमादित्य की गोजिगा, दउराहा, भीमाहा, चोरी मोरी, करड़, कूर्मरूपी व कालाकचारि नामक चांदी-तांबे की द्विधातु मुद्राओं का मोल-तोल धातु-परिमाण बतलाया गया है। गा० ५२ से ९३ तक गुजरात के महाराजा कुमारपाल, अजयपाल, भीमदेव, लवणप्रसाद, वीसलदेव और अर्जुनदेव की कुमरपुरी, अजयपुरी, भीमपुरी, Aho! Shrutgyanam Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका लगवसा, वीसलपुरी (कुण्डे और गूगले दो प्रकार की तथा डोलहर) व अर्जुनपुरी और कटारिया मुद्राएं आसपाल की आसपालपुरी नृपति सारंगदेव की साढलपुरी, लाखापुरी, गविका, पडिया और रजपलाहा, साठसया, वराह, विनाइकाचंदी, कल्हड़पुरी, वाणमुद्रा और मछवाहा मुद्राएं वणित हैं। गा० ९३ में चौतीसा, पैतोसा, छतीसा, सैंतीसा और मालवपुरो छारीया मुद्राओं का मूल्य चासनी के अनुसार मालूम करने का निर्देश किया गया है। गा० १४ से गा० १०० पर्यन्त मालवी मुद्राओं का विशद वर्णन है जिनमें चौकड़िया, दिउपालपुरी, कुंडलिया, कउलिया, छडुलिया, सेलकी-तोगड़, जानीयाचित्तौड़ी, जकारिया, गलहुलिया, खालगा, सिवगणा, वापड़ा, मलीता, सीहमार, चोरमार मुद्राओं के प्रतिशत तोल मोल और धातु का परिमाण वतलाया गया है। गा० १०१ से १०३ तक नलपुरी मुद्राओं का वर्णन है जो तीन प्रकार की चांहडी मुद्रा थी-दुओतरी, अंककी और पुराणी। इसी प्रकार आसली मुद्रा भी सतरहोतरी, ठेगा और नवीठेका तीन प्रकार की होती थीं। गा० १०४ से १०८ तक चंदेरी संबंन्धी मुद्राओं का वर्णन है जो कोल्हापुरो, जग्यिा , होरिया, अकुड़ा, जइत, वीरमुन्द, लक्ष्मणी, राम, वव्वावरा, मसीणा और खसर-इतने प्रकार की थों।। गा० १०९ और ११० में जालंधरी मुद्राओं का वर्णन है। ये वडोहिय मुद्राएं चार प्रकार की थीं ! जैसे जइतचंदाहे, रूपचंदाहे त्रिलोकचंदाहे और सांतिउरीमाहे । ये नगरकोट-कांगड़ा के जैन राजानों की थीं। इन सबके धातुका परिमाण, तोल-गोल बड़ी खूबी से वर्णित हैं। इसके पश्चात् गा. १११वीं में दिल्ली के तोमर राजपूत राजाओं की चार प्रकार की मुद्रामों का वर्णन है। ये दिल्ली के अंतिम हिन्द राजा थे जिनके उत्तराधिकारी पृथ्वीराज चौहान के पश्चात् मुसलमानी सल्तनत का अधिकार हो गया था। ये मुद्राएँ अनंगपलाहे, मदनपलाहे पिथ उपलाहे और चाहड़पलाहे चार प्रकार की थीं। दुर्भाग्य को वात है कि इन राजाओं के सम्बन्ध में भारतीय इतिहास अवतक मौन-सा है। सं. १३०५ की लिखी हुई खरतरगच्छोय युगप्रधानाचार्य गुर्वावली के राजा मदनपालको मणिधारी दादा श्रीजिनचन्द्र सूरिजी द्वारा (स० १२२३) प्रतिवधि का उल्लेख है, जो ठक्कूर फरू की द्रव्य-परीक्षा से भो समथित है। गाथा ११२ से १३३ तक मुसल्मानी शासन में प्रवत्तित मुद्राओं का वर्णन है। ये विविध प्रकार की और नाना तोल-मोल की थीं। उनकी नामावली इस प्रकार है सूजा, साहवदीनी, महमूदसाही, चउकडीया, कटका, सखा, मखिया, कुण्डलिया, छुरिया, जगटपलाहा, दुकड़िया ठेगा, कुवाइचीजजीरी, फरीदी, परसिया, चउक, वफा, खकरिया, नींवदेबी, धमडाहा, जकारिया, अलावदीनी, Aho! Shrutgyanam Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा सतका समसी, मोमिनी अलाई, सेला समसी, तितीमीसी, कुव्वखानी, खलीफती, अधचंदा, और सिकंदरी समसुद्दीन के पुत्रों की मुद्राएँ - हकुनी, पेरोजसाही, बारहोतरी; रजिया बेगम की रद्दी मुद्रा जिसके दो प्रकार थे एक दिल्ली और दूसरी बदायूँ की टकसाल में ढली हुई ; मउजी मुद्राएं वारहोतरी प्रकार की - नवका और पनका ; सोलहोतरी और पनरहोतरी मुद्राएं तथा छका मुद्रा भी मौजुदीन की ही थी जिनके मोल तोल में सामान्य अन्तर था । * गा. १२५ से १३० पर्यन्त पिरोजसाह के पुत्र अलाउद्दीन, मसूदीसाह की वलवाणी इकंगी, बलवानी वामदेवी और त्रिशूलिक चौकड़िया, सिन्ध प्रान्त के मरोट, उच्च और मुलतान की टकसाल प्रचलित मरोटी, मुलथानी उच्चई और इगानी रोटी का उल्लेख है । सुकारी मुद्रा भी मरोटी इगानो के समकक्ष मोल तोल वाली थी। सीराजी, मुख्तल्फो काल्हणी, नसीरी दिल्ली के टकसाल में ढली हुई थी। इसके बाद दकारी मुद्रा का वर्णन है । गा. १३१ में गयासुद्दीन बलबन की गयासी- दुगानी, मउजी तिगानी, और समसीसा का, गा. १३२ में जलालुद्दीन की जलाली, और हकुनुद्दीन की प्रवर्त्तमान रुकुनी मुद्रा का वर्णन है । गा० १३३ में लिखा है कि अन्यान्य देशों में बनी हुई विविध अज्ञात मुद्राओं को पन्द्रहगुने सीसे के साथ शोध करके तद्गत चांदी के अनुपात से उनका मूल्य जानना चाहिए । १३४ गाथा से १३६ तक ठक्कुर फेरू ने अपने समय में वर्त्तमान सुलतान अलाउद्दीन की मुद्राओं का वर्णन करते हुए बतलाया है कि उसकी छगाणी मुद्राएं दो प्रकार की व इगाणी भी दो प्रकार की हैं। इगानी मुद्रा में ९५ टांक तांबा और ५ टांक चांदी एक सौ मुद्राओं में है । वह एक ही प्रकार की है और राजदरबार में तथा सार्वजनिक व्यवहार में इसी का प्रचलन है । १३७ गाथा में लाया गया है कि हम टंका स्वर्ण मुद्राएं इगतोलिया, पंचतोलिया, दसतोलिया, पचासतोलिया व सौतोलिया होती हैं । दीनार चारमासे को व चांदी का टंका एक तोले का होता है । गाथा १३८ में कहा है कि सहाबुद्दीन की लघु मुद्राएं चार मासे तक को । किन्तु इम्म, छगानी और टंका सभी चांदी सोने की मुद्राएं एक तोले की होती हैं । ठक्कुर फेरू विद्वान, राजनीतिज्ञ और सर्वतोमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति था। वह जैन धर्म के प्रति दृढ़ श्रद्धालु श्रावक था । उसकी रचनाओं के अन्त में उसे 'परम जैन' लिखा है । उसने खरतर गच्छीय वाचनाचार्य राजशेखर के पास जब वह कन्नाणा में रहता था, सं० १३४७ में युगप्रधान चतुष्पदिका की रचना की थी । उस समय उसकी तरुणावस्था थी और उसके बाद वह राजनीति में प्रविष्ट हो कर अलाउद्दीन सुलतान के मंत्रिमण्डल में आया । वह अलाउद्दीन के शाही खजाने का अधिकारी था । वहाँ के रत्नों के अनुभव से सं १३७२ में उसने रत्न- परीक्षा ग्रन्थ का निर्माण किया। अलाउद्दीन का देहान्त हो जाने पर सं० १३७३ में वह संभवतः उसके उत्तराधिकारी बंदिछोड़ विरुद Aho! Shrutgyanam Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका वाले सुलतान कुतुबुद्दीन के शासन में टकसाल के गवर्नर रूप में नियुक्त हुआ और वहां के परिपक्व अनुभव के आधार पर ही उसने 'द्रव्यपरीक्षा' का निर्माण सं० १३७५ में किया। कवि ने स्वयं प्रारंभिक दूसरी गाथा में "ढिल्लिय टंकसाल कज्जठिए" वाक्य द्वारा इसे व्यक्त किया है। द्रव्य परीक्षा की गा० १३९ में ठक्कुर फेरू ने लिखा है कि अब मैं 'राजबन्दिछोड़' विरुद वाले सुलतान कुतुबुद्दीन की नाना प्रकार की चौरस व गोल मुद्राओं का मोल तोल कहता हूँ। गा० १४० में उसने लिखा है कि सोने की ३२, चाँदी की बीस, ७ प्रकार के द्रम्म और ४ प्रकार की ताम्र, कुल मिला कर ६३ हई। गा० १४१-४२ में १४ गोल १४ चौरस १ तेरहमासी और तीन लघु मुद्रा कुल ३२ स्वर्ण मुद्राओं का एवं गा० १४३ में चांदी के रुपयों में १४ चौरस १ गोल रुपया एवं ५ लघु मुद्राओं का वर्णन किया गया है। गा० १४४ में लिखा है कि दुगानी, छगानी मुद्राओं में चाँदी व ताँबे का परिमाण अलाउद्दीन को मुद्राओं के सदश ही है। गा० १४५ में गोल चौगानी मुद्रा का मोल तोल एवं गा० १४६-४७ में अठगानी, बारहगानी, चौवीसगानी, अड़तालीसगानी मुद्राओं में चाँदी व ताम्र धातु का परिमाण, मोल तोल लिखा है। गा० १४८ में विसुवा, सवा विसुवा, ढाई विसुवा, पाँच विसुवा तक के चौकोर ताम्र-मुद्रा का उल्लेख कर अन्तिम गा० १४६ में सं० १३७५ वर्ष में चन्द्र के पुत्र ठक्कुर फेरू ने अपने पुत्र और भ्राता के लिए इस दिशासूचक 'द्रव्यपरीक्षा' को रचना की, ऐसा लिखा है। ठक्कुर फेरू को रचनाएं ठक्कुर फेरू ने गणितसार ग्रन्थ की रचना भो राजकीय मालगुजारी आदि पदों पर रह कर की थी। उसने गणितसार के चतुर्थ अध्याय को प्रथम गाथा में लिखा है: "ढिल्लिय रायट्टाणे, कज्ज भूय करण मझमि । जं देस लेह पयड़ी, तं फेरू भणइ चंद सुओ ॥१॥" उसने रत्न परीक्षा ग्रन्थ कलिकाल चक्रवर्ती सम्राट अलाउद्दीन खिलजो के रत्नागार के अनुभव से सं० १३७२ में लिखा था। इससे वह अलाउद्दीन सुलतान के मंत्रिमण्डल में विविध विभागों में चिरकाल तक रहा विदित होता है। रत्न परीक्षा को चौथी गाथा देखिए "अल्लावदीण कलिकाल चक्रवट्टिस्स कोस मज्झत्थं । रयणायक व्य रयणुच्चयं, च नियदिट्ठिए दलृ ।।४॥" इसी वर्ष में उसने तीन ग्रन्थों को रचना की थी जिसमें रत्नपरीक्षा दिल्ली में और वास्तुसार प्रकरण विजयादसमो के दिन कन्नाणापुर में रचित हुई। ज्योतिषसार में रचना स्थान का उल्लेख नहीं है। Aho ! Shrutgyanam Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यपरीक्षा ठक्कूर फेरू ने अपनी प्रथम रचना 'युग प्रधान चतुष्पदिका' केवल अपभ्रंश में की है । अवशिष्ट सभी कृतियाँ प्राकृत में हैं। उसकी भापा सरल, प्रवाही और अपभ्रंश या तत्कालीन लोक भाषा के प्रभाव से पूर्णतया प्रभावित है। ग्रन्थोक्त अनेक विषय तत्कालीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति, वस्तुव्यापार, शिल्प स्थापत्य एवं जानतिक संस्कृति पर विशद और महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। इनकी कृतियों का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है। १. युगप्रधान चतुष्पदिका-यह कृति तत्कालीन लोकभाषा अपभ्रंश में २८ चौपई व एक छप्पय में रची गई है। इसमें भगवान महावीर से लगाकर खरतर गच्छ के युगप्रधान प्राचार्यों को नामावलो निवद्ध है। आचार्य श्री बद्धमानसरि के पट्टधर श्री जिनेश्वरसरि से खरतर गच्छ हुआ। उनके परवर्ती आचार्यों के संबन्ध में कतिपय संक्षिप्त ऐतिहासिक वृत्तान्तों का भी निर्देश किया गया है । यतः (१) श्री जिनेश्वरसूरिजी ने अणहिलपुर पाटण में दुर्लभराज के समक्ष ८४ आचार्यों को जीतकर वसति मार्ग प्रकाशित किया। (२) श्री जिनचंद सूरि ने अपने उपदेशों द्वारा नपति को रंजित किया एवं 'संवेगरंगशाला' नामक विशिष्ट ग्रन्थ की रचना की। (३) श्री अभयदेवसूरि ने ९ अंगों पर टीकाएं बनाई एवं स्तंभन पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट की। (-) श्री जिनवल्लभ सूरि ने नंदी, न्हवण, रथ, प्रतिष्ठा युवतियों के ताल्हारास आदि जिन मन्दिरों में रात्रि में किए जाने का निषेध किया। (५) श्री जिनदत्तसूरि ने उज्जैन में ध्यान बल से योगिनी चक्र को प्रतिवोध दिया। शासन देवता ने इन्हें 'युगप्रधान' पद धारक घोषित किया। (६) श्री जिनचंद्रसूरि बड़े रूपवान थे। इन्होंने बहुत से श्रावकों को प्रतिवोध दिया। (७) श्री जिनपतिसूरि ने अजमेर के नपति (पृथ्वीराज) की सभा में पद्मप्रभ को पराजित कर जयपत्र प्राप्त किया। (८) श्री जिनेश्वरसूरि ने अनेक स्थानों में जिनालय एवं तदुपरि ध्वज, दण्ड, कलश, तोरणादि स्थापित किये एवं १२३ साधु दीक्षित किए। इनके पट्टघर श्री जिन प्रबोधरि के पट्टधर श्री जिनचंद्रसूरि के समय में कराणा में वाचनाचार्य राजशेखर गणि के समीप, सं० १३४७ माव मास में इस चतुष्पदी की रचना हई। इसकी एक प्रति हमें जैसलमेर भण्डार का अवलोकन करते हए प्राप्त हई थी। इसे पत्राकार में व प्रतिक्रमण पुस्तक में उपाध्याय श्री सुखसागर जी ने प्रकाशित की थी। वह रचना संस्कृत छाया व हिन्दी अनुवाद सह राजस्थान भारती में भी प्रकाशित हुई थी। Aho! Shrutgyanam Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका २. रत्नपरीक्षा-यह ग्रन्थ १३२* प्राकृत गाथानों में है । संवत् १३७२ में दिल्ली में सम्राट अलाउद्दीन के शासन में स्वपुत्र हेमपाल के लिए प्रस्तुत ग्रंथ की रचना की गई। पूर्वकवि अगस्त्य और बुद्धभट के ग्रंथों के अतिरिक्त शाही रत्नकोश की अनुभूति द्वारा अभिलषित विषय का सुन्दर प्रतिपादन किया गया है। ३. वास्तुसार-शिल्प स्थापत्य के विषय में प्रस्तुत ग्रंथ प्रामाणिक माना जाता है और जैन समाज में इसकी पर्याप्त प्रसिद्धि है । पं० भगवानदासजी ने हिन्दी गुजराती अनुवाद सहित इसे जयपुर से प्रकाशित भी कर दिया है। प्रस्तुत प्रति सं० १४०४ की लिखित है और मुद्रित संस्करण से पाठ भेद का प्राचुर्य है। इसके पाठान्तर हमने "रत्नपरीक्षादि सप्तग्रन्थ संग्रह में दिए हैं। इसकी रचना सं. १३७२ विजयादशमी को कन्नाणापुर में हुई। ४. ज्योतिषसार-यह ग्रंथ संवत् १३७२ में २४२ प्राकृत गाथाओं में रचित है, जिसकी श्लोक संख्या, यंत्र, कुण्डलिका सह ४७४ होती है। इसमें ज्योतिष जैसे वैज्ञानिक विषय का वड़ी कुशलता के साथ निरूपण किया गया है। इसके अन्त में कुछ स्फुट पद्य प्राप्त हुए जिन्हें जोधपुर से प्रकाशित संग्रह के परिशिष्ट में दे दिया गया है। ५. गणितसार कौमुदी-यह ग्रन्थ कुल ३११ गाथानों में है। गणित जमे शुष्क और बुद्धिप्रधान विषय का प्रतिपादन करते हुए ग्रन्थकार ने अपनी योग्यता का अच्छा परिचय दिया है। इस ग्रन्थ के परिशीलन से तत्कालीन वस्तुओं के भाव, तौल, माप, विविध प्रकार के नाम इत्यादि सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक परिस्थिति का सूचारु परिज्ञान हो जाता है। वस्त्रों के नाम, उसके हिसाव, पत्थर, लकड़ी, सोना, चाँदी, धान्य, घृत-तैलादि के हिसाबों के साथसाथ क्षेत्रों का माप, धान्योत्पत्ति, राजकीय कर, मुकाता इत्यादि अनेक महत्त्वपूर्ण वातों पर प्रकाश डाला गया है। इसके कतिपय प्रश्न देश्य भाषा के छप्पयों में भी हैं जो भाषा सम्बन्धी अध्ययन की दृष्टि से भी अपना वैशिष्ट्य रखते हैं। ६. धातूत्पत्ति-इसमें प्राकृत की ५७ गाथाओं में पोतल, तांबा, सीसा प्रभृति धातुओं की उत्पत्ति विधानादि के साथ हिंगुल, सिन्दूर, दक्षिणावर्त्तसंख, कपूर, अगर, चंदन, कस्तूरी आदि वस्तुओं का भी विवरण दिया गया है, जो कवि के वहुज्ञ होने का सूचक है। ७. द्रव्य परीक्षा-प्रस्तुत ग्रंथ पाठकों के हाथ में है। * पं० भगवानदासजी के प्रकाशित वास्तुसार (गुजरातो अनुवाद सह) के अन्त में रत्नपरीक्षा (गा० २३ से १२७) छपो है। उसके बीच की ६१ से ११९ तक की गाथाएं धातूत्पत्ति की है। इसमें पर्याप्त पाठ भेद है। उक्त ग्रंथानुसार रत्नपरीक्षा १२७ गाथाओं की होती है , पर वास्तव में उसमें बीच की बहत सी गाथाएं छूट गई है। Aho! Shrutgyanam Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा ८. भूगर्भशास्त्र-यह ग्रन्थ अद्यावधि अप्राप्त है। स्वर्गीय मनि कान्तिसागरजी ने इस ग्रन्थ की सूचना दी थी पर उन्होंने कहीं भी इसे या इसके आदि-अन्त्यप्रशस्ति प्रादि नहीं प्रकाशित की। अतः निश्चयपूर्वक कुछ वता सकना कठिन है। प्रति परिचय फेरू की कृतियों की हमें जो एक मात्र प्रति मिली वह ६० पत्रों की है। उसके लिपिकर्ता ने जो लेखन समय दिया है उसमें विदित होता है कि इसका लेखन सं० १४०३ के फाल्गुन से चैत (सं० १४०४) में पूर्ण हुआ अर्थात् लगभग '२' महीने में यह प्रतिलिपि हुई । इसे सा० भावदेव के पुत्र पुरिसड़ ने लिखी थी और किनारे "पतनीय प्रति" लिखा होने से मालूम होता है कि यह प्रति कभी पाटण के ज्ञान भण्डार में रही होगी। निम्नोक्त लेखन प्रशस्ति तीन कृतियों के पश्चात् लिखी हुई यहाँ उद्धत की जाती है (१) "इति ठक्कुर फेरू विरचिते धातूत्पत्ति प्रकरण विधि: समाप्तः श्री विक्रमादित्ये संवत् १४०३ वर्षे फागुण सु० ८ चन्द्रवासरे मृगसिर नक्षत्रे लिखितं । सा० भावदेवाङ्गज पुरिड़ । आत्मवाचनपठनार्थे शुभमस्तु । (२) संवत् १४०३ फा० शु० ८ लि. (युगप्रधान चतुष्पदिका) (३) लिखितं चैत्र सुदी ५ संवत् १४०४ (गणितसार) द्रव्य परीक्षा की रचना सं० १३७५ में हुई और उसके २८ वर्ष पश्चात् लिखी हुई प्रस्तुत प्रति प्राचीनतम है। इसमें कोष्टक, चित्र आदि यथा स्थान दिए गए हैं जिसमें ग्रन्थगत भावों को आत्मसात् करने में बड़ी सहायता मिलती है। इस प्रति में सातों ग्रन्थ इस प्रकार हैं : १. पत्राङ्क १ से १८ तक में ज्योतिषसार २. , १९ से २७A ,, द्रव्यपरीक्षा ३. , २८ से ३५ , वास्तुसार ४. , ३६ से ४१A ,, रत्नपरीक्षा ५. , ४१० से ४३A ,, धातूत्पत्ति ६. , ४३ से ४४ , युगप्रधान चतुष्पदी ७. , ४५ से ६० , गणितसार ठक्कुर फेरू ने अपने ग्रन्थों में जो अपना परिचय स्वयं दिया है वह सर्वाधिक प्रामाणिक होने से उन गाथाओं को यहाँ उद्धत किया जा रहा है। सिरिमाल कुलुत्तंसा ठक्कुर चंदो जिणिदपयभत्तो। तस्संगरुहो फेरू जंपइ रयणाण माहप्पं ॥२॥ Aho! Shrutgyanam Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका अल्लावदीण कलिकाल-चक्कवट्टिस्स कोसमज्झत्थं । रयणायकव्व रयणुच्चयं च नियदिट्ठिए दठ्ठ॥४॥ सिरि घंधकुले आसी कन्नाण-पुरम्मि सिद्धि कालियओ। तस्सुव ठक्कुर चंदो फेरू तस्सेव अंगरुहो ॥१३१।। तेणिह रयणपरिक्खा विहिया नियतणय हेमपालकए। कर मुणि गुण ससि' वरिसे अल्लावदी विजयरज्जम्मि ॥१३२॥ तेण य रयणपरिक्खा रइया संखेवि ढिल्लिय पुरीए । कर मुणि गुण'ससि'वरिसे अल्लावदोणस्स रज्जम्मि ॥१२६।। ____ x x x x x [रत्नपरीक्षा] जे नाणा मुद्दाई सिरि ढिल्लिय-टंकसाल कज्जठिए । अणुभूय करिवि पत्तिउ वन्हि मुहे जह पयाउ घियं ॥२॥ तं भणइ कलसनंदण चंदसुओ फिरऽणुभाय तणयत्थे । एवं दवपरिक्खं दिसिमित्तं चंदतणय फेरेण । भणिय सुय-बंधवत्थे तेरह पणहत्तरे वरिसे ।।१४९।। [द्रव्य परीक्षा पासी सड्ढकुलेसु सिट्टि कलसो ठाणे सुकन्नाणए। तस्संगस्स हो सूठक्कूरवरो चंद व चंदो इह । फेरू तत्तणओ य तेण रइयं जोइस्ससारं इमं, दो सत्तऽग्गिग (१३७२) वच्छरे दुगसयं गाहा दु चत्ताहियं ॥२४२।। [ज्योतिषसार तं सयललोयहेऊ फेरू पभणेइ चंद्रसुओ।।२।। x ढिल्लीय रायढाणे कज्जं भूय करण मज्झमि । जं देस लेहपयड़ी तं फेरू भणइ चंदसुओ ॥१॥ उद्देस पंचगमिमं चंदासुय फेरुणा अओ भणियं । जह देस करुप्पत्ती चट्टिय समए मुणिज्जेइ ॥३३॥ [गणितसार सिरिघंधकलसकूल संभवेण चंदा सुएण फेरेण । कन्नाणपुरठिएण य निरक्खिउं पुव्वसत्थाई ।।५९।। Aho! Shrutgyanam Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा सपरोवगारहेऊ नयण- मुणि राम चंद (१३७२) वरिसंम्मि । विजयदसमीइ रइयं गिह पडिमा लक्खणाईणं ॥ ६० ॥ [ वास्तुसार ] तेरइ सइतालइ (१३४७) महमासि, रायसिंहर बाणारिय पागि । चंद तणुब्भवि इय चउपईय, कन्नाणगुरुभत्तिहि कहिये ||२७|| [ युगप्रधान चतुष्पदिका ] उपर्युक्त अवतरणों से स्पष्ट है कि ठक्कुर फेरू श्रीमानवंश के धाधिया गोत्रीय श्री कालिय या कलस के पुत्र चंद के पुत्र थे ये मूल रूप में कन्नाणा निवासी थे फिर राजकार्य से दिल्ली में भी रहने लगे थे। इनके पुत्र का नाम हेमपाल था जिसके लिए रत्नपरीक्षा और द्रव्यपरीक्षा की रचना की गई थी । द्रव्यपरीक्षा की रचना में भाई का भी उल्लेख किया गया है पर उसका नाम नहीं लिखा है । प्राचीन रचना सं १३४७ की ओर अंतिम सं० १३७५ की है । 1 सं० १३७५ को मिति वैशाख कृष्ण ८ को दिल्ली से महत्तियाण ठक्कुर अचल सिंह ने सुलतान कुतुबुद्दीन के फरमानपूर्वक कलिकाल केवली श्रीजिनचंद्र सूरि जी के सान्निध्य में हस्तिनापुर - मथुरादि यात्रार्थ संघ निकाला था जिसमें ठक्कुर फेरू भी साथ थे । विशेष जानने के लिए युगप्रधानाचार्य गुर्वावली देखना चाहिए | इसके पश्चात् ठ० फेरू के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं मिलता । ठक्कुर फेरू ने अपना कुल धंधकुल वतलाया है। इनके पूर्वजों में घंघ नामक व्यक्ति विशेष प्रभावशाली हुए लगते हैं जिनके वंशज धांधिया गोत्रीय आज भी विद्यमान हैं । वे जवाहिरात का व्यापार करते हैं । कन्नाण का संस्कृत नाम गुर्वावलो में कन्यानपन मिलता है । यहाँ की महावीर भगवान की प्रतिमा मुहम्मद तुगलक के समय में श्रीजिनप्रभसूरिजी ने दिल्ली में सुलतान से प्राप्त कर वादशाह के द्वारा वसायी हुई सुलतानसराय-भट्टारक सराय में वादशाह के बनाए हुए जिनालय में स्थापित की थी। श्री जिनप्रभसूरि कृत विविध तीर्थकल्प में उसका वितृस्त विवरण पाया जाता है । नाणा ग्राम अभी भी महेन्द्रगढ के अन्तर्गत विद्यमान है । ठक्कुर फेरू, विद्वान जैन श्रावकों में विविध विषयों के ग्रन्थ लेखक एक ही विद्वान हैं जिन्होंने मुसलमान सम्राटों की राज्यसेवा करते हुए अनेक वातों का महत्वपूर्ण अनुभव प्राप्त किया था। उन्होंने अपनी उस जानकारी और अनुभव को उयुक्त ग्रन्थों में भली भांति व्यक्त किया है। प्राकृत भाषा की इन्होंने बहुत बड़ी सेवा की है, इनकी रचनाओं में तत्कालीन इतने पारिभाषिक शब्द पाये जाते हैं। जिनकी उपलब्धि किसी भी कोश में नहीं होती । अब प्राकृत भाषा के जो भी कोश बनें उनमें उन शब्दों को अवश्य लिया जाना चाहिए। वर्तमान में वे शब्द किन किन पर्यायवाची शब्दों में प्रयुक्त हैं इस पर प्रकाश डाला जाना चाहिए। Aho! Shrutgyanam Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका ११ श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई ने 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' में इनकी कृतियों का जो नामोल्लेख किया है वह प्रति अब कहाँ और किस भंडार में है इसको शोध होनी चाहिए। स्वर्गीय मुनि कान्तिसागर जी ने इनके भूगर्भप्रकाश ग्रन्थ का जो उल्लेख किया है, यदि वह ग्रन्थ प्राप्त हो तो उसे भी प्रकाश में लाना आवश्यक है क्योंकि उस विषय का वह एकमात्र ग्रन्थ होगा । मुद्रा सम्बन्धी टिप्पणियाँ मध्यकालीन साहित्य में हम द्रम्म मुद्रा का सार्वत्रिक प्रचलन पाते हैं । परन्तु द्रम्म मुद्रा भिन्न-भिन्न राज्यों में व भिन्न-भिन्न शासकों द्वारा प्रवर्तित विविध प्रकार की होती थी। द्रव्यपरीक्षा में भी ठक्कुर फेरू ने ग्रन्थ निर्माण के समय सात प्रकार भो कुतुबुद्दोनी द्रम्म मुद्राओं का वर्णन किया है । इतः पूर्व भिन्न-भिन्न समय में बहुत प्रकार के द्रम्म प्रचलित थे जिनका यहाँ विचार किया जाता है । पारत्थक द्रम्ममुद्रा द्रम्मको पारसी में दीरम कहते हैं पर द्रम्म मुद्रा भारत में मुसलमानों के आगमन से पूर्व भी प्रचलित थी । सं० ८०२ में पाटण वसा । उस समय की बात है। कि कान्यकुब्ज नरेश ने अपनी पुत्री महणिका को कञ्चुक संबन्ध से गुजर देश दिया जिसकी छ: मास में २४ लाख पारुत्थक द्रम्म उगाही होते थे । ( पुरातन प्रबन्ध संग्रह पृ० १२८ ) सन् ११०० के लगभग धारानरेश नरवर्म का राज्य मालव और मेवाड़चित्तौड़ पर भी था । नवाङ्गीवत्ति कारक खरतर गच्छीय आचार्य श्री अभयदेव सूरि के पट्टधर श्री जिनवल्लभसूरि को विद्वता से प्रभावित होकर तीन गाँव या तीन लाख पारुत्थ देना चाहा। सूरिजी ने कहा- हम संयमी लोग अर्थसंग्रह नहीं करते । राजा ने प्रसन्न होकर चित्तौड़ के विधि चैत्य की पूजा के लिए प्रतिदिन दो पारुत्थ मंडी से देने की व्यवस्था की। (युगप्रधानाचार्य गुर्वावली पृ० १३ ) संवत् १२१: में साहगोलक कारित मरोट के विधि चैत्यचन्द्रप्रभ जिनालय पर मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरिजी के तत्त्वावधान में स्वर्णमय कलश दण्ड- ध्वजारोपण हुआ उस समय सेठ क्षेमन्धर ने पाँच सौ पारुत्थ द्रम्म देकर माला ग्रहण की थी। (दुगप्रधानाचार्य गुर्वावली पृ० २० ) संवत् १२३३ में श्रीजिनपतिसूरिजी ने हाँसी पधार कर पार्श्वनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा बड़े समारोहपूर्वक की। उस पर ध्वजा-दंड व स्वर्णकलशारोपण कराने के लिए दुसाज साल की पुत्री ताऊ श्राविका ने पाँच सौ पारुत्य द्रम्म देकर मालाग्रहण को । ( यु० प्र० गुर्वावली पृ० २४ ) संवत् १२३९ में अजमेर में अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज की सभा में श्रीजिनपतिसूरिजी ने चैत्यवासी पद्मप्रभ के साथ शास्त्रार्थ में विजय पाई जिसकी Aho! Shrutgyanam Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 13 द्रव्यपरीक्षा बधाई के उत्सव में सेठ रामदेव ने सोलह हजार पारुत्थद्रम्म व्यय किए थे। (यु०प्र० गुर्वावली) गूर्जरेश्वर वीरधवल के समय महाराष्ट्रीय चर्चरिक गोविन्द पण्डित जिसे अठारह पुर.रण, आठ व्याकरण चौपईवन्ध कण्ठस्थ थे--को चौवीस हजार पारुत्थक मुद्रा प्राप्त हुई । (पुरातन प्रबन्ध संग्रह) जालोर के राउल उदयसिंह ने सं० १३१० वसन्तपञ्चमी के दिन सुलतान जलालुद्दीन के घेरा डालने पर बापड़ राजपूत को सुलह के लिए नियुक्त किया। सुल्तान ने छत्तीस लाख द्रम्म दण्ड स्वरूप मांगे। उसने कहा मैं द्रम्म नहीं जानता पारुत्थक दे दूंगा। निकटस्थ व्यक्ति ने कहा-देव ! आप स्वीकार कर लें ! एक पारुत्थक के आठ द्रम्म होते हैं ! सुलतान ने मान लिया (पुरातन प्रबंध संग्रह १० ५१) इस वृत्तान्त से विदित होता है कि दिल्ली के प्रचलित द्रम्म से पारुत्थक का मूल्य आठगुना था। जयथल मुद्रा सं १३७५ में जयथल मुद्रा प्रचलित थी। इसी वर्ष ठक्कुर फेरू ने द्रव्यपरीक्षा का निर्माण किया था। इसी वर्ष कलिकाल केवली श्रीजिनचंद्र सूरिजी ने फलौदी पार्श्वनाथ जी की तृतीय वार यात्रा की। मंत्रीदलीय ठ० सेढु ने वाह हजार जैथल देकर इन्द्र पद ग्रहण किया। अन्य सव मिलाकर तीर्थ में तीस हजार जयथल की आय हुई। इसके बाद सूरिजी विचरते हुए दिल्ली की ओर पधारे और विशाल संघ के साथ हस्तिनापुर तीर्थ की यात्रा को। ठ० मदन के अनुज ठ० देवसिंह श्रावक ने बीस हजार जयथल देकर इन्द्र पद ग्रहण किया, ठ० हरिराजने आमात्य पद प्राप्त किया। हस्तिनापुर तीर्थ के भण्डार में एक लाख पवास हजार जयथल को आय हुई (युगप्रधानाचार्य गुर्वावली पृ०.६) द्रव्य परीक्षा की ७० वीं गाथा में मुद्राओं का मूल्य जयथल मुद्रा से आंका है। वीरवर्म देव चंदेल की मुद्रा का मूल्य २४ जयथल और हीरावर्मा की मुद्रा का मूल्य २२ जयथल है। द्विवल्लक द्रम्म मुद्रा द्रव्यपरीक्षा की रचना के पश्चात् सं० १३८० में योगिनीपुर-दिल्ली से संघपति रयपति ने दादा श्रीजिनकुशलसूरिजी के सानिध्य में यात्रीसंघ निकाला। संघपति के समस्त परिवार ने हेम टंकों से तथा अन्य लोगों ने रूप्य टंकों से प्रभु की नवांग पूजा की, अनेक उत्सव हुए। उच्चानगर के हेमलपुत्र कडया ने अपने भतीजे हरिपाल के साथ २६७४ द्विवल्लक द्रम्म देकर इन्द्र पद ग्रहण किया, तीर्थ में पचास हजार की आय हुई। इसी प्रकार गिरनार तीर्थ पर हमीरपत्तन वासी घीणा के पुत्र गोसल श्रावक ने २४७४ द्विवल्लक द्रम्म देकर इन्द्र पद प्राप्त किया। तीर्थ में चालीस हजार द्विवल्लक द्रम्म को उपज हुई। (युगप्रधानाचार्य गुर्वावली प०७५-७६) Aho! Shrutgyanam Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका सं० १३८१ में भीमपल्ली के साहवीर देव ने सुलतान गयासदीन का फरमान प्राप्त कर श्री जिन कुशलसूरि जो के तत्त्वावधान में संघ निकाला। स्तंभतीर्थ-खंभात में महोत्सव हुए। सा० कडुया के पुत्र खांभराज के अनुज दो० सामल ने बारह सौ द्विवल्लक द्रम्म देकर इन्द्र पद प्राप्त किया। शत्रुञ्जय पर सा० लोहट के पूत्र उखमा ने तीस हजार सात सौ द्विवल्लक द्रम्म देकर इन्द्र पद प्राप्त किया। श्रीमालरु के भाई नीवदेव ने बारह सौ द्विवल्लक द्रम्म से आमात्यपद प्राप्त किया। (यु० गुर्वा० पृ० ७९) _ये दोनों उल्लेख गुजरात सौराष्ट्र के हैं। द्रव्यपरीक्षा में गा० ८६ में उल्लिखित वेवला मद्रा गर्जरो मद्रा थी और प्रतिशत ६ तोला ।। मासा चांदी एवं अवशिष्ट तांबा थी और १६।। के भाव थी। इनके अतिरिक्त गुजरात की मुद्राओं में भीमपुरी और लूणसापुरी मुद्राओं का वर्णन गा० ८३ की फुटनोट में देखना चाहिए। रुप्यटका ___सं० १३९० में श्रीजिन पद्मसूरी के पट्टाभिषेक तथा अन्य उत्सवों में सा. हरिपाल-चाचा कड़वा भाई कुलधर ने हजारों रुप्य टंके व्यय किए। (यु०प्र०गु० पृ० ८६) यात्रीसंघ ने नाणा तीर्थ में २०० रुप्य टंके आबू में ५००, जीरावला में १५०, चंद्रावती में २००, आरासण में १५० तारंगा में २०० और तृशृंगम में १५० रुप्य टंका व्यय कए। (यु० प्र० गु० पृ० ८७) -भंवरलाल नाहटा Aho! Shrutgyanam Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Aho! Shrutgyanam Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठक्कुर फेरू विरचिता द्रव्यपरोक्षा ॥ॐ नमो कमलवासिणी देवी ॥ कमलासण कमलकरा छणससिवयणा सुकमलदलनयणा । संजुत्तनवनिहाणा नमिवि महालच्छि रिद्धिकरा ॥१॥ जे नाणा मुद्दाई सिरि ढिल्लिय टंकसाल कज्जठिए । अणुभूय करिवि पत्तिउ वन्हि मुहे जह पयाउ घियं ॥२॥ तं भणइ कलसनंदण चंदसुप्रो फिरऽणुभाय तणयत्थे । तिह मुल्लु तुल्लु दव्यो नामं ठामं मुणंति जहा ॥३।। पढम चिय चासणियं, बीयइ कणगाइ रुप्प सोहणियं । तइए भणामि मुल्लं, चउत्थए सव्व मुंदाई ॥४॥ दारं ॥ चासणियं जहा सुक्कं पलासकटुं गोमय आरनगा अजा अस्थि । कमि तिय इगे गि भायं एगटुं दहिय तं रक्खं ॥५॥ १. कमल के आसन वाली, कमल जैसे हाथों वाली, पूर्णिमा के चन्द्र जैसे मुख वाली और सुन्दर कमलदल जैसे नेत्रों वाली नवनिधान संयुक्त, ऋद्धिकर्वी महालक्ष्मी को नमस्कार करके २. श्री दिल्ली की टकसाल में कार्यस्थित रह कर, वहाँ जो नाना मुद्राएं वर्तमान हैं, उनका अनुभव करके और जैसे अग्नि में तपाकर घी का प्रत्यय किया जाता है वैसे ही उनका प्रत्यय करके. ३ कलश के बेटे चन्द्र का पुत्र ठक्कुर फेरू अपने भ्राता और पुत्र के लिए उनका वर्णन करता है और उनके जैसे मूल्य, तौल, द्रव्य नाम और स्थान है, उनको कहता है। ४. . पहले प्रकरण में चासनी का, दूसरे में कनकादि तथा रोप्य के शोधन का, तीसरे में मूल्य और चौथे में सर्व मुद्राओं का वर्णन करता हूं। चासनी: ५. पलाश वृक्ष के सूखे काष्ठ, गोबर के आरणिया छाणा (जंगली कण्डे) बकरी की मोंगणी, किसी स्वतः उगे हुए वृक्ष विशेष की लकड़ी; इनका क्रमशः तीन भाग और एक-एक भाग एकत्र जला कर उसकी राख को Aho! Shrutgyanam Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 25 द्रव्यपरीक्षा छाणिय सेर सवायं बंधि गहं बंकनाल धमि मंदं । धव अंगार सवा मणि सोहिय उत्तरइ चासणियं ॥ ६ ॥ तं पुणरवि सोहिज्जइ पण तोला खख बंधिऊण गहं । ता हवइ सहं कूरं अइ निम्मल चासणियं रूप्पं ||७|| ॥ इति सर्व चासनिका मूलसोधनविधिः ॥ सीसस्स प्रमल पत्तं करेवि लहू खंड तुलिवि सोहिज्जा । नीसरह रुप्प सयल सीसं गच्छेइ खरडि महे ||८|| सय तोलामज्झेणं वारह जव सीसए हवइ रुप्यं । पच्छा पुण पुण सोहिय तहावि निकणं न कइयावि || ९ || ॥ इति नाग वासनिका ॥ रुपस्स बीस मासा छ टंक नागं च देइ सोहिज्जा । जं जायइ ते विसुवा एवं हुइ रुप्प चासणियं ॥ १० ॥ ॥ इति रुप्प चासनिका || कपड़छन करके (उसमें से सवा सेर की नहीं बाँधकर बंकनाल बाँकिया द्वारा मन्द आँच से घमन करके घव वृक्ष (घावड़िया) के सवा मन अंगारों से शोधने से (चाँदी की) पासनी उतरती है। = ७. उसे फिर पाँच तोला ( चासनी को ) राख की गही बांध कर (अर्थात् राख पर पानी छिड़क कर कटोरे की आकृति जैसी बना लेना-पाठ करना या पाढ बनाना कहलाता है ।) शोधन करना । वह अति निर्मल 'सहं कूरं' नाम रोप्य चाशनी होती हैं । यह सर्व वासनिका के मूलशोधन की विधि हुई। ८. सोसे का निर्मल पात करके उसके छोटे छोटे टुकड़ों को तोलकर शोधन करना । चाँदी सब निकल जायगी और सीसा खरड़ में चला जायगा । ९. सौ तोला सीसे में बारह जौ चाँदी निकलेगी । खरड़ को फिर बार-बार शोधमे पर भी निष्कण (बिना भुनुक के वह कभी नहीं होगो रेत निकलेगी ही । यह नाग (सीसे से चाँदी की चासनी करना) चासनिका हुई । १०. वट्टे की चाँदो बोसमासों में छ-टंक (२४ मासा) सीसा देकर शुद्ध करें। बॉबी पक्रिया जो हो वह विसुवा (२० विसया) होता है, इस प्रकार रौप्य चासनिका हुई। यह रौप्य पासनिका शेष हुई। सहं कूरं कूर - कण = Small Particles निकल = बिना कण का, कण चांदी (देखिए गा० १३० ) * यही गाया धातूत्पत्तिप्रकरण के गा० २७ में ६ । Aho! Shrutgyanam Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यपरीक्षा नाणय उहक्क हरजय रीणी चक्कलिय टंक दस गहिरं । पनरह गुण सोसेणं सोहिय नीसरइ जं रुप्पे ।।११।। तस्साप्रो पाडिज्जइ रुप्पं सीसस्स जं रहइ सेसं । तं चासणिय सरूवं अन्नं जं खरडि मज्भि हवे ||१२|| नीचुच्च नारणाओ कमेण नउ दु जव किंच हीणहया । संगहई खरडि रूपं अवस्स चासणिय समयंमि ||१३| हरजय चासणिय दुगं दह दह टंकस्स मेलि गहि अद्धं । पउण दु जवंतरेसु ह दु जवंतरि बाहुडइ नूणं ।। १४ ।। ॥ इति द्रव्य चासनिका ॥ खरंडि, खरल = सीसा मिश्रित चांदी को खरड़ कहते हैं, सोना चांदी मिश्रित भी खरड़ि, खडल, खरल खरड़ कहलाती है । पन्ना-माणक तामड़ा आदि रत्नों की भी खरड़ होती है जिसमें मिट्टी-पत्थर मिला रहता है। उसे साफ करके नगीने या मणियें बनती है। ५. नाग = सीसे को कहते हैं, सफाई के लिए चाँदी को सीसे के साथ गाला जाता है । बिसुवा = बीस विसवा अर्थात् खरी चांदी | ११-१२. नाणय', डहक्क, हरजय, रीणी, चक्कलिय" दस टंक लेकर पन्द्रह गुणे सीसे के साथ शोधने पर जो चाँदी निकले उसे ढाल लेना सीसे की चांदी जो शेष रहे, दूसरी जो खरड़ में हो वही चासनी का स्वरूप हैं । १२. नीची-ऊँची छोटी-बड़ी मुद्राओं की "नाणय" पौदी क्रमशः चार और दो जव या कुछ होनाधिक खरड़ का रौप्य हो, उसे चासनी के समय अवश्य संग्रह करें। १४. दस दस टंक की हरजय चासनीद्वय को मिलाकर गही शोधने से पौने दो जवान्तर से दो जवान्तर तक निश्चित ही वापस मिल जाती है । द्रव्य की चासनी समाप्त हुई । १. नाणय = सिक्के का सोना चाँदी । २. ३. ४. १७ डहक्क – धुएं की या खरड़ की चाँदी संभावित है । -- हरजय हरजा चाँदी से बना हुआ सिक्का हरजय हो सकता है । रीणी = गलाए हुए सोने को परगहनी में डाल कर बनायी कांबी या लम्बी सलाई रीणक्षरित जुआई हुई, परगहनी में शेषो मुद्राओं का वर्णन भागे गाथा ५२ व ५५ में देखिये । चक्कलिय= सोने चांदी का मोटा गोल रूप गदिया, पपिया चासनी करने के बाद सोने या चाँदी को विभिन्न रूपों में रखा जाता है। लम्बी मलाई रूपनी या कवी गोलरूप गद्दा या थपिया फूल की पंखड़ियों का मा छितरा रूप हरता या खाल और गोल; ठोस रूप डाला या डमी कहलाता है। २ Aho! Shrutgyanam Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा चासणिय जव दहग्गुण जि टंक मासा हवंति तस्सुवरे । अग्गिस्स भुत्ति दीयइ टंकप्पइ जे जवा होंति ॥१५॥ तं सय मज्झे रुप्पं तहच्छमाणस्स पूरणे जंतं । तंब अहियस्स पुण जुय सल्लाही सा भणिज्जेइ ।।१६।। ॥ इति सल्लाहिका विधिः।। सामन्नेण सुवन्नो बारहि वन्नीय भित्ति कणओ य । पंच जव हीण चिप्पं पिंजरि वन्नी य पंच तुले ॥१७॥ सिय खडिय लूण कल्लर सम मिस्सिय चुन्न सा सलोणीयं । मेलगय कणय चिप्पय करेवि तेण सह पइयव्वं ॥१८॥ तिहु अग्गिक्क सलोणी सत्ति सलणीहि सुज्झए चिप्पं । इक्कारसीय वन्नी इक्कारस जव भवे सुकसं ॥१९॥ सय तोल कणय पइए जं घट्टइ सा सलणियं चिप्पे । चिप्पे दहग्गि पक्के जं घट्टइ तं ३ कायरियं ।।२०।। चिप्पस्स तिन्नि मासा पत्त करिवि भित्ति कणय सह पइए । स तिहाउ जओ घट्टइ भित्तीओ पढम चासणियं ॥२१॥ पच्छा ति अग्गि पक्के पुणो वि तिय मास भित्ति सह पइए। तेरह विसुव जवस्स य इय अंतर वीय चासणिए ॥२२॥ १५-१६. जितने टंक मासा चासनी हो, टंक प्रति जितने जव हों उसके ऊपर दश गुणे जव अग्नि की भुक्ति देवे। उस चाँदी को हाथ में स्थित त्रिकोणयंत्र में पूरित कर देना, अधिक ताम्र वाली की फिर अलग हो इसे सलाहो कहते हैं। सलाहिका विधि समाप्त हुई। १७. सामान्यतः सोना बारहवानो, भित्ति कनक, पाँच जव कम (११ वान ११ जव) को चीप, तोले में पांच जो कम पांच वान का पिंजर होता है। १८. श्वेत खडियामिट्टी, लवण, कल्लर को बराबर मिलाकर उस सलोने चूर्ण को मिलावटी सोने की चीप करके उसके साथ जलाना चाहिए। १९. तीन आग की एक सलोणी, (अर्थात् एक बार सलोनी में सांदकर तीन आग . फेंकना इसे आइने अकबरी में सिताई कहा है) सात सलोनी (२१ आंच) से चीप शुद्ध होती है । वह ग्यारह वान और ग्यारह जव के अच्छे कस वाला चोप सोना होगा। आइने अकबरी में छः बार सलोनी का १८ आंच मसाला सांदना कहा है। २०. सौ तोला सोना जलाने से जो घटे उतना चोप सलोनी में गया समझो। फिर सलोनी से अग्नि में जलाने पर जो घटे वह कायरिय-कुकरा होता है। । । २१-२२. चिप्प के तीन-तीन मासे के पत्र बनाकर भिनि कनक (शुद्ध सोना) के साथ जलाने पर पहली चासनी में ११ जो घटता है। फिर दूसरी चासनी में उसी तरह तीन Aho! Shrutgyanam Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ द्रव्यपरीक्षा परपुन दहग्गि प (इ?) ए भित्ति समं हवइ तइय चासणियं । टंकाण चक्कलीयं गहिज्जइ य कणय चासणियं ।।२३।। ।। इति सुवर्णशोधना चासनिका च ॥ मेलगइ रुप्प विसुवा दह तेरह सोल ठार उणवीसा। पंच उण चउण तिउणं विउणं सम सोसयं दिज्जा ॥२४॥ सयल कुदव्वं गच्छइ खरडितरि रहइ सेस रुप्पवरं । तं पुरण दिवड्ड सीसइ सोहिय हुइ वीस विसुव धुवं ।।२५।। ॥ इति रुप्प सोधना ।। तुलिय सलूणीयानो अड्डाइ गुणीय खगडि रुप्पस्स। ववि मेलि पिडिय करिज्ज कोमंस चुन्न सहा ॥२६॥ मासा भित्ति सोने के साथ जलाने से जो का तेरह विसुवा घटेगा-यह दूसरी चासनी का अन्तर होगा। २३. तीसरी चासनी में भित्ति कनक के साथ चिप्प को अग्नि में परिपर्ण जलाने पर घटेगा नहीं, भित्ति कनक के बराबर ही पूरा होगा। सोने की चासनी बनाने में एक-एक टांक (४ मासा) के चकलिए लेना चाहिए। सोना शुद्ध करने की चासनी समाप्त हुई। कल्लर = रेह या नोनी मिट्टी। कणय चिप्पय % सोने की चीप, पन्ना, पत्तर या वर्क बनाना। सफेद खडिया + नमक + रेह-यही मसाला सलोनी है। आइने अकबरी में शोरानमक + कच्ची ईंटों का बराबर चूरा बतलाया है। पिजर-मिश्रित सोना जो तांबे के साथ तीन तीन बार जलाने के बाद किया बंध जाय वह पांच वान का होता है। काइरिया को आइन-ए-अकबरी में कुकरा बतलाया है। २४. दस, तेरह, सोलह, अठारह, उन्नीस विसुजा मिलावटी चाँदी के साथ पांचगुना, चौगुना, तीनगुना दुगुना और बरावर सीसा देना। अर्थात् १० विसवा में पांच गुना १३ विसवा में चौगुना, १६ विसवा में तिगुना १८ विसवा में दुगना, ११ विसवा में बराबर सीसा मिलाना चाहिए। २५. सब कुद्रव्य (मिलावट) खरड़ में चला जाता है. अच्छी चाँदी बच जातो है । उसे फिर ड्योढे सीसे के साथ मिला कर सोधने से बीस विसवा शुद्ध चाँदी हो जाती है। चाँदी सोधना समाप्त हुआ। २६.२७. तोली हुई सलोनी (खाक खालिस) को उससे ढाई गुनी चांदी की खरड़ के साथ मिलाकर कोमंस-चूर्ण के साथ बांटकर पिंडा बांधलो। इन पिंडों को कूटकर तोड़ Aho! Shrutgyanam Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० द्रव्यपरीक्षा तत्तो करेवि कुट्टिय मिज्ज घट्टेइ तईय सुमलं । हव दुभामिस्स दल तस्साओ अहुयं कुञ्जा ॥२७॥ नीसरइ सयल रुप्पे सीसं तंबं च जाइ सरडि महे। साखरड पुरा 'धमिज्जर पिहू पिहू नौसरहि दुग्नेवि ||२६|| कारियो एवं कीरइ तस्साउ तंत्र सह करणयं । नीसरद्द तस्स चिप्पं हुई सीसं खरडि मज्झाओं ॥ २९ ॥ ॥ इति मिश्रदल शोचना ॥ कज्जलिय मूसि धूरिय ठोपाल नियारस्स हम कणं । सोहमग फक्क सज्जिय दसंग जुय कढिय हवइ दलं ||३०|| ॥ इति कण चूर्ण शोधना || चउ भाय अमल तंबय वर तित्तल सोल भाय सह कढियं । इसं कायव्वं रूप्पस्स विसोव कररणत्थे ॥ ३१ ॥ कर चमन करने आग में जलाने से उसका मलांश पट जाता है। सीसा या मैल रात में चला जाता है । और दोनों का मिश्रदल हो जाता है, उसका अड्डय करना चाहिए । २८. चांदी सब निकल जाती है, सीसा और तांबा खरड़ में चला जाता है। उस खरड़ को फिर घमन करने— जलाने से तांबा और सीसा दोनों पृथक्-पृथक् निकल जाते हैं । २. काइरिय ( कुकरा) की भी इसी प्रकार जलाने की क्रिया करना उससे सोना और तांबा साथ में मिला हुआ निकलेगा। उनको बीच होगी, सोसा सरडि में चला जायगा । मिदल शोधनविधि समाप्त हुई। अय = अड्डा, उसके ऊपर बर्तन में कोयले भर कर उसकी पैदी के छेद से मिश्रदन जो भी सलोनी में हो वह नीचे गिर जाता है। उस अड्डे में चांदी निकाली जाती है। धातूत्पत्ति प्रकरण में रांगे की धातु को कूट कर कोमंस चूर्ण के साथ धमन करने पर कामी होती है जिसका वर्णन १४ वीं गाथा में देखिए : रंगस्स धाडु कुट्टिवि करिज कोमंस चुष्ण सर्पि धमिय निसरई जं तं पुण गालिय कंविया होंति ॥ १४ ॥ ३०. कजलिय कानी मूस में यूरिय, तोपाल और नियार के सूक्ष्म कणों (खरड़ या राख में मिली हुई चांदी) को सुहागा ओर सज्जी का चूर्ण दशमांश मिलाकर गलाने से दल बन जाता है । अर्थात् एकमन में चार सेर चूर्ण देना चाहिए। ३१. शुद्ध तांबा चार भाग और शुद्ध पोतल सोलह भाग को गला कर चाँदी का विसवा बनाने के लिए रोस तैयार करना। Aho! Shrutgyanam Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा बीसविसोवा रुप्पं मासा विसाउजं जि कडिढज्जा। तित्तिय मासा रीसंदिज्जहवइ ते विसोव कसं ॥३२॥ ॥ इति रुप्प वनमालिका ।। अइ चुक्ख रुप्प तंबय कमि पनरह सड़ढ सड़ढ़ चउरीसे । इय भाय वंनियत्थे सोलस चउ कणय घडणत्थे ।।३३।। जारिस वन्नी कीरइ तित्तिय दु जवहिय भित्ति कणओ य । सेस दु जवूण रीसं एवं तोलिक्कु हवइ परं ॥३४॥ रोस सम कणय पढमं गालिवि पुण थोव कणय सह कढियं ।। पुण सेस सहा वट्टिय ता हवइ जहिच्छ वन्नाभं ॥३॥ ३२. बीस विसवा शुद्ध चांदी २० मासा लो, जितने मासे चांदी निकाल कर उतनी रीस मिलाओगे उतने ही विसवे का कस हो जायगा (अर्थात् १७ मासा चाँदी+ ३ मासा रीस की सतरह विसवा चाँदी होगी। रौप्य वनमालिका समाप्त हुई। ३३-३४. अति चोखी चाँदी १५३+ तांबा ४३ की रीस बन गई, ये भाग वन्नी या बान के लिए हैं। सोने के घटन या टांके के लिए १६ चाँदी + ४ रीस मिलाकर काम में लेना। जैसी वन्नी करनी हो उसके हिसाब से दो जो अधिक भित्ति कनक ले और दो जव कम रीस मिलावे इस प्रकार एक तोला होगा। उदाहरण :-८ बान का सोना करना है तो ८ मासा २ जो खरा सोना लेकर उसमें दो जो कम चार मासे रीस मिला दो, जो सोना होगा वह ८ बान का होगा ऐसे ही ९,१० आदि बानों का सोना बनाया जा सकता है। सोने में रीस कैसे मिलानी चाहिए? इसकी विधि-८ मासे २ जौ खरा सोना और दो जो कम ४ मासा रीस मिलानी है तो ३५. पहले रीस के बराबर सोना लेकर साथ गलाओ फिर थोड़ा सोना और डालो फिर शेष भी साथ मिला दो तब जैसा चाहा है उसी बान को श्रेष्ठ वर्णाभ-चमक का सोना बन जायगा। आइने अकबरी में वनमालिका को बनवारी लिखा है अबुलफजल ने रोस का दूसरा योग दिया है उससे पहले का १२ बान उसके समय कसोटी में १०३ बान निकला। मूस = धातु गलाने का पात्र परिया। फक्क = पीसा हुआ चूर्ण । कढिय = गालना काढना, अब राजस्थान में तिजाब काढना = शोधने का पर्याय है। रीस = सोने में मिलाने की खाद । अथवा--सोने की वनमालिका बनाने की दूसरी विधि जिसे पादोनविधि (पाऊण) कहते थे। पादोनविधि के लिए रीस चाहिए, वह गाथा ३६ में बताते हैं : --- Aho! Shrutgyanam Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ अथवा - द्रव्यपरीक्षा राम कर भाय सुलभं तारं मुणि सत्त भाग यह कढियं । एयं सयंस रीसं सुवन्न वन्नस्स हरण वरं ||३६|| सेयालीस विभायं धुर कणय करवि एग एगुणं । तत्तुल्लि दिज्ज रीसं कमेण पाऊण हुई वन्नं ॥ ७ ॥ इति कनक वनमालिका ।। जवि सोलसेहि मासउ बहु मामिहि टंकु तोलविणो । सोलह जवेहि बनी वारहि वन्नो महाकण ||३६|| नी तुल्लेण हयं भित्ति सुवन्नस्स अग्घ सह गुणियं । वारस भागे पत्तं जहिच्छमाणस्स तं मुल्ल ।। ३९ ।। नाणा वनी कणओ नाणा तुल्लेण जाम गालिज्जा । केरिस बन्नी जायद अह एरिस वन्नि कि तुल्लो ||४०|| = ३६. तेईस भाग ताँबा (मुलभ शुल्य) सतहत्तर भाग तार (स्वर्ण) के साथ गलाया जाय यह सौ भाग सोने का बान करने के लिए उत्तम रोसक मिलावट के लिए है । ३७. बारहवानी सोना पादोन विधि से – १२ माशे धुर सोना लेकर उसके ४७ भाग शुद्ध सोना [धुर कणय, ध्रुव कनक, अक्षय स्वर्ग, तिरूपक्षय (see मानसोल्लास ) शुद्ध हारिक (कौटिल्य)] में एक-एक भाग मिनाते जो तो क्रमशः पादोन ( एक-एक पाद कप ) बान का सोना बनता जायगा । । एक तोले ध्रुव सुवर्ण (खरा सोना मिति कनक अजय सुवर्ण के ४७ भाग करके १-१ भाग कम करते जाइए और उतना ही राम मिलाते जाइए तो पादोनक्रम से दान बन जाएंगे । ४८ भाग बारहृवानी सोना ४७ भाग सोना + १ रोस सोना+२ रोस = ११३ वान, ४५ भाग सोना + ३ रीस = ११३ वान, ४४ सोना+४ रीस = १२ वान, २४ सोना+२४ रीस = ६ वान, १० सोना + ३८ रीस = २३ वान | सोने की वनमालिका समाप्त हुई । ११३ वान, ४६ भाग ३८. सोलह जौ का मासा, चार मासा का टंक और तीन टंक का एक तोला होता है। सोलह जी की एक बनो और बारह वानो का महाकनक होता है । ३९. वत्री को सोना में से घटा के मिति कनक के मूल्य को गुणा करके बारह का भाग देने से यथेच्छ प्रमाण उसका मूल्य निकलेगा । * ४०. अलग अलग वान का सोना भिन्न भिन्न तोल का जब एकत्र कर गाला जाय तो कितनी वान का होगा या किस वान का बनने से उसका क्या तौल होगा ? + यह गाया गणितसार में भी गाथा नं० १० है । गणितसार में और भी सब प्रकार के माप दिए हैं। रीस के लिए एक कौटिल्य की विधि दूसरी ट० फेरुकी और तीसरी आइन-एअकबरी में अबुलफजल की है। Aho! Shrutgyanam Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा जसु वनी जं तुल्लो सो तसारियो गुणेवि करि पिडं । तुल्लि विहते वरनं इच्छा वनी हरे तुल्तं ॥४१॥ ।। इति स्वर्ण विवहारं ॥ उग्पाड मूसि दुग सउ पडिय सओ ढक्क मूसि उद्देसो । प्रवट्ट खए गच्छइ हरजइ तहरीण वट्टे य ॥ ४२ ॥ छेणि घडण ज्जालणि सहस्सि तोलेहि रुप्पु चउमामा । कण सवाउ मासउ टंकट्ठ सहस्सि मासउ टंकट्ठ सहस्ति दम्मेहि ||४३|| ॥ इति हास्यं ॥ चहु सय ठुत्तरि कणओ चहु सय वत्तीस कणय टंको य । तेवन्नि सड्ढ रुप्पउ सट्ठि टकउ नाणउ तिवन्ते ||४४ || तोलस्स सलूणी दम्हिहि वत्तीसि च हू कायरियं । रुपस्स खरडि सीसय पमाणि छह टंक दम्मिक्के ||४५ || सीसस्स मली सीसस्स श्रद्धए तह य उतल सरडि पुणो । लोहद्धि लोह कक्कर इस अयं तेर वासद्वे ।। ४६ ।। ४१. जिस वान का जो से भाग देने पर वान और वान को भाग देने से तौल निकल जायगा । स्वर्ण अवहार समाप्त हुआ। २३ तौल हो परस्पर गुणाकार कर मिला देना चाहिए। तोल ४२. दो सौ की खुली मूस में सौ गलने पर ढक कर आवर्त समाप्त होने पर हरजय और रीण का बट्टा चला जाता है । ४३. तोड़ने, घड़ने या टांके (घटन) में और उजालने में हजार तोलों में चार मासा चाँदी और सोना सवा मासा एवं हजार द्रम्म में (तांबा) आठ टांक छीजता कम होता है। ४४. चार सौ अठहत्तर स्वर्ण का मूल्य चार सौ बत्तीस कनक टंका, साढे तेपन रौप्य का मूल्य ६० टका, ५३ नाणा मूल्य है। * ४५. द्रम्म मूल्य है। आती है । ४६. सीसे की मली का मूल्य सीसे से आधा है, उसी प्रकार फिर डउल खरड़ का भी समझना । तथा लोहे से आधा लोकक्कर ( कच्चा लोहा या कान्ति लोहा-ढाला) का होता है। सीसे का भाव द्रम्मप्रति तेरह तोला और लोहा एक द्रम्म का बासठ तोला के भाव समझना चाहिए। एक तोले सलूणी का बत्तीस द्रम्म, कायरय (कुकरा) चार तोले का बत्तीस चांदी की खरडि सोसे के परिमाण से एक इम्म में छह टंक अर्थात् दो तोला जसु वन्ना जं तुल्लं तं तेण गुणेवि कीरए विंड तुल्लि विहत्ते वन्नी वन्नी भाए हवइ तुल्लं ॥१५॥ [ गणितसार तृतीय अध्याय ] इसके पश्चात् गाथा २५ पर्यन्त स्वर्ण, पक्वस्वर्ण, नष्ट स्वर्ण आदि के हिसाब बतलाये हैं । Aho! Shrutgyanam Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा रुप्पय कणय तिधाउय इय तिय मुहाण मुल्ल दम्मेहि। वन्निय तुल्ल पमाणे सेस दु धाऊय टंकेण ॥४७॥ नाणा मुद्दाण कए जारिसु टंको पमाणिओ होइ। टंकण तेण मुल्ल गणियव्वं सयल मुद्दाणं ।।४।। भणिसु हव नाणवटै' दम्मितिहि जाम इतिय मुद्दे । इय अग्ध पमाणेणं इत्तिय मुद्दाण कई मुलं ॥४९।। रासिं तिगाइ गुणियं मज्झिम हरिऊण भाउजं लद्धं । तं ताण मुंद मुल्लं न संसयं भणइ फेरू त्ति ।।५०॥ ॥ इति मौल्यम् ॥ ४७. चांदी की, सोने की और तृधातु (सोना चांदी तांबा मिश्रित) इन तीनों प्रकार की मुद्राओं का मूल्य बान और तोल के परिणाम से द्रम्म मुद्रा से होता है तथा शेष द्विधातु (चाँदी और तांबा मिश्रित) मुद्राओं का मूल्य टंकों से होता है। ४८. मुद्रामों की चांदी करने पर जैसे टंके के प्रमाण की हो उसी टंका के हिसाब से समस्त मुद्राओं का मूल्य गिनना चाहिए अर्थात् अन्य सिक्के की सो मुद्राएं आई उनमें से थोड़ी गालकर नाणय चांदी (गा० ११-१२) बनाकर जिम प्रचलित टंके के अनुसार द्रव्य बैठता हो उसी टंके के अनुपात से उसका मूल्य समझना चाहिए। ४९. अब मैं इतने द्रम्म में इतनी मुद्रा, इस मूल्य के प्रमाण से इतनी मुद्राओं का क्या मूल्य हुआ ? यह 'नाणावट' कहूंगा। ५०. फेरू कहता है कि पहले राशि को तोन से गुणाकार कर बीच का हटा कर जो भाग मिले वही मुद्रा का मूल्य है, इसमें संशय नहीं। उस समय द्रम्म मुद्रा विशेष प्रचलित थी सं० १३८० में सं० रयपति के संघ द्वारा शत्रुजयतीर्थ में पचास हजार द्रम्म एवं गिरनारतीर्थ में चालीस सजार द्रम्म आमदनी होने का उल्लेख है। इसके पश्चात सं० १३८२ में भीमपल्ली के संघ द्वारा खंभात में १२००) हम्म और शत्रुजयतीर्थ में पन्द्रह हजार द्रम्म आमदनी होने का उल्लेख है। ये द्रम्म मद्राएं कई प्रकार की होती थी, खरतर गच्छ गुर्वावली में इन सब मुद्राओं को "द्विवल्लिक द्रम्म" लिखा है। इस मुद्रा का उल्लेख द्रव्य परीक्षा में वेवला नाम से आया है। यह केवल गुजराज में प्रचलित थी। नाणावट % विभिन्न मुद्राओं को विभिन्न या स्थानीय मद्राओं में बदलने के न्यापार को (नाणा-बटाना) नाणावट कहते है। ऐसे व्यापारी 'नाणावटी' नाम से प्रसिद्ध हुए। उपर्युक्त ४९ वी गाथा की "गणितसार की ६५ वीं गाथा से तुलना कीजिएभणिसु हव नाणवढें नव मुंद लहंति दम्म पणवीसं इय अग्ध पमाणेणं सोलस मुंदाण कइ मुल्लं ॥६५॥ Aho! Shrutgyanam Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा अथ मुद्रा यथा सवा इगवन्न दम्मिहि पुत्तलिया खीमलीय चउतीसे । तोला इक्कु कजानिय बावनि आदनिय इगवन्ने ॥५१॥ रीणी जे मुद्दालग स तिहा गुणचासि तोलओ तेवि । सड्डयाल रूवाई खुराजमो सड्ढ पंचासे ॥५२।। वालिट्ट पाउ अोवम रुप्पमया तिनि होति तिहु तुल्ले । सठ्ठ सउ असी चता तोला इक्को य वावन्नो ॥५३॥ सिरि देवगिरि उवन्नो सिंघणु तुल्लेण मासओ इक्को। सतरह विसुवा सड्ढा रुप्पउ ताराय मासद्धो ॥५४॥ अन्नं जं जि करारिय खट्टालग नरहड़ाइ रीणीय । तहं सयल दिट्ठि मुल्लु अहवा चासणिय अग्गिमुहे ॥५५॥ ॥ इति रूप्यमुद्रा(') ॥ (१) पूतली खीमली कजानी आदनी रीणी मुद्रा रुवाई खुराजमी वालिष्ट जि ३ ५१॥ ४८॥ ५०॥ प्रति ५२ १६० वा०१ पा०१ ४० वा०१ सीघण मुद्रा 5०४ तारा मा० ॥७०२ रीणी खटियालग नरहड़ादि करारी एते दृष्टि अथवा चासनी प्रमाणे मूल्यं ।* ५१. पुतली मुद्रा के ५.१। द्रंम, खोमली के चौतीस, एक तोलेवाली कजानी के बावन और आदनी मुद्रा का इक्कावन द्रम है। ५२. रोणी मुद्रा के ४९३, रूवाई के ४८२ खुराजमी के ५० द्रम्म है ; वे तोले वाली है। * मेरी कापी में इसके बाद-गारी तोला १जै ४९" लिखा है जो मुद्रित में नहीं है। हा Aho! Shrutgyanam Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ परीक्षा कणय मय सीयरामं दुविहं संजोय तह विओोयं च । दह वनी दस मासा अभन्नणीया सपूयवरा ।। ५६ ।। चडकडिय तह सिरोहिय अट्टी बनी सदा चउम्मासा | तुल्ले कुमरु पुणेवं अट्ठी बनी धुवं जाण ।। ५७ ।। पउमाभिहाण मुद्दा वारह वन्नीय तस्स कणओ य । तुल्लेण टकु इनको सत्त जवा सोल विसुर्वसा (२) ५८ (२) वा० १० सीताराम मासा १० १ संयोग वियोगी १ वानी ८ चउकडीया ४| वा० ८ सिरोहिया ४ या० ८ कुमक तिदुर्णागिरि मासा ४ वा० १२ पदमा टं १ जत्र ७ 5०11० ५३. वालिष्ट मुद्राएँ रौप्य मय तीन प्रकार की तोल वाली (पावली, अधेली और एक तोले की ) होती हैं जो प्रति ५२ द्रम्म में १६०, ८० और ४० आती हैं । ५४. श्रीदेवगिरि में उत्पन्न सोवण (१२१०-१४४७) मुद्रा ताल में एक मासे की है। अघमसी ठारा नामक मुद्रा है इनकी चाँदो साढ़े सतरह विसवा होती है। कोष्टक के संकेतानुसार इनका मूल्य चार द्रम्म और दो द्रम्म जानना चाहिए। ; ५५. करारी, खटियालय, रोगी नरहड़ादि जो अन्यान्य मुद्राएँ हैं उन सबको देखकर नजर से अथवा अग्नि में तपा कर चासनी से परीक्षा करनी चाहिए । रौप्य मुद्रा शेष हुई। ५६. सीताराम को संयोगी और वियोगी दो प्रकार की स्वर्णमुद्राएँ होती हैं । वे दसवान सोने की ओर तौल में दसमासा ( एक भरी) को हैं वे केवल पूजनीय और बिना भुनाने योग्य हैं । ५७. चौकड़िया, सीरोहिया और कुमरु' (त्रिभुवनगिरि के राजा कुमारपाल यादव की), ये तीनों स्वर्ण मुद्राएँ सवा चार मासा वजन में और आठवान सोने की हैं। ५८. पद्मा नामक मुद्रा का सोना बारवान का है और तोल में एक टॉक, सात जी और सोलह विसवा होती है। १. करौली से २४ मील उत्तर पूर्व में त्रिभुवनगिरि - वर्तमान तहनगठ है। इस यादव राजा कुमारपाल को युगप्रधान श्रीजिन दत्तसूरिजी ने प्रतिबोष किया (सं० १२११ से पूर्व ) था । सं० १२५२ में वृद्ध राजा कुमारपाल से मुहम्सव गोरी ने त्रिभुवनगिरि का राज्य ले लिया था। धोजिनदत्तसूरिजी की भक्ति करते हुए इनका तत्कालीन चित्र जेसलमेर भंडार में विद्यमान है । Aho! Shrutgyanam Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा देवगिरी हेमच्छ सवादसी सिंघणी महादेवी । ठाकर लोहकुंडी अट्ठी वाणकर पउणदसी ।। ५९ ।। खग्गधर चुक्खरामा सड्डूनवी केसरो य छह सड्डा | सत्त जब दसी वनी कउलादेवो वियाणाहि ॥६०॥ जे अनि प्रच्छु बहुविह यरेहि तह मुल्लु तुल्लु नज्जेइ । चउमासा दीनारो जहिच्छ वन्नी णुसारि फलो (१) ॥ ६१ ॥ ॥ इति स्वर्णमुद्रा ॥ वाणासीय मुद्दा पउमा नामेण इक्कि सय मज्झे । तिन्नेव घाउ तुल्ले तोला सइतीस जाणेह ||६२ || (३) बालू देवगिरी मुद्रा स्वर्णमय वानी विउराप्रमाणे १०। सिंघण १०। महादेवी ८ ठाणाकर ८ लोहकुंडी ९|| रामबाण ९॥ खङ्गधर ६ ॥ केसरी बोलीराम १० ज ७ कौल देवी • दीनारु मा० ४ Po ५९-६०. देवगिरि की आछू स्वर्णमुद्राएं सोंघण और महादेवी सवा दस बान की ठाणकर और लोहकुंडी आठवान की, वाणकर (रामवाण) पौने दस बान की, चोखी राम (लघर) साढ़े नौ बान की, केसरी साड़े छः बान की, कौलादेवी दस वान सात जवान के सोने की जानना । ६१. अन्य भी बहुत प्रकार के स्तर की जिनका मोल तोल अज्ञात हो व चार मासे वाली दीनार में सोने की बान के अनुसार यथेच्छ फल जानना । स्वर्ण मुद्राएँ समाप्त हुई। ६२. पद्मा नामक वाराणसीमुद्रा में तौल में तीनों पातु मिले हुए है और सो मुद्राएँ तीस तोला ( अर्थात् १११ टॉक) है। १. केसरी मुद्रा का उल्लेख हेमचन्द्रकृत द्वाश्रय काव्य में आया है । Aho! Shrutgyanam Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ परीक्षा पंच जब हीण वारह वन्नी कणओ य टंक इगवाला । छत्तीस प्रमल रुपं तंबं चउतीस टंकेवं ( * ) ॥६३॥ इविक पउमस्स मज्झे रुप कणय तंव मासओकिक्को । सत्त दह पंच जब कमि न च गनर विमुवहिया ।।६४।। इय एगि पउम तुल्लो मुणिज्जव विसुवंस सोल टंकु इगो । जाणेह तस्स मुल्लो जइथल उणसट्टि यह सठ्ठी ( १ ) ||६५|| भगवा तिघाउ संभव पउमा समतुल्ल विविह मुल्ला य । भगवंदसणियं नामे कारिय जियसत्त रायस्स ( ) ||६६ ॥ (४) • पदमा १०० मध्ये धातु ३ टंक १११ ४१ सोना बानी ११ जव ११ चोपा टं ३६ रूपा चोखा नवाती विश्वा २० टं ३४ तांबा चोखा अमल प्रधान (५) ० पदमा १ संतोल्ये टं १ जव ७० ।।।१ मासा १ ज ७ So||| रूपा चोखा || मासा १ ज १० मासा १ ज ५ ।। ० ४ ताँबा निर्मल १४ ।।। १ कनक चोखा || (६) भगवा नानाविध मौल्य मुद्रा ११ तोये मासा ४ जब ७ भगवंत नामे जितशत्रु नृप कारितं ॥ ६३. इसमें इकतालीस टंक पाँच जब कम बारहबान (११ वान ११ जन) चीपा जाति का सोना, छत्तीस टंक शुद्ध बीस विसवा चाँदी और चौंतीस टंक निर्मल तांबा है । (फुल ४१+३६+३४ = १११ टंक हुए) ६४. एक पद्मा मुद्रा में चांदी, सोना और तांबा तीनों धातु एक एक मासा और उस पर क्रमश: सात, दस, पांच जो एवं शून्य, चार, पन्द्रह विसवा अधिक पातु है। इस हिसाब से चाँदी एक मासा ७ जव ० विसवा; सोना एक मासा, दस जव, चार विसवा और ताँबा एक मासा पाँच जय सोलह बिसवा होता है। ६५. एक पद्मा मुद्रा तोल में एक टाँक सात जो सोलह विसवा है जिसका मूल्य जयथल मुद्रा उनसठ या साठ जानना चाहिए । ६६. सोना, चांदी और तोबा तीनों धातु की बनी हुई ११ (कोटकानुसार ) भगवा मुद्रा पद्मा के समान तौल और विविध मूल्य की है। ये भगवान की दर्शनीय नामक मुद्रा जिवाणु राजा ने बनवाई थी। Aho! Shrutgyanam Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा मुद्द विलाई कोरं मासा नव तुल्लि तिन्नि धाऊ य । तंबं दिवड्ड मासं सेस कणय रुप्प अद्धद्धं ॥६७॥ पउण ति टंका मुल्लं इमस्स सेसाण कमिण पाऊणं । जा पाय टंकओ हुइ इक्कारस मुद्द तुल्लि समा(") ॥६॥ माहोवयस्स मुद्दा तुल्लो इक्कस्स सड्ड चउमासा।। संजोय तिन्नि धाऊ पिहु पिहु नामेहि तं भणिमो ॥६९।। रुव कणय गुज चउ चउ तंबउ गुणवीस वीरवंमो य(")। मुल्लु चउवीस जइथल* हीरावंमस्स वावीसं(') ॥७॥ (७) विलाईकोर मुद्रा ११ तोल्ये। मासा ९ मूल्ये टंका 5२।। २।। २। ३२ १ १ ॥ ३१॥ 500 500 5.1 (८) २४ वीरवरमु मासा ४॥ तृधातु • सोनउ . रूपउ । त्रांबा ० राती ४ . राती ४ रा० १९ (९) २२ हीरावरमु मासा ४॥ तृधातु • सोनउ रूपउ तांबा • ०रा० ३॥ रा० ३॥ १९॥ ६७. विलाईकोरमुद्रा तीन धातु को तौल में नौ मासा है, जिसमें डेढ मासा तांबा और शेष चांदी और सोना आधा-आधा अर्थात् पौने चार मासा चांदी और षोने चार मासा सोना है। कोष्ठकानुसार इनकी मुद्रा ग्यारह समझनी चाहिए। ६८. इनका मूल्य पौने तीन टंका और अवशिष्ट दस का पाव पाव टंका कम करते पाव टंका रहा । ये ग्यारह मुद्राएं तौल में बराबर हैं । अर्थात् २।।।, २०, २१, २, १३, १शा, ११, १, om, or, ०। टंका हुआ। ६९. महोवा की मद्राएं तौल में एक साढे चार मासा की और सोना, चाँदी, तांबा तीनों घातु मिश्रित हैं जिन्हें मैं पृथक पृथक् नामों से कहता हूँ। ७०. वीरवर्म देव (चंदेल) को मुद्रा में चार-चार रत्तो सोना, चांदी और उन्नीस रत्ती तांबा है उसका मूल्य बाईस जयथल है (कोष्टकानुसार सोना ३३, चांदी ३३ और ताम्र १९३ रत्ती है।) उस समय जयथल या जीतल प्रचलित मुद्राएँ थी, खरतर गच्छ-युगप्रधानाचार्य गुर्वावली में सं० १३७५ में कलिकाल केवली श्रीजिनचंदसूरि के समय फलोदी तीर्थ में महत्तियाणा सेढू द्वारा बारह हजार देकर मन्त्रिपद ग्रहण एवं अन्य सब मिलाकर तीर्थ में तीस हजार जैथल आय होने का उल्लेख है। हस्तिनापुर तीर्थ में बीस हजार जैथल देकर ठ० देवसिंह द्वारा इन्द्रपद ग्रहण, ठ० हरिराज द्वारा:आमात्य पद ग्रहण करने और इस तीर्थ में कुल मिलाकर डेढ लाख जयथल आमदनी होने का उल्लेख है। Aho! Shrutgyanam Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा तंबु अढाइ मासा रुप्पु सुवन्नो य इक्कु इक्को य । तियलोयवंम मुल्लं छत्तीसं() विविह भोजस्स (')।७१।। वल्लह तिय कमि धाऊ रुप्य कणय गुंज अट्ठ पण अहुठें। तंबु भव११ सतर१७ वीसं२० मुल्ले चालीस तोस वास धुवं(१२) ॥७२॥ ॥ इति त्रिधातु मिश्रित मुद्राः ।। अथ द्विधातु मुद्रा:जे तोला जे मासा जि टंक उल्लविय सबल मुद्देहि । तं सयमझे रुप्पउ जाणिज्जहु सेस तंवो य ॥७३॥ खुरसाण देस संभव चिन्हक्खर पारसीय तुरुकी य । तंबय रुप्प दुधाऊ इमेहि नामेहि जाणेह ॥७४।। (१०) ३६ त्रिलोकवरमु १ मासा ४॥ मा० • मा १ सोनमा १ रूपौमा २॥ तांबा (११) • भोज नाना तौल्य विविध मूल्य • तृधातु संभव (१२) वालम्भ सोना रूपा ४० १ रा.८ . रा.८ ३०१ रा. ५ रा.५ २० १ रा. ३॥ रा. ३॥ मासा ४॥ ४॥ तांबा रा. ११ रा. १७ रा. २० ७१. त्रिलोक वर्मा की मुद्रा में ढाई मासा ताम्र और एक-एक मासा सोना चांदी है जिसका मूल्य छत्तीस जीतल और भोज की मुद्राओं में विविध है। कोष्टकानुसार भोज की मुद्राएँ त्रिधातु की नाना तौल एवं विविध मूल्य की थीं। ७२. वल्लभ (वालंभ--वल्लह) मुद्रा तीन प्रकार की होती है जिनमें सोना, चांदी दोनों बराबर आठ, पांच, साढ़े तीन रत्ती एवं तांबा ११,७०,२० रत्ती है। अर्थात् सब मिला कर साढ़े चार, साढ़े चार मासा तीनों में बराबर वजन हुआ और मूल्य क्रमश: चालीस, बोस बोर बीस जीतल हैं। ॥तीन धातुओं की मिश्रित मुद्राएं समाप्त हुई। अब दो घातु की मुद्राएं : ७३. समस्त मुद्राओं में जितना तोला जितना मासा और जितने टंक कहे हैं उतनी प्रतिशत चांदी और अवशिष्ट ताम्र जानना । ७४. खुरासान देश की निर्मित मुद्राओं में पारसी और तुर्की चिन्हाक्षर रहते हैं, जिनमें तांबा और चांदी दो धातु हैं। इनके नाम इस प्रकार जानो Aho! Shrutgyanam Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा भइ य एग टिप्पी सिकंदरी कुरुलुकी पलाहउरी । सम्मोसीय लगामी पेरि जमाली मसूदीया ||७५॥ सय मुद्द मज्झि रुप्यउ ति चउ ति दु इगेग दु दु इग दु तोला । सुन ति३ सुन० ६ २ सवापण ५ ६२ सढनव९ ॥ पउण दुइमासा ॥७६॥ चउतीसं तेवीसं चउतीसिंगयाल प्रसी सट्ठि कमे । इगयाल सत्तयालं पणपन्नऽडयाल टंकिक्के (१) ॥७७॥ ॥ इति खुरसाणीमुद्राः । विवरणं यंत्रेणाह- (१३) ३४ भइ मुद्रा २३ इनटीपी ३४ सिकन्दरी ४१ कुरुलुकी ८० पलाहौरी ६० समोसी ४१ लगामी ४७ पेरी ५५ जमाली ४८ मसूदी करारी १०० मध्ये रूपा १०० मध्ये रूपा १०० मध्ये रूपा १०० मध्ये रूपा १०० मध्ये रूपा १०० मध्ये रूपा १०० मध्ये रूपा १०० मध्ये रूपा २०० मध्ये रूपा १०० मध्ये रूपा तो. ३ मा ० तो. ४ मा ३ ३ मा. ० २ मा. ६ १ मा. २ १ मा. ५० २ मा. ६ २ मा. २ १ मा. ९ ।। २ मा. १।। ७५. भंभइ, एक टिप्पी, सिकंदरी, कुरुलुकी, पलाहोरी, समोसी, लगामी, पेरी, जमाली और मसूदी । ७६. सौ मुद्राओं में चांदी तीन, चार, तीन, दो, एक, एक, दो, दो एक, दो तोला एवं शून्य तीन, शून्य, छह, दो, सवा पाँच, छह, दो, साढ़े, नो, पौने दो मासा क्रमश: है । अर्थात् सो मंभई मुद्रा में तीन सोना, इगटिप्पी में चार तोला तीन मासा, सिकंदरी में तीन तोला, कुरुलुकी में दो तोला छः मासा, पलहोरी में एक तोला दो मासा, समोसी में एक तोला सवा पांच मासा, लगामी में दो तोला छः मासा, पेरो में दो तोता दो मासा. जमाली में एक होला साढ़े नौ मासा और मसूदी में दो तोला पौने दो मासा चाँदी है। अस्सी, साठ, इकतालीस, सैंतालीस, अर्थात् भंभई, एक टंके की पोतीस, पलाहोरी अस्सी समोसी साठ, लगामी Aho! Shrutgyanam ७७. चौंतीस, तेईस, चौंतीस इकतालीस, पचपन और अड़तालीस मुद्राएँ एक टंक की आती है। इगटिप्पी तेईस, सिकंदरी चौंतीस कुरुलकी इकतालीस, इकतालीस पेरी सैतालीस, जमाली पचपन, मसूदी अड़तालीस आती है। 1 खुरासानी मुद्राएँ समाप्त हुई, यंत्र से विवरण जानो । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ द्रव्यपरीक्षा अवदुल्ली तह कुतुली तुल्लि सवापण दुमासिया मुल्ले । सट्टि असी तह रूप्पं दुदु जब चउ सोल विवकम्मे (४) ॥७८॥ ॥ इति अठनारीमुद्राः ॥ विक्कम नदि भणिमो गोजिग्गा अउणतोस तोल रुवा । दउराहा पणवीसं सवा हमे अठ चढ मुल्ले ।।७९।। भीमाहा छव्वीस तोला मासद्घ चारि टॅकिक्के । चोरो मोरी तोला पणवीसं मुल्लि चारि सवा ||८०|| करड तह कुम्मरूवो कालाकच्चरि य छक्क करि मुल्ले । राय मन्झि अट्टमासा सतरह तोला य सलु रुप्यं (१) ॥८१॥ " ॥ इति विक्रमार्कमुद्राः ॥ (१४) (१५) ० अबदुल्ली • कुतुली ० गोजिगा ० दउराहा ० भीमाहा • चोरीमोरी १ मासा ५। १ मासा २ मध्ये रूपा जव २५४ प्र. ६० मध्ये रूपा जव १॥ ॥ प्र. ८० १०० मध्ये रूपा तोला २९ मासा ९ प्रति ३॥ १०० मध्ये रूपा तोला २५ मासा ३ प्रति ४ १०० मध्ये रूपा तोला २६ मासा ० ॥ प्रति ४ १०० मध्ये रूपा तोला २५ मासा • प्रति ४| १०० मध्ये रूपा तोला १७ मासा ८ प्रति ६ कूर्मरूपी १०० मध्ये रूपा तोला १७ मासा ८ प्रति ६ ० कालाकचारि १०० मध्ये रूपा तोला १७ मासा ८ प्रति ६ • करड ० ७८. अब्दुली और कुतुली सवा पाँच और दो मासा तौल में इनका मूल्य साठ बर अस्सी एक टंके में आती है। इनमें दो जो पार विसवा तथा दो जो सोलह विवा क्रमशः बी है । अठनारी मुद्रा समाप्त हुई ७९. महाराजा विक्रमादित्य की मुद्राओं का वर्णन करता हूँ - (एक सौ ) गोजिगा में उनतीस ढोला नी माया चांदी और एक टंके की साढ़े तीन के भाव तथा दउराहा एक सौ में पचीस तोला तीन मासा चाँदी व टंक के चार के भाव है । ८०. भीमाहा एक सौ में छम्बीस तोला आधामासा एवं एक टंके की चार के भाव हे पोरीमोरी में पचीस तोला चाँदी और टके की सवा चार के भाव है। ८१. करड, कूर्मरूपी और कालाकचारे तीनों मुद्राएँ टंके की छः के भाव है एवं एक सौ में सतरह दोला आठमासा चाँदी निश्चित रूप से है। विक्रमादित्य की मुद्राएं समाप्त हुई। Aho! Shrutgyanam Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परीक्षा ३ गुज्जरवइक्ष रायाणं बहुविह मुद्दाइ विविह नामाई। ताणं चिय भणिमोहं तुल्लं मुल्लं निसामेह ॥२॥ कुमर अजय भीमपूरी लूणवसा रुप्पु टंक पणवन्ना । पंच नव विसुव मुल्लो तुल्लो चउमास तेर जवा ॥८३।। वीसलपुरीय छह करि कुण्डे गुग्गुलिय टंक पन्नासं। डुल्लहर पनर तोला अहट्ट मासा छ सड्ड करे ॥४॥ अज्जुणपुरीय तोला वारह सड्डाय मुल्लि अट्ट करे। कट्टारिया चउद्दस तोला मासा ति सत्तेव (") 1॥८॥ (१६) ५।४ कुमरपुरी १०० मध्ये तोला १८ मा०४ ५।४ अजयपुरी १०० मध्ये तोला १८ मा.४ ५।४ भीमपुरी १०० मध्ये तोला १८ मा०४ ५।४ लावणसापुरी १०० मध्ये तोला १८ मा० ४ ८ अर्जुनपुरी १०० मध्ये तोला १२ मा० ६ ६ वीसलपुरी १०० मध्ये तोला १६ मा०८ १ कुंडे १ गूगले ६॥ डोलहर १०० मध्ये तोला १५ मा० ३॥ ७ कटारिया १०० मध्ये तोला १४ मा० ३ ८२. गूर्जरपति राजाओं की विविध नामों की बहुत प्रकार की मुद्राएं हैं, उनका तोल मोल मैं कहता हूँ, सुनो ! ८३. कुमरपुरी, अजयपुरी, भीमपुरी' और लावणवसापुरी एक सौ मुद्राओं में चांदी पचावन टंक अर्थात् अठारह तोला चार मासा है। यह पांच और नौ विश्वा के भाव है और तौल में प्रत्येक चार मासे की होती है। ८४. वीसलपुरी कुंडे और गूगले मुद्रा छ: के भाव एवं सो मुद्राओं में पचास टांक अर्थात् सोलह तोला आठ मासा चाँदी तथा डोलहर मुद्रा एक सौ में पन्द्रह तोला साढे तीन भासा चाँदो व साढे छः के भाव है। ८५. अर्जुनपुरी मुद्रा सो में साढे बारह तोला चाँदी और आठ के भाव है एवं कटारिया में प्रतिशत चौदह तोला तीन मासा चाँदी व सात के भाव है। ___* गूर्जरेश्वर कुमारपाल, अजयपाल, भीमदेव, लवणप्रसाद वीसलदेव, अर्जुनदेव आदि राजाओं की मुद्राओं का यहां वर्णन है। १. भीमपुरो मुद्रा का उल्लेख पुरातनप्रबन्ध १० ३३ में वसाह आभड़ प्रबन्ध में आया है। ये द्रम या द्राम के प्रकारों में से ही थी १० ३४ के महं आंवा के प्रबन्ध में गिरनार की पद्याओं के निर्माण में ६३ लाख भीमपुरी द्रम व्यय करने का उल्लेख है। पु०६५ में वस्तुपाल तेजपाल प्रबन्ध में तीन सौ बत्तीस करोड़ चौरासी लाख सात हजार चार सौ चौदह लोहड़िया अथवा इकाागला भीमपुरा द्रम विविध पुण्य कायों में व्यय करने का उल्लेख है। २. अगले पृष्ठ पर Aho! Shrutgyanam Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा नव करि असपालपुरीगारस तोला अड्डाइय मासा। सारंगदेव नरवइ तस्स इमं संपवक्खामि ॥८६॥ सोढलपुरी छ तोला मासा अट्टेव मुल्लु पन्नरसा । पणमासा दहतोला दस करि लाखापुरी जाण ।।७।। गविका य पंच तोला रुप्पउ सयमज्झि वीस करि मुल्ले । पडिया रज्जपलाहा सोलह करि छ तोल अहुट्ठ मासा ॥८॥ वेवलय सड्ड सोलस रुप्पु छ तोला य मासओ पउणो। इय इत्तियाण तुल्लो मासा पंचेव इक्किक्को(७)॥८९॥ अट्ठ करिवि सट्ट सया तोला सढवार तुल्लि मासहुठा । दस तोल सत्त मासा वराह नव सडढ टंकीण ।।९०॥ ९ आसपालपुरी १०० मध्ये तोला ११ मा० २॥ १५ सोढलपुरी १०० मध्ये .. तोला ६ मा०८ १० लाखापुरी १०० मध्ये तोला १० मा० ५ २० गविकाः १०० मध्ये तोला ५ मा० ० १६ पड़िया १०० मध्ये तोला ६ मा० ३॥ १६ रजपलाहा १०० मध्ये तोला ६ मा० ॥ १६॥ वेवला १०० मध्ये तोला ६ मा० । ८६ आसपालपुरी मुद्रा नौ के भाव है उसमें ग्यारह तोला और ढाइ मासा चाँदी है । ये नरपति सारंगदेव को मुद्राएं हैं जिनका वर्णन करता हूँ। ८७. सोढलपुरी में प्रतिशत छ: तोला और आठ मासा चांदी है एवं पन्द्रह के भाव है। तथा लाखापुरी में प्रतिशत दस तोला पांच मासा चाँदी और दस के भाव है। ८८ एक सौ गविका मुद्रा में पांच तोला चाँदो एवं बीस के भाव है। पडिया और रजपलाह मुद्राओं में छ: तोला साढे तीन मासा चाँदो है और वे सोलह के भाव है। ८९. वेवला मुद्राओं में छ: तोला और पौन मासा चांदी है और वे साढे सोलह के भाव है। ये तौल इतनो (सी मुद्राओं को चाँदो) का है, एक एक मुद्रा तोल में पांच मासे की है । अर्थात् अवशिष्ट भाग ताम्र का है। इनका मूल्य प्रतिशत द्रव्य चाँदी के हिसाब से ही है। ९०. साठसया मुद्रा में प्रतिशत बारह तोला छ: मासा चाँदी है और तौल में साढे. तीन मासे की है और प्रति टंका आठ के भाव है। वराह मुद्रा में दस तोला सस्त मासा प्रतिशत चाँदी और टंके को साढ़े नौ के भाव है। ---------- - २. लणसापुरीयद्रम मुद्रा :--जाबालिपुर के समरसिंह के पुत्र चाहमान उदयसिंह के तीन भाई सामन्तसिंह अनंतपाठ और विलोकसिंह दातार और शूरवीर थे। राजा के दिए हुए ग्रास से अतृप्त वे धवल्लक में वीरववल के पास सेवा करने गए। वेतन पछने पर उन्होंने लुणसापुरीय द्रम्म लक्ष लक्ष प्रतिव्यक्ति मांगा था। [प्रबन्धकोश पृ० १०५] Aho! Shrutgyanam Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यपरीक्षा वारह सड्ढ करेविणु तोलट्ठ रुवा विनाइका चंदी। कन्हड़पुरी छ सड्ढा कणु पनरह तोल अहुठ मसा ॥९१।। वाण इगवीस तोला अधमासउ रुप्पु पंच इगि टंके । मछवाह छकरि सोलह तोला मासट्ट रुप्पु सए(") ॥१२॥ चउतीसा पइतीसा छत्तीसा तह य सत्ततीसा य । मालवपुरि छारीया चासणिए मुल्लु एयाणं ॥९३॥ ॥ इति गुर्जरी मुद्राः ॥ मालविय चउक्कडिया तोला अट्ठाय सड्ढ वारि करे । दिउपालपुरी पनरह तोला पण मास छह सड्ढा ।।९४।। कुण्डलिया छह तोला पउण छ मासा य मुल्लि पन्नरसा । मासट्टपच ताला वारह जव कलिया सतर ।।९।। (१८) ८ साठसया १०० मध्ये तोला १२॥ मा. ३॥ ९॥ वराहमुंद १०० मध्ये तोला १. मा. ७ १२॥ विनायका १०० मध्ये तोला ८ मा. . ६॥ काहडपुरी१०० मध्ये तोला १५ मा. ३॥ ५ वाणमुद्रा १०० मध्ये तोला २१ मा. ।। ६ मछवाहा १०० मध्ये तोला १६ मा. ८ ९१. विनायकाचंदी मुद्रा में प्रतिशत आठ तोला चाँदी और टंके की साढ़े बारह के भाव है । कान्हड़पुरो मुद्रा में चाँदी पनरह तोला प्रतिशत है; यह साढ़े छः मुद्रा प्रति टंके के मूल्य की है और तौल में प्रत्येक साढ़े तीन मासे की है। ९२. वाणमुद्रा में प्रतिशत इक्कीस तोला और आधा मासा चांदी व पांच के भाव है। मछवाह मुद्रा में प्रतिशत सोलह तोला आठ मासा चांदी एवं उसका मूल्य टंके की छ: के भाव से है। ९३. चौंतीसा, पैंतीसा, छत्तीसा व सैंतीसा, मालवपुरी छारिया इन मुद्राओं का मूल्य चासनी के अनुसार जानना चाहिए। गूर्जरी मुद्राएँ समाप्त हुई। ९४. मालवा की चौकड़िया मुद्रा में प्रतिशत आठ तोला चाँदी व साढ़े बारह के भाव है। दिउपालपुरी में पन्द्रह तोला पांच मासा चांदी और साढ़े छ: के भाव है। ६५. कुंडलिया मुद्रा में प्रतिशत छ तोला, पौने छः मासा चाँदी है और पन्द्रह के भाव है। कउलिया मुद्रा में पांच तोला आठ मासा बारह जो चाँदी है और वह सतरह के भाव है। Aho! Shrutgyanam Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ प्रत्यपरीक्षा वावीस टंक दव्वो तेरह सड्ढा छडुल्लिया होंति । लक्की तुंगड पण तोला तियमास चउवीसं (उणवीस ? ) ||९६ ।। इय इत्तियाण तुल्लं चउमासा दह जवा हवंति धुवं । जानीया चित्तउडी वीसं दब्दो य पण तोला ( ९ ) ॥९॥ जनकरिया गलहुलिया वावोसं तीस मुल्लु तह दव्वो । कमि चारि तिनि तोला छ जव चउम्मास चउमासा ।। ९८ ।। मास इक्कु तोलउ रुप्पो य खालगा य छप्पन्ना । सिवगणय पंचहतरि मुल्लि सवा तोलओ रुप्पो ॥९९॥ १९. प्रति नाम १०० मध्ये रूपा तो० मा० तोल्ये टं० जव १२॥ चौकडिया ८ १ १० ६॥ दिउपालपुरी १५ १ १० १५ कुंडलिया ६ १ १० १७ कउनियामुद्र ५ १० १३॥ छलिया १० १० १९ रोलको तोगड २० जानीया चितौड़ी ५ ० ५ ५० ረሀ १ Aho! Shrutgyanam k १ ९६. छडुलिया मुद्रा में प्रतिशत बाईस टांक अर्थात् सात तोला चार मासा चाँदी है और वह प्रति टंका साढ़े तेरह के भाव की है । सेलकी तोगड़ मुद्रा में पांच तोला तीन मासा चाँदी है तथा वह उन्नीस के भाव है ९७. इन इतनी मुद्राओं का तौल पृथक् पृथक् एवं टंक अर्थात् चार मासा और दस जो निश्चित है। जानीया चित्तोड़ी मुद्राओं में प्रतिशत पाँच तोला चाँदी है और वह प्रति टंका बीस के भाव है। ९८. जकारिया मुद्रा में प्रतिशत चार तोला, साढ़े चार मासा चांदी है और वह बाईस के भाव है। गहूनिया मुद्रा में प्रतिशत तीन ढोला चार मासा चांदी और वह प्रति टंके तीस के मूल्य की है। ९९. खानगा मुद्दा में प्रतिशत एक तोला तीन मासा चाँदी है और वह प्रति टंके छप्पन आती है। शिवगणं मुद्रा में प्रतिशत एक तोला तीन मासा चाँदी है और वह देके की पचहत्तर के भाव की है । Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा चउदस सवा चउदसी तोला वपडाय मलित सत्तकरे । सिह चोरमार मलुवा तेरह तोला व सत्त सत्त सवा ( २ ) ॥१००॥ ॥ इति मालवीमुद्राः ॥ चाहंडी तिनि कमसो दुउत्तरी अंककी पुराणी य । विति दु तोल दहति दह मासऽडवीस वतीस पणतीसं ॥१०१॥ आसलिय सतरहुत्तरि दु तोल छम्मास दव्व चालीसं । आसल्ली ठेगा महि छ टंक कणु मुल्लि पन्नासं ॥ १०२ ॥ प्रासलिय नविय तुल्ले सतरह तोला सवाय इगि टंके । टंक अढाई रुप्यउ सय मज्झे बीस मासाय ॥१०३॥ ॥ इति नलपुरमुद्राः (") || (२०) प्रति मामानि २२ जकारीया नाम ३० गलहूलिया ५६ खालगा मुद्रा ७५ सिवगणा १०० मध्ये रूपा तो० मा० तोल्ये टं० १०० मध्ये ४ ४ ॥ ا" शत १ मध्ये शत १ मध्ये १ ७ वापडा नाम मुद्रा मध्ये ७ मलीता नाम मुद्रा मध्ये ७ सीहमार नाम मुद्रा म० ७ चोरमार नाम १०० म० (२१) प्र० २८ चांडी दुखत्तरी प्र० ३२ चांहडी आंककी प्र० ३५ चांहडी पुराणी प्र० ४० आसली सतरहोतरी प्र० ५० आसली उँगा ४ ८ ३ १ १४ १४ १३ १ १३ ० १ १०० मध्ये तो० ३ मा० १० १०० मध्ये तो० ३ मा० ३ १०० मध्ये तो० २ मा० १० मध्ये तो० २ मा० ६ १०० मध्ये तो० २ मा० प्र० १७ आसली नवी ठेका १ प्रति तुलित तोला १७१ मध्ये रूपा तोला २|| सत १ मध्ये रूपा तो ५ (१) ० ३ ० ० ० Aho! Shrutgyanam १ 物 १००. चापड़ा में प्रतिशत चौदह तोला चांदी है और वह सात के भाव है । मलीता मुद्रा में प्रतिशत चौदह तोला तीन मासा चांदी है और वह सात के भाव है। सीहमार और चोरमार मलुवा ( मालवी) मुद्राओं में प्रतिशत तेरह तोला चांदी हैं और उनका मूल्य सात और सवा सात के भाव से है (कोष्टकानुसार सात है ओर अमि तीनों का प्रत्येक का तील एक एक टंक अर्थात् चार चार मासा लिखा है ) । मुद्रित कोष्टक में मनीता का प्रति १० लिखा है पर द्रव्य के हिसाब से व मूल माया में भी सात ही है । मालवी मुद्राएं समाप्त हुई । } १०१. चांडी मुद्रा तीन तरह की दुओत्तरी अंककी, पुराणी है जो तीन तोला दस मासा की दुबोत्तरी अठाइस प्रति टंके के भाव है । अंककी मुद्रा में प्रतिशत तीन तोला तीन Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ द्रव्यपरीक्षा चंदेरियस्स मुद्दा मुल्ले कोल्हापुरीय छह सड्डा । पनरह तोला सतिहा तुल्ले चउ विसुव टंकु इगो ।।१०४।। सड्डठ्ठ सड्ड वारह तोला जीरीय हीरिया सयगे। वार? करिवि सु कमे टंकइ इक्के वियाणेह ।।१०।। दव्व अढाई तोला अकुडा सय मज्झि मुल्लु चालीसा । जइत अड मास नव जव दव्वो मुल्लेण दिवढ सयं ॥१०६।। सठ्ठ सउ वीर टंकइ जव तेरह सत्त मास सय मझे। लक्खण सवा छ मासा रुप्पु सए मुल्लु असी सयं ॥१०७॥ राम दु जव चउमासा दुन्नि सया मुल्लि टंकए इक्के । वव्वावरा मसीणा खसरं च सयं नवइ अहियं ।।१०८।। ॥ इति चंदेरिकापुरसत्कमुद्राः(२१) ।। (२२) प्र. ६॥ कोल्हापुरी १०० मध्ये तो० १५ मा० ४ जव . प्र. १२ जोरिया १०० मध्ये तो० ८ मा०६ जव . प्र. ८ हीरिया १०० मध्ये तो० १२ मा० ६ जव . प्र० ४० अकुडा १०० मध्ये ____ तो०२ मा०६ जव . प्र० १५० जइत १०० मध्ये १०० मध्ये तो० ० मा०८ जव ९ प्र० १६० वीरमुंद १०० मध्ये तो०० मा९७ ज० १३ प्र० १८. लक्ष्मणी १०० मध्ये तो.. मा०६ ज० ४ प्र. २०० राम १०० मध्ये तो.. मा० ४ ज. प्र. १९० वन्वावरा १०० मध्ये तो० ० मा० ५ ज. प्र० १९० मसीणा १०० मध्ये तो०० मा० ५ ज. प्र० १९० खसर १०० मध्ये तो० . मा० ५ ज. ८ इति चंदेरिकापुरमुद्राः मासा चांदी है और वह बत्तीस के भाव है। पुराणी मुद्रा में प्रतिशत दो तोला दस मासा चांदी है और वह टंके की पैतीस के भाव है। १०२. आसली सतरहोतरी मुद्रा में प्रतिशत दो तोला छ: मासा चांदी है और प्रति टेका चालीस के भाव मूल्य है। आसली ठेंगा मुद्रा में प्रतिशत छ: टंक अर्थात् दो तोला चांदी है। यह टंके की पचास के भाव है। १०३. नयी मासली ठेका मुद्रा एक टंके की सवा सतरह के भाव है ढाई टांक चाँदी और सौ में बीस मासा (? पाँच तोला या ६० मासा) चांदी होती है। १०४. चंदेरी की मुद्राओं में प्रतिशत चाँदी पन्द्रह तोला चार मासा है उसका मूल्य टंके की साढे छ: के भाव है। एक मुद्रा की तोल एक टंक चार विसवा है। १०५. जीरिया मुद्रा में आठ तोला छ: मासा, हीरिया में बारह तोला छः मासा, प्रतिशत मुद्रा में, चाँदी, और एक टंके की जीरिया बारह और हीरिया आठ के भाव है। Aho! Shrutgyanam Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यपरीक्षा जालंधरी वढोहिय जइतचंदाहे यं रूपचंदाहे । रुप्प चउ तिन्नि मासा दिवढ सयं दु सय टंकिक्के ॥१०९॥ तिन सय इक्कि टंके सोसडिया हुइ तिलोय चंदाहे । संतिउरीसाहे पुर्ण चारिसया इक्कि टंकेणं ॥। ११० ।। ॥ इति जालंधरी मुद्रा : ( २३ ) ॥ अय डिल्लिकासत्कमुद्रा यथा- अग मणप्पला हे पिथउपलाहे य चाहड़पलाहे । सय मज्भि टंक सोलह रुप्पउ उणवीस करि मुल्लो ॥ १११ ॥ ॥ एता मुद्रा राजपुत्र तोमरस्य (२४) ।। रूपा तो० ० (२३) प्र० १५० जइतचंदाहे प्र० २०० रूपचंदा हे प्र० ३०० त्रिलोकचंदाहे प्र० ४०० सांतिउरीसाहे (२४) प्रति नामानि मुद्राना १९ अणगपलाहे १९ १९ १९ मदनला पिथउपला हे चाहा हे १०० मध्ये १०० मध्ये १०० मध्ये ॥ मध्ये 27 सत १ मध्ये रूप्य तोला मासा सत १ ५ सत १ ५ सत १ सत १ 11 31 11 " " 21 11 मा० ४ ३ Aho! Shrutgyanam 电 १०६. अकुड़ा मुद्रा में प्रतिशत दो तोला छः मासा चांदी एवं यह टंके की चालीस के भाव है । जइत मुद्रा में प्रतिशत आठ मासा नो जव चाँदी है और यह एक टंके में डेढ सौ के भाव है। १०७. वीर नामको मुद्रा में प्रतिशत सातमासा तेरह जो चांदी एवं यह प्रति टंका एक सौ साठ आती है । लक्ष्मणी मुद्रा में प्रतिशत छः मासा चार जो चाँदी है और एक सो अस्सी के भाव है । १०८. राम नामक मुद्रा में प्रतिशत चार मासा दो जो चांदी और दो सौ के भाव है। बावरा' नामक सौ मुद्रा में मसीणा नामक सौ मुद्रा में तथा खसर नामक सो मुद्रा में पाँच मासा आठ जो चांदी तीनों में बराबर है तथा प्रति टंका एक सौ नम्बे के भाव है। चन्देरिकापुर सम्बन्धी मुद्रा समाप्त हुई । १०९. जालंधरी वडोहिय मुद्राएं 'जइतचंदा हे' और 'रूपचंदा हे' हैं । जइतचंदाहे मुद्रा में प्रतिशत चार माया चाँदी है और एक सौ पचास के भाव है। रूपचंदाहे मुद्रा में प्रतिशत तीन मासा चांदी है और टंके की दो सौ के भाव है । १ बन्यावरा. मसीणा और खसर मुद्राओं की प्रतियात चाँदी का प्रमाण मूलयाचा में न होकर कोष्टक में है । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अव्यपरीक्षा सूजा सहावदीणी तहेव महमूद साहि चउकडिया । टंक चउद्दस रुप्पउ सय मज्झे मुल्ल इगवीसं ।।११२।। कडगा सरवा मखिया सवा छ तोला य रुप्पु सोल करे । कुंडलिया पण तोला छ मास अट्ठार इगि टंके ।।११३।। छुरिया जगडपलाहा चउताल दु मास रुप्यु पणवीसं । दकडीटेगा अहिया इगि मासइ रुप्पि तेवीसं ॥११४।। कुव्वाइची जजरी तह य फरीदीय परसिया मज्झे। दस मासा तिय तोला मुल्ले टंक्किक्कि छन्वीसा ॥११॥ चउक कुवाचीय वफा सवा ति तोला य मुल्लि इगतीसा। सतिहाय तिन्नि तोला खकारिया तीस करि जाण ।।११६॥ ११०. सीसड़िया मुद्रा तिलोकचंदाहे का भाव टंके की तीन सौ का है तथा सांतिउरी साहे मुद्रा का भाव चार सौ का मूल्य एक टंका है। जालंधरी मुद्रा समाप्त हुई। अब दिल्ली की मुद्राएं इस प्रकार है : १११. अणगपलाहे, मदनपलाहे', पियउपलाहे और चाहड़पलाहे नामक चार मुद्राएं हैं। इन चारों प्रकार की मुद्राओं में प्रतिशत सोलह टांक अर्थात् पाँच तोला चार मासा चांदी है एवं उनका मूल्य प्रति टंके पचीस के भाव है। ये मुद्राएं तोमर राजपूतों की हुई । ११२. सूजा, सहाबुद्दीनी, महमूदसाही और चउकड़ीया मुद्रा में प्रतिशत चौदह टांक अर्थात् चार तोला आठमासा चाँदी है और उनका मूल्य प्रति एक टंके की इक्कीस के भाव है। ११३. कटका, सरवा, मखिया मुद्रा में छ: तोला तीन मासा चांदी है और सोलह के भाव है। एवं कुंडलिया मुद्रा में पांच तोला छ: मासा चाँदी है और टंके की अठारह के भाव है। ११४. छुरिया, जगडपलाहा मुद्रा में चार तोला दो मासा प्रतिशत चांदी है और वह टेके को पचीस के भाव है। दुकड़िया ठेंगा में एक मासा अधिक अर्थात् चार तोला तीन मासा चांदी है एवं तेईस मुद्रा प्रति टंका का भाव है। ११५. कुचाईची, जजीरी, फरोदो और परसिया मुद्रा में प्रतिशत तीन तोला बक्ष मासा चांदी है एवं टंका की छब्बीस के भाव है। ११६. चउक, कुवाचिय, वफा मुद्रा में सवा तीन तोला चाँदी है एवं वह इकत्तीस के भाव है। खकारिया में तीन तोला चार मासा प्रतिशत चांदी है और वह प्रति रुपये की तीस के भाव है। १. दिल्लीश्वर मदनपाल तोमर को सं० १२२३ में मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरिजी ने प्रतिबोध दिया था। विशेष जानने के लिए "युगप्रधानाचार्य मुविसी" और "मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरि" देखना चाहिए। Aho! Shrutgyanam Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा उणतीस निवदेवी मुल्ले तोला ति सङ्घ चउमासा। घमडाह जकारीया अहुट्ट तोलाऽडवीस करे।।११७।। पढमा अलावदीणी सयगा समसीय चारि टंक सवा । इगसठ्ठि इक्कि टंकइ सत्तरि चउ टंक मोमिणिया ॥११॥ दुक सेला पंच रवा तोला तिय दिवढ मासओ रुप्पो। बत्तीस करिवि मुल्ले टंकइ इक्के वियाणिज्जा ॥११९।। तितिमीसि कुम्वखाणी खलीफती अधचंदा सिकँदरीया। नव टंक रुप्पु मुल्ले चउतीस करेवि इय समसी १२०॥ समसद्दीण सुयाणं रुकुणी पेरोजसाहि पणतीसं । तह बारसुत्तरी पुण इग मासा हीण तिय तोला ॥१२१ समसदि सुया सदीया तस्स रदी दुन्नि ढिल्लीय बुदउवा। सढ सोल पउण तेरह टंकक उणवीस इगतोसा ॥१२२।। नवगा पणगा मउजी* मासा नव सड्ड तोलओ इक्को। पणपन्न सोलहुतरी दुइ तोला मुल्लि पंचासं ।।१२३॥ ११७. नीव देवी मुद्रा में तीन तोला साढे चार मासा प्रतिशत चाँदी है एवं वह उनतीस के भाव है तथा धमडाहा जकारिया मुद्रा में तीन तोला छ मासा चांदी व टंके की अठाईस के भाव है। ११८. प्रथम अलावदीनी सतकासमसो मुद्रा में सवा चार टांक अर्थात् एक तोला पांच मासा प्रतिशत रोप्य एवं एक टंके-रुपये की इकसठ के भाव एवं मोमिनीअलाई में चार टांक अर्थात् एक तोला चार मासा चाँदी व टंके की सत्तर के भाव है। ११९. दुकसेला, पंचरवा (सेला समसी) मुद्रा में प्रतिशत तीन तोला डेढ मासा चाँदी है वह एक रुपये की बत्तोस के भाव जानना । १२०. तितिमीसी, कुव्वखानो, खलीफती, अधचंदा, और सिकन्दरी मुद्राओं में प्रतिशत नौ टांक अर्थात तीन-तीन तोला रौप्य एवं चौतीस के भाव ये समसी हैं। १२१. समसुद्दीन के पुत्रों की रुकनी, पेरोजसाही और बारहोत्तरी मुद्रा में प्रतिशत दो तोला ग्यारह मासा चाँदी एवं प्रति टंका पैंतीस के भाव है। १२२. समसदी की पुत्री रदिया (रजिया बेगम) की रदी मुद्रा दिल्ली और बदायूं की उभय टकसालों की है। रदी ढिल्लिका में साढे सोलह टांक अर्थात् पांच तोला छ: मासा और बुदोवा में पौने तेरह टांक अर्थात् चार तोला तीन मासा प्रतिशत चांदी है। दिल्ली की मुद्रा टंके की उन्नीस व बदायूँ की प्रति टंका इकतीस के भाव है। १२३. नवका और पनका नामक मउजी मुहामों में प्रतिशत एक तोला साढे नौ * मौजुद्दीन बहरामशाह (सन् १२४०-२) Aho! Shrutgyanam Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ द्रव्यपरीक्षा उणचास पनरहुतरी दुई तोला इस्कु मासओ रुपो । छका दु तोल दु मासा सईताल मउज्जिया एवं ।। १२४ ।। पेरोजसाहि नंदण अलावदीणस्स एवं मुद्दाई। वलवाणीव इकंगी अड्डा तिग टंक मुल्लि प्रसी ॥ १२५ ॥ वलवाणि वामदेवी तिस्सूलिय चउकीय सगवना । मुल्ले दिवड्डु तोलउ सय मज्झे दबु नायवी ॥ १२६॥ तेरसई मरुट्टी नवइ करिवि इक्कु तोलओ रुप्पो । उच्च मूलत्याणी नवमासा रुप्पु तीस सयं ।। १२७ ।। मरकुट्टीय सुकारो वारह नव नवइ १२९९ अंकि तस्स महे। तोलिक्कु पद्ध मासउ सत्तासी मुल्लि जाणेह ।।१२६ ।। सीराजी दुइ तोला छम्मासा रुप्पु मुस्लि इगवाला । चउपन्न मुक्खतलफी मासा दस तोलयो इनको ।। १२९ ।। मासा चाँदी व प्रति टंका पचवन के भाव है । सोलहोत्तरी में प्रतिशत दो तोला चाँदी और प्रति टंका पचास' के भाव है। १२४. पनहोत्तरी मुद्रा में दो तोला एक मूल्य एक टंका है। छका मुद्रा में दो तोला दो मासा है, ये मौजी मुद्राएं हुई मासा चाँदी है एवं उनचास मुद्राओं का चाँदी एवं प्रति टंका सैंतालीस के भाव १२५ विरोजसाह ( रुकनुद्दीन पेरोज) के पुत्र अलाउद्दीन ( मसूदी साह) की ये मुद्राएँ हैं - वलवाणी इकंगी में साढ़े तीन टाँक अर्थात् एक तोला दो मासा प्रतिशत चांदी और यह एक टंके की बस्सी के भाव से है। १२६. वलवाणी, वामदेव और विनिक पौड़िया मुद्रा में प्रतिशत एक तोला छः मासा चांदी है और इसे सतावन के भाव जानना चाहिए। १२७ रहसई नामक मरोटो मुद्रा में प्रतिशत एक तोला चाँदी है एवं प्रति टंका नब्बे के भाव है । उच्चई और मुलानी मुद्रा में प्रतिशत नौ मासा चांदी है और उनका मूल्य रुपये - टंके की एकसो तीस का है । १२८. मरोटी (इगानीमुद्रा), सुकारी मुद्रा में १२९९ अंक लिखा हुआ है और एक टोला भाषा मासा प्रतिशत चांदी एवं सतासी मुझ प्रति एक टंके का भाव जानना । १२९. सिराजी मुद्रा में प्रतिशत दो तोला छः मासा चांदी है और यह इकतालीस के भाव है। मुसतलफी मुद्रा में एक तोला दस माता प्रतिशत चांदी और इसका चौवन प्रति टंका भाव है। १. कोष्टक में पचपन छपा है। पर मेरी कापी में ५१ है मूल गाथानुसार पचास का भाव ठीक है। २. 'बलवाणी' शब्द 'बबन' से सम्बन्धित प्रतीत होता है। Aho! Shrutgyanam Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यपरीक्षा काल्हणी तह नसीरी' दक्कारी सत्त छ पण ७।६।५ टंक कणो। सगयालीस पचासं पणपन्ना कमिण टंकिक्के ।।१३०॥ सत्तावीस गया सी दुति हिय सयमज्झि १०२।१०३ टंक दस रुप्पं । मउजी' सइ पण तोला समसी हुय रुप्प टंका य॥१३१॥ जल्लाली तह रुकुणी' सड्डा पण टंक रुप्पु सय मज्झे । मुल्लं सवाउ दम्मं लहंति वटंति विवहारे ॥१३२।। अन्नन देससंभव अमणिय नामाइं जं जि मुहाई। ते पनरह गुण सीसइ सोहिवि कणु मुल्लु नज्जेइ(२५) ॥१३३॥ (२५) प्रति नामानि मुद्रानां सत १ मध्ये रूप्य तोला मासा २१ सूजा नाम मुद्रा सत १ , , ४ ८ २१ सहावदीनी मुद्रा सत १ , २१ महमूदसाही मुद्रा सत १ , , ४ ८ २१ चउकडीया मुद्रा सत १ , १६ कटका नाम मुद्रा सत १ ,, १३०. काल्हणी मुद्रा में सात टांक अर्थात् दो तोला चार मासा चांदी और एक टंके को संतालीस के भाव है। दिल्ली-टंकसाल की नसीरी (नासिरुद्दीन महम्मद सन १२४६६६) मुद्रा में छ: टांक अर्थात दो तोला चाँदी है और पचास प्रति एक टंका मूल्य है। दक्कारी-दकरी नामक मुद्रा में पांच टांक अर्थात् एक तोला आठ मासा चाँदी एवं प्रति टंका पचपन के भाव है। १३१. गयासी-दुगानी मुद्रा एक सौ दो तीन में दस टांक अर्थात् तोन तोला चार मासा चांदी और सताईस मुद्रा प्रति टंका के भाव है। मउजी तिगानी-तिगानी मुद्रा में प्रतिशत पांच तोला और मूल्य, समसी का भी, बीस टंका है। १३२. जलाली और रुकुनी नामक (वर्तमान) मुद्राओं में प्रतिशत साढ़े पांच टांक अर्थात एक तोला दस मासा चाँदो है और दोनों व्यवहार में प्रचलित हैं। मूल्य सवा दम्म प्राप्त होता है । (कोष्टक में अड़तालीस का भाव लिखा है ।) १३३. अन्यान्य देशों में बनी हुई अज्ञात नाम वाली जो मुद्राएं हों, उन्हें पन्द्रह गने सीसे के साथ शोध करके चांदी का मूल्य जानना चाहिए । १. नासिरुद्दीन महम्मद (सन् १२४६-६६) की मुद्रा अदल नासिरी कहलाती थी। २. गयासुद्दीन बलवन (सन् १२६६-८७) मौजुद्दीन (सन् १२८७-९०) शमसुद्दीन (सन् १२९०), इनकी मुदा अल्प राज्यकाल में बनी होगी जिनका मुल्य 'मउजी' के तुल्य था। जलालुद्दीन खिलजी (सन् १२९०.९६) रुकुनुद्दोन इब्राहिम (जलालुद्दीन का पुत्र सन् १२९६) १ रुकुनी = १३, ४८ रुकुनी = ६० दाम = १ टंका Aho! Shrutgyanam Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ सत १ ا م a d aan mal » » » س س س س س س man to an a س س س م م व्यपरीक्षा प्रति नामानि मुद्रानां सत १ मध्ये रूप्य तोला मासा १६ सरवा नाम मुद्रा १६ मखिया मुंद १८ कुंडलिया मुंद २५ छुरिया मुंद २५ जगटपलाहा नाम २३ दुकडीया ठेगा २६ कुवाइची जजीरी मुद्रा, २६ फरीदी नाम मुद्रा , २६ परसिया मुद्रा , ३१ चउक नाम मुद्रा ३१ वफा नाम मुद्रादq , , ३० खकारिया नाम मुद्रा २९ नींवदेवी नाम मुद्रा , २८ धमडाहा नाम मुद्रा २८ जकारीया नाम मुद्रा ६१ अलावदीनी मुद्रा , . . ६१ सतका समसी मुद्रा , ७० मोमिनी अलाई मुद्रा , ३२ सेला समसी , ३४ तितिमीसी नाम मुद्रा, ३४ कुव्वखानी " " ३४ खलीफती ३४ अधचंदा ३४ सिकंदरी , ३४ रुकुनी , ३५ पेरोजसाही , " , ३५ वारहोत्तरी, , , , १९ रदी ढिल्लिका टंकसाल संमध्ये ३१ रदी वुदौवां टंकसाल वुदाऊ ५५ वार• नवका मउजी ५५ पनका मउजी नाम मुद्रा ५५ सोलहोत्तरी मुद्रा ४९ पनरहोत्तरी ४७ छका नाम मुद्रा , ८. वलवाणी इकांगी सत १ ५७ वलवाणी वामदेवी , - م س س س • • • • • • س س س س س ل م un ه م م ه م م and a d م ه Aho! Shrutgyanam Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इथपरीक्षा • • • • • • प्रति नामानि मुद्राना सत १ मध्ये सप्य तोला मासा ५७ चौकडीहा ९. तेरहसई मरोटी , , , १ १३० उच्चई मुलधाणी ॥ ८७ मरोटी इगानी मुद्रा सत १ मध्ये ८७ सुकारी नाम मुद्रा सत १ , ४१ सोराजी नाम मुद्दा सत १ । ५४ मुख्तलफी मुद्रा " ४७ काल्हणी नाम मुद्रा , " ५. नसीरी ढिल्यां टकसालहता , ५५ दकारी नाम मुद्रा सत १ , २७ गयासी दुगाणी नाम मुद्रा " २० मउजी नाम मुद्रा तिगानी सत १ , ५ . ४८ जलाली नाम मुद्रा प्रवर्तमाना ,, ४८ रुकुनी नाम मुद्रा प्रवर्तमाना, इति श्री ढिल्यां राज्ये वर्तमान मुद्राः संपइ पवट्टमाणा मुद्दा अल्लावदीण रायस्स । दुविह दुगाणी दवो पउणा दस अट्ठ टंक सए ॥१३४॥ छग्गाणी पुण दुविहा सड्ढा पणवीस पउण पणवीसा । टंक सय मज्झि रुप्पउ सड्डा चउ दु जब नव विसुवा ।।१३५॥ इग्गाणी सय मज्झे तंवउ पण नवइ टंक पण दव्यो । रायहरे विवहारे गणिज्ज इग्गाणिया सयलं ।।१३६।। • १३४. वर्तमान काल में राजा अलाउद्दीन की मुद्राएं प्रचलित हैं। दुगानी दो प्रकार की हैं, एक में पौने दस टांक अर्थात् तीन तोला तीन मासा चांदी व दूसरी में आठ टांक अर्थात् दो तोला आठ मासा प्रतिशत चांदी है। कोष्ठक के अनुसार इनका मूल्य एक अलाई रौप्य टंके की तीस के भाव है। १३५. छगानी मुद्रा भी दो प्रकार की है। एक मे साढेपचीस टांक साढ़े चार बी अर्थात् आठ तोला छ: मासा साढ़े चार जो एवं दूसरी में पौने पच्चीस टांक दो जो नौ विसवा अर्थात आठ तोला तीन मासा नौ विसवा प्रतिशत चांदी है। कोष्ठकानुसार दोनों का मूल्य अलाई रुपये से दस के भाव है। १३६. एक सौ इगानी मुद्रा में पंचाणबे टांक तांबा व पांच टांक अर्थात् एक तोला आठ मासा चांदी है। राजा के कोशगृह में और सार्वजनिक व्यवहार में जितनी गगना या हिसाब है वह सब इगानी पर आश्रित है। इगानी मुद्रा एक टंक या चार मास वजन की होती थी। Aho!Shrutgyanam Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दव्यपरीक्षा इग पण दह पन्नासं सय तोला तुल्लि हेम टंकाई। चउ मासा दीनारो रुप्पय टंको य तोलीणो ॥१३७।। चउ मास जाव घडियं सहावदीणस्स तुच्छ मुद्दाई। दम्म छगाणी टंका रुप्प सुवनस्स तोलीणा ॥१३८।। ॥ इति अश्वपति महानरेन्द्र पातिसाहि अलावदी मुद्राः(२६.२७) ।। इत्तो भणामि संपइ कुतुबुद्दी रायबंदिछोडस्स । . चउरंस वट्ट मुद्दा नाणविह तुल्ल मुल्लो य ॥१३६।। (२६) ० रुप्य टंका १ अलाई प्रति गण्यते ॥ १० छगानी सतमध्ये तो०८ मा०६ ज.४॥ १० छगानी सतमध्ये तो०८ मा०३ ज०२।४ ३० दुगानी सतमध्ये तो० ३ मा०३ ज. ३० दुगानी सतमध्ये तो०२ मा०८ ६० इगानी सतमध्ये तो०१ मा०८ ज. • शेष तांबा सत १ टंक पूरणे सर्व मुद्र (२७) हेम टंका नाना तौल्ये • इकतोलिया १ • पंचतोलिया १ • दसतोलिया १ पंचासतोलिया १ सयतोलिया टंका हेम दोनारु मासा ४ रुप्य टंका सर्वेपि इकतोलिया १३७. हेम टंका इगतोलिया', पंचतोलिया, दसतोलिया, पचासतोलिया और सौतोलिया होता है। दोनार चार मासा सोने का और चांदी का टंका (रुपया) एक तोले का होता है। १३८. सहाबुद्दीन की लघु मुद्राएं चार मासे तक की बनी हुई हैं। द्रम्म, छगानी और टंका सभी चांदी सोने की मुद्रा एक-एक तोला की है। अश्वपति महानरेन्द्र अलाउद्दीन बादशाह की मुद्राएं शेष हुई। १३९. अब मैं वर्तमान 'राजबंदिछोड़' विरुद वाले कुतुबुद्दीन की नाना प्रकार की चतुरस्र और गोल मुद्राओं का तौल और मोल कहता हूँ। १. इगतोलिया हेम टंका अलाई मुहर १६९-१७० ग्राम को होती है। २. दीनार चार मासा की, कुतुबुद्दीन मुबारक की (१३१६-१३२०), जो छप्पन ग्राम सोने को होती है। Aho! Shrutgyanam Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ द्रव्यपरीक्षा बत्तीसं कणयमया रुप्यमया वीस दम्म सत्तविहा। चउविह तंबय साहा मुद्दा सव्वेवि तेसट्ठी ।।१४०॥दा।। इग पण दह तोलाइं दस हिय जा सउ दिवड्ढ सउ दु सयं । इय वट्ट हेम टंका चउरंस पुणोवि एमेव ।।१४१॥ तेरह मासा सतिहा सुवन्न टंको य सोनिया तिविहा । इग मासिया दुमासिय चउगुंजा एय बत्तीसं ॥१४२।। ॥ इति स्वर्ण मुद्राः(२८)। (२८) कनक मुद्रा ३२ यथा २९ टंका नानाविधा तोलो यथा१४ वृत्ताकार नाना तो. तो १ ५ १० २० ३० ४० ५० ६० ७० ८० ९० १०० १५० २०० १४ चतुः कोण तोल्ये वृत्ताकार वत् निश्चित । १ मासा १३ 5 संवृत्ताकारु ३ अपर नाना वृत्त लघु मुद्रा :___ १ मासा १ । १ मा० २। १ गुं• ४ १४०. सोने को बत्तीस, चाँदी की बीस, सात प्रकार के द्रम्म, चार प्रकार की तांबे की साहा मुद्रा- सब मिलाकर तेसठ हुई। १४१. एक. पाँच, दस और आगे दस-दस बढ़ाते हुए यावत सी, डेढ सौ. दो सौ तोला सोने की गोल मुद्रा और इसी प्रकार चौरस मुद्राएं भी होती है। १४२. तेरह मासे का अर्थात एक तोला एक सत्रिधा मासा का स्वर्ण टका गोल होता है और छोटी मोनैया मद्रा एक मासा, दो मासा और चार गुंजा-तीन प्रकार की होती है। इस प्रकार बत्तीस प्रकार की स्वर्ण मुद्राएं हुई।। स्वर्ण मुद्रा समाप्त हुई। अलाउद्दीन के उत्तराधिकारी-१ खिज्रखा, बड़ा पुत्र २ मुबारकखाँ ३ शादीखाँ ४ शाहाबुद्दीन उमर मलिक काफूर, सेनापति; अलाउद्दीन की मृत्यु के ३७ दिन बाद मलिक काफूर मार डाला गया। शहाबुद्दीन उमर तीन महीने सात दिन बादशाह रहा। मलिक काफूर को मृत्यु के दो महीने बाद शहाबुद्दीन को भी मुबारक ने अन्धा बना दिया। शादीखां और खिज्रखां को भी अन्धे बना दिए। __ सं० १३७५ वै० कृ०८ को महत्तियाण ठ. अचलसिंह ने सुलतान कुतुबद्दीन के फरमानपूर्वक कलिकाल केवली श्री जिनचंद्रसूरि जी के सानिध्य में हस्तिनापुर-मथुरादि यात्रार्थ Aho! Shrutgyanam Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ द्रव्यपरीक्षा रुप्पिग तोली वट्टा चउदस चउरंस हेम सम तुल्ला। पंच विहा रुप्पइया इग दु ति चउमासि अद्ध तुला ।।१४३।। ॥ इति रुप्यमुद्राः (२१)। दुग्गाणी य छगाणी तुल्ले मुल्ले य रुप्प तंबे य । उल्लाई सम जाणह अन्ने अन्ने वि हि भणिमो ||१४४॥ चउगाणी वट्ट सए सोल सवा टंक नव जवा रुप्पं । चउमासा तुल्लेणं न संसयं इत्थ नायव्वं ।।१४५।। (२९) रूप्यमा २० विवरणम् । १५ टंका मुद्रा नानाविध तो० १ संवृत्ताकारु तो०१ १४ चतुःकोणा तोलो यथा-१ ५ १० २० ३० ४० ५० ६० ७० ८० ९० १०० १५० २०० एवं । ५ रुपीया मुद्रा नाना तोलो । १ मासा १।१ मासा २१ मा० ३ १ मासा ४ । १ मासा ६। संवृत्ता संघ निकाला था। हस्तिनापुर तीर्थ के भंडार में डेढ लाख जयथल मुद्रा की आय हुई। योगिनीपुर के निकट तिलपथ में द्रमकपुरीयाचार्य के चुगली खाने से सुलतान ने संघ को रोक लिया। आचार्य श्री सुलतान से मिले तो वह बड़ा प्रभावित हुआ और उन्हें निर्दोष पाकर दुष्टस्वभावो द्रमकपुरीयाचार्य को जेल में डाल दिया करुणासमुद्र पूज्यजी ने उसे मुक्त करा कर अपने स्थान भेजा। बादशाह ने प्रभावित होकर खंडासराय में चातुर्मास कराया तथा बहुतसी धर्म प्रभावना हुई। बादशाह के कथन से श्रावण महीने में फिर संघ निकाला गया । वापस आकर शेष चातुर्मास खण्डासराय में बिताया गया। ग्रंथकार ठक्कुर फेरू भी संघ यात्रा व द्रमकपुरीयाचार्य को छुडाने आदि में प्रमुख व्यक्ति थे। (देखें युगप्रधानाचार्य गुर्वावली। गुर्वावली में कुतुबुद्दीन को अलाउद्दीन का पुत्र लिखा है।) १४३. एक तोले का रुपया गोल होता है और चौकोर रुपये चौदह प्रकार के उपरिवणित सोने की मद्रा के जैसे वजन वाले होते हैं। (छोटे) रुपये पांच प्रकार के होते हैं जो एक मासा दो मासा, तीन मासा, चार मासा और छ मासा के गोल होते हैं। रौप्यमुद्रा समाप्त हुई। १४४. दुगानी और छगानी मुद्रा में चांदी व तांबे की तौल और मोल अल्लाई मुद्रा के बराबर जानो । अन्यान्य का भी कहता हूँ। १४५. एक सौ गोल चौगानी मुद्रा में सवा सोलह टांक अर्थात् पाँच तोला दो मासा और मो अब ऊपर चांदी होती है। वह तौल में चार मासे को एक होता है, इसमें संशय नहीं जालना। Aho! Shrutgyanam Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बम्बपरीक्षा चउवीस वारसट्ट य षडयालीसाण मुद्द चउरंसा। तुल्ले य रुप्प तंबय संखा कमि अट्ठमाणीओ ॥१४६।। तित्तीस टंक नव जव चउ विसुवा रुप्पु सेस तंबो य । सय अट्ठगाणिएहिं इगेगि तुल्लो य चउमासा ।।१४७।। ॥ इति ममुद्राः(१)॥ (३०) द्रम्मा मुद्रा सप्त ७ नाना विधि तोलो मूलो। वृत्ताकार मुा ३ तोल्ये टं १ दुगाणो १०० मध्ये धातु २ t०८ नवाती रूप्य । टं०९२ ताम्र चउगानी १०० मध्ये धातु २ टं०१६ मा० १ जव ९ रूप्य टं० ८३ मा० २ जव ७ तांबा छगानी १०० मध्ये धातु २ टं० २४ मा० ३ जव १॥ रूप्य टं०७५ मा० जव १४॥ ताम्र चतुरन मुद्राः ४ अठगानी १०० मध्ये टं० ३३ मा० ज०९४ रू. टं०६६ मा० ३ ज०६१ तां० बारहगानी १०० टं० १५० मा० १ ० १५।।।. १॥ २७४ रू. मा०४ ज०७३॥ २॥. १ तां. चउबीसगानी तो टं० ३ (३००?) मा० ३ ज० १५॥ २॥. ४१.३ रू. मा० ८ ज०।२ 501 50॥ तां. अडतालीसगानी टं.६ (६००?) चउवीसगानीतो द्विगुणं द्रव्यं । १४६. अठगानी, बारहगानी, चौबीसगानी और अड़तालीसगानी चतुरन मुद्राओं की चांदी और तांबे की तौल की संख्या अठगानी क्रम से जानना चाहिए। १७. एक सौ अठगानी मुद्रा में तैतीस टांक (ग्यारह तोला) नो जव चार विसवा चांदी और बवशिष्ट तांबा होता है। एक-एक की तौल चार मासा होती है। द्रम्म मुद्रा समाप्त हुई। Aho! Shrutgyanam Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विसुवा सवाय विसुवा अषवा पइका य तांब चउरंसा। तुल्लेग कमि चडंता मासाओ जाम पण मासा॥१४॥ ॥ इति साहे मुद्राः ॥ एवं दव्यपरिक्खं दिसिमित्तं चंदतणय फेरेण । भणिय सुय-बंधवत्थे तेरह पणहत्तरे वरिसे ॥१४॥ इति श्री चन्द्रांगज ठक्कुर फेरू विरचिता द्रव्यपरीक्षा समाप्ता ।। १४८ ताम्र की चतुरस्र विसवा, सवा विसवा, आधी और चौथाई चार प्रकार की "साहामुद्रा" तोल में क्रमश: बढ़ती हुई एक मासा, सवा मासा, डेढ मासा और यावत् पांच मासा की होती है। १४९ संवत् तेरह सौ पचहत्तर वर्ष में चन्द्र के पुत्र फेरू ने अपने पुत्र और भ्राता के लिए दिशासूचक मात्र यह द्रव्यपरीक्षा कही है। श्रीचन्द्र के पुत्र ठक्कुर फेरू रचित द्रव्यपरीक्षा समाप्त हुई। Aho! Shrutgyanam Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठक्कुर फेरूविरचिता धातूत्पत्तिः अथ धातूत्पत्तिमाह रुप्पं च मट्टियाओ नइ-पव्वयरेणयाउ कणो य । धाउवाओ य पुणो ह्वन्ति दुन्नि वि महाधाऊ ।।१।। पटं च कीडयाओ मिय नाहीओ हवेइ कत्थूरी । गोरोमयाउ दुव्वा कमलं पंकाउ जाणेह ।।२।। मउरंच गोमयाओ गोरोयण होत्ति सरद्विपित्ताओ। चमरं गोपुच्छाओ अहिमत्थाओ मणी जाण ॥३॥ उन्ना य बुक्कडायो दन्त गइंदाउ पिच्छ रोमा (मोरा?) ओ। चम्म पसुवग्गाओ यासणं दारुखण्डाओ ॥४॥ सेलाउ सिलाइच्चं मलप्पवेसाउ हुइ जवाई वरं । इय सगुणेहि पवित्ता उपत्ती जइय नीयानो ॥५।। इत्युत्पत्तिः। अब धातुओं की उत्पत्ति कहते है : १. मिट्टो में चांदी, पर्वत और नदी की रेणुका में स्वर्ण होता है। फिर धातुवाद (धातुविद्या) से दोनों महाधातु हो जाते हैं (अर्थात् अग्नि में परिशुद्धि से मूल्यवान धातु बन जाते हैं)। २. कीड़ों से रेशमी वस्त्र, मृगनाभि से कस्तूरी होली है। गोरोम से दूर्वा और कीचड़ से कमल जानना चाहिए । ३. गोबर में भंवरा, गाय के यकृत स्थित शुष्क पित्त (Gall Bladder of the Cow) से गोरोचन, गोपुच्छ से चामर और साँप के मस्तक पर मणि होता है। ४. भेड़ों से ऊन, गजेन्द्रों से हाथीदांत, मयूर से पीछी, पशु. वर्ग से चर्म और काष्ठ खण्ड से अग्नि होता है। ५. पाषाणशिला में शिलाजीत होता है, खेतों में मल का खाद होने से उत्तम जो आदि होते हैं। नोचे स्थानों में उत्पत्ति होने पर भी ये अपने गुणों में पवित्र है। अब कृत्रिम वस्तुओं से बनाने की विधि कहते हैं : Aho! Shrutgyanam Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ धातूत्पत्तिः अथ करणीयमाहपित्तलि जहा-- वे मण अ(?)धावटियं कुट्टिवि रंधिज्ज गुडमणेगेण । जं जायइ निच्चीढं तयद्ध तंवय सहा कढियं ।।६।। सा बीस विसुव पित्तल दुभाय तंबेण पनर विसुवा य । तुल्लेण तंबयाओ सवाइया ढक्क मूसीहि ॥७॥ तम्बय जहा बब्वेरय खाणोओ आणवि कुट्टिज धाहु मट्टी य । गोमय सहियं पिडिय करेवि सुक्कवि य पइयव्यं ।।८।। पच्छा खुड्डइ खिवियं धमिज्ज नीसरई सव्व मलकडं । जं हिठे रहइ दलं तं पुण कुट्टै वि धमियव्वं ॥९।। तस्साउ वहइ पयरं तं तंबमिट्टयं वियाणेह । वुड्डाणए पुणेवं गुह्र गुलियं तओ हवइ ।।१०॥ प्रथ सीसयं जहा ना (न) गखाणोओ पाहण कढिवि कुट्ट वि पोसि धोइज्जा । जं होइ तं मलदलं दुभाय तइयंस लोहजुयं ।।११।। सय सय पलस्स मूसी ते चाडिवि तीस अंगए इक्के । आवट्टिय तुल्लेणं चउत्थभागूण हुइ सीसं ॥१२।। ६. पीतल-दो मन घावड़िया गूंद कट कर एक मन गुड़ के साथ रांधना । जब गाढ़ा (निच्चीढ़ = निपट चोढ़ा, रेवड़ो को चासनी या रबड़ को भाँति) हो जाय उससे आधे तांबे के साथ गलाना । ( विधि अन्वेषणीय है।) ७. वह बीस विसवा पीतल होगा, यदि तांबा दो भाग दोगे तो पन्द्रह विसवा पीतल होगा। बराबर तांबा देने से सवाया । मूस या घरिया को ढंक कर गलाना चाहिये। ८. तांबा-बबेरा की खान में से धातु मिट्टो को लाकर कुटना फिर गोबर के साथ पिण्ड करके सुखा कर जलाना चाहिये। ९. पोछे कुडी (भठ्ठी) में डालकर फूंकने से सारा मैल साफ हो जायगा। जो दल (मोटी गिट्टी या चूरा) नीचे रह जाय उसे पुनः कूट कर धमन करना चाहिए। १०. उसका पत्तर (पयर = प्रतर) बना लिया जाय तो उसे अच्छा (मष्ट) तामा समनो। पीट कर बढ़ाये हुए उन पत्तरों को सोधने से (पुणेवं) उसको गला कर गुट्टिका या गुल्ली बना ली जाती है। ११-१२. शोसा-नाग की खान के पत्थर को निकाल कर कूट पीस कर धोना । जो बना वह उसका मलयुक्त चूरा हुआ। उसको दो भाग तनीयांग लोहे के साथ सौ-सौ पन की मूस में चढ़ाकर बराबर बोटाने से चतुर्थ भाग शीसा होता है Aho! Shrutgyanam Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चालत्पतिः लोहं सारं च पुणो उप्पत्ती धाहु पाहणामो य । पित्तल कंसाईणं विणट्ठए होइ भिगारी ॥१३।। अथ रंगयं जहा रंगस्स घाहु कुट्टिवि करिज्ज कोमंस चुण्ण सह पिंडं। धमिय निसरई जं तं पुण गालिय कंबिया होन्ति ॥१४॥ अथ कंसयं जहा कंबिय सेरक्कारस मणेग तम्बं च पयर गुदवा ॥ आवट्ट घडिय सुद्धं कसं हुइ वीसयं सूणं ।।१५।। अथ पारयं जहा पारस्स धाह ठवियं तस्सोवरि गोमयह कूढि कूज्जा। मंदग्गि धमियमाणो उड्डवि संचरइ तस्स महे ।।१६।। अहवा रसकूव भणन्तेगे तरुणत्थी तत्थ करवि सिंगारं। तुरियारूढं झक्किवि अपुट्ठपयरेहि नस्सेइ ।।१७।। कुवाओ तस्स कए पारं उच्छलवि धावए पच्छा । बाहुडइ दहमकाओ पुणोवि निवडेइ तत्थेव ।।१८।। जं रहइ नियट्ठाणे कत्थेव खड्ड-खड्डीहिं । तत्थाउ गहइ सा तिय उप्पत्ती पारयस्स इमं ॥१९॥ १३. लोहसार की उत्पत्ति फिर धातु पाषाण से होती है। पीतल कांसे आदि के विनष्ट होने पर (एक साथ गालने से) भिंगारी (भरथ = भरत = भरण) हो जाती है। (भांगड़ी टूटे-फूटे बर्तन को कहते हैं तथा भंगार के भरतिये आदि बरतन तैयार होते हैं )। १४. रांगा--- राँगा धातु को कूटकर कोमंस चूर्ण के साथ पिण्ड करना। फिर गला कर नाली में चुभाने से-ढालने से कंबिया (कामो या गुल्ली) बन जाती है। १५. काँसा-ग्यारह सेर कंबिया या गुल्ली, एक मन ताँबा पत्तर या गुट्ट (पकिया) को औटाने से शद्ध काँसा बन जाता है। १६. पारा-पारा को धातु रखकर उसके ऊपर गोबर के कंडों का ढेर करके भट्ठो को ढंक देना । धीमी आँच में धमन करने से पारा उड़कर ऊपर लग जाता है । अथवा १७. पारे के कूप के विषय में कहा जाता है कि तरुण स्त्री वहां भंगार करके अश्वारूड होकर मांके बोर फिर बिना पीठ दिये भाग जाय । १८. उसके ऐसा करने पर रूप से पारद उछल कर पीछे दौड़ेगा बोर रेख कर बौटेगा और फिर वहीं पर गिर पड़ेगा। १९. जो नीचे स्थान या अपने स्थान (नियटाणे) में कहीं खड़े-खोतरे में रह जाय उसे वह स्त्री ग्रहण करे। यह पारद की उत्पत्ति कही है। Aho! Shrutgyanam Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वात्ततिः अथ हिंगुलयं जथा एगमण पारह तहाँ बन्धय चन्नं च सेर दस सिविडं। दूराओ आसन्नं मंदग्गी कोरए मिस्सं ॥२०॥ . कूटेवि तहिं खिविज्जइ मणसिल हरियाल सेर पा पायं । पूरिवि कच्च करावं दट्टिज्जइ खोरचुन्नेण ।।२१।। मढि मट्टिय सदलेणं तिन्नि अहोरत्ति वह्नि जालिज्जा। जाव सुगंधं ता हुइ सेर छयालीस हिंगुलयं ॥ २॥ अथ सिन्दूरं जहा - सोसयमणेगमज्झे वंसय रक्खा दहद्ध से राई। गालिवि मेलिवि कुट्टिवि छाणवि जलि घोलि परियव्वं ।।२३।। नित्तारिऊण नीरं जं हिढे तस्स वडिय कय सुक्कं । घणि कुट्टि हंखि छाणिय ठवि भट्ठो अग्गि कायव्वं ।।२४।। जह जह लग्गइ तावं तह तह रंग चडेइ जा ति दिणं । सेरूणं सिन्दूरं तग्गालिय हवइ पुण सीसं ॥२५।। एवं च भणिय संपइ कुधाउमज्झे सुधाउ भणिमोहं । कविय रंगे कणयं तोलय सय जव चउत्तीसं ॥२६।। सयतोलामज्झेणं बारह जव सीसए हवइ रुप्पं । पच्छा पुण पुण सोहिय तहावि निकणं न कइयावि ॥२७॥ २०. हिंमुन-एक मन पारद में गन्धक चूर्ण दस सेर डाल कर दूर से निकट धीमी आंच करके मिलाना। - २१. मणसिल हरताल पाव-पाव सेर कूट कर डाल देना। कांच के कडाव (तिजाब के भाँड) में डाल कर खोरिया चूने-खड़ी मिट्टी, की डाट लगा देना । २२. मिट्टी के दल से मढकर तीन अहोरात्र अग्नि जलाना। जब सुगंध पैदा हो जाय तब छयालीस सेर हिंगुल तैयार हो जाता है। २३. सिन्दूर-एक मन शीशा में बाँस की राख पाँच सेर गलाकर, मिनाकर, कूटकर छानकर जल में घोल कर रखना चाहिए । २४. पानी को नितार कर जो गाढा-घोल नीचे रहे उसकी बड़ी बनाकर सुखाना । फिर खूब कूटकर, छानकर भट्ठी पर रख कर आग जलाना चाहिए। २५. ज्यों-ज्यों ताप लगेगा, त्यों-त्यों तीन दिन पर्यन्त रंग चढ़ता ही जायगा। एक सेर से कुछ न्यून सिन्दूर बनने पर जो बचे उसे गलाने से.फिर शीशा हो जायगा। २६. यह तो कहा, अब कुधातु में सुधातु कितनी? सो कहता हैं। रांगे की सौ तोखे की कंबिया या गुल्ली में चौतीस जो सोना है। २७. सौ तोला सोसे में बारह जो रूपा (चाँदी) होता है। फिर बार-बार सोधने से भी निष्कश तो कभी नहीं होता (अर्थात् कुछ सोने चांदी का अंश रह ही जाता है)। Aho! Shrutgyanam Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षासूत्पत्तिः अथ धातोकरणी विधि :-कप्पूर-अगर-चंदण मगनामीत्यादि । दाहिणवत्तं संखं इगमुह रुद्दक्ख सालिगामं च । देवाहिट्ठिय तिन्नि वि अमुल्ल सपहाय भणियन्ति ।।२।। खीरोवहि संभूयं विभूसणं सिरिनिहाण रायाणं । दाहिणवत्तं संखं बहुमंगलनिलयरिद्धि रं ॥२६।। वटंति रेहकलियं पंचमुहं सुब्भ सोलसावत्तं । इय संखं विद्धिकरं संखिणि हुइ दोहहाणिकरा ॥३०॥ सिरिकणय मेहलजुयं वरठाणे ठविय निच्च सुइ काउं । दुद्धि न्हविऊण चन्दणि कुसुमागरि मन्ति पूइज्जा ।।३१।। पूजामन्त्रः ॐ ह्रीं श्रीं श्रीधरकरस्थाय पयोनिधिजाताय लक्ष्मीसहोदराय चिंतितार्थसंप्रदाय । श्रीदक्षिणावर्त्तसंखाय। ॐ ह्रीं श्रीं जिनपूजायै नमः ॥३२।। ___ इति पूजा विधिः दाहिणवत्तीय संखोयं जस्स गेहमि चिट्ठइ । मंगलाणि पवते तस्स लच्छी सयंवरा ॥३३॥ तस्संखि खिविय चंदणि तिलयं जो कुणइ पुहवि सो अजिनो। तस्स न पहव इ किंची अहि-साइणि-विज्जु-अग्नि-अरी ।।३४।। धातुकरण विधि: २८. दक्षिणावर्त शंख, एकमुखा रुद्राक्ष व शालग्राम ये तीनों देवाधिष्ठित होने से अमूल्य सप्रभाव वस्तु कहलाते हैं । २९. समुद्र में उत्पन्न, राज्यश्रीनिधान, आभूषण रूप दक्षिणावत्तं शंख बहुत मंगल और वृद्धि करने वाला होता है। ३०. पंचमुखा त्रिरेखाकलित, शुभ्र सोलह आवर्तवाला शंख वृद्धि करनेवाला और शंखिनी दूर तक हानिकारक होती है । ३१. कनक मेखला युक्त उत्तम स्थान में रख, प्रतिदिन पवित्र हो, दुग्ध से स्नान करा चन्दन कुसुम अंगर से मंत्र पाठयुक्त पूजा करनी चाहिए । ३२. पूजा मंत्र ऊपर लिखा है । यह पूजा विधि समाप्त हुई। ३३. दक्षिणावर्त शंख जिसके घर में रहता है उसके यहां हमेशा मंगल होते है और लक्ष्मी स्वयंवरा होकर जाती है । ३४. उस शंस में डाले हुए चन्दन से जो तिलक करे वह पृथ्वी में अजय होता है। एवं सांप, शाकिनी, बिजली, अग्नि और शत्रु से उसका पराभव नहीं होता। Aho! Shrutgyanam Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातूत्पत्तिा नरनाह गिहे संखं वृड्किरं रज्जि रहि भण्डारे । इयराण य रिद्धिकरं अंतिमजाईण हाणिकरं ॥३५।। दाहिणवत्ते संखे खोरं जो पियइ कय कुलच्छी य । सा वंझा वि पसूवइ गुणलक्खणसंजुयं पुत्तं ॥३६॥ ___ इति दक्षिणावर्त सङ्खः । दीवंतरि सिवभूमी सिवरुवखं तत्थ होन्ति रुद्दक्खा। एगाइ जा [च] उद्दस वयणा सव्वेवि सुपवित्ता ॥३७॥ पर उत्तमेगवयणा सिरिनिलया विग्घनासणा सुहया। कणयजुय कण्ठ सवणे भुय सीसे संठिया सहला ॥३८।। दुमुहा मंगलजणया तिमुहा रिवहरण चउर मज्झत्था । पंचमुहा पुन्नयरा सेसा सुपवित्त सामन्ना ॥३९।। इति रुद्राक्षाः। ३५. राजा के घर में यदि शंख हो तो राज्य, राष्ट्र, भण्डार आदि वृद्धि करता है एवं अंतिम जाति (शुद्र) को हानिकारक होता है। ३६. दक्षिणावर्त शंख में यदि कोई कुलवती स्त्री दूध डाल कर पिये तो बंध्या भी गुण लक्षण संयुक्त पुत्र उत्पन्न करती है। रुद्राक्ष : ३७. द्वीपान्तर में शिवभूमि में शिववृक्ष हैं । वहाँ रुद्राक्ष उत्पन्न होते हैं। एक से दश या चौदह मुख वाले सभी सुपवित्र हैं। ३८. परन्तु एकमुखी उत्तम है। वह धीनिलय, विघ्नहर और सुभग है। सोने के साथ कण्ठ, कान, भुजा और मस्तक पर पहनने से फल देता है। ३९. दुमुहा मंगलजनक, त्रिमुख शत्रुहरण चतुर्मुख मध्यस्थ, पंचमुखी पुण्यकर और शेष सामान्य सुपवित्र है। शालग्राम' : उपनिषदों में जलंधर राक्षस द्वारा वृन्दा का अपहरण और भ० विष्णु द्वारा उसे हनन कर वृन्दा का उद्धार होना बतलाया है। यह एक रूपक है। वस्तुतः जलंधर मेघ है और वृन्दातुलसी है जिसे विद्युत् वृक्ष कहते हैं। बदरिकाश्रमोपरि मेघ के विद्युत् प्रभाव से श्याम हुए पत्थर और उसके चक्रास ही नदी में लुढ़कते गोल होकर शालग्राम का रूप धारण करते हैं। शालग्राम और तुलसी के जल के प्रयोग से मेघ का विद्युत निष्प्रभ हो जाता है। इसी कारण हिन्दू घरों में वर्षा के प्रारम्भ में गृहाङ्गण में तुलसी लगा कर पूजते हैं और चातुर्मासान्त में विसर्जन होता है। इसका रहस्य है कि तुलसी के बारहबारह फुट तक बिजली नहीं गिरती। Aho! Shrutgyanam Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पातूत्पत्तिा गण्डयनइसंभूयं सालिग्गामं कुमारकणयजुयं । चक्कंकिय सावत्तं वट्ट कसिणं च सुपवित्तं ॥४०॥ लोया तईयभत्ता हरि व्व पूर्यति सालिगामस्स । सेयस्थि मुत्तिहेऊ पावहरं करिवि झायंति ॥४१॥ इति शालिग्रामम् । महभूमि दक्खिणोवहि केलिवणं तत्थ केलिगुदाओ। कहरव्वओ य जायइ कपूर केलि गन्भारो ॥४२॥ कप्पूर तिन्नि कित्तिम इक्कडि तह भीमसेणु चीणो य । कच्चाउ सुकमि मुल्लो वीस दस छ विसु व विसुवंसो ॥४३॥ कायासुगन्धकरणं तहत्थिमज्जाय भेयगं सीयं । वाय-सलेंसम-पित्तं तावहरं आमकप्पूरं ॥४४॥ __ इति कर्पूरः। अगरं खासदुवारं किण्हागर तिल्लियं च सेंवलयं । वीसं दस तिय एग विसोवगा सुकमि अन्तरयं ॥४५॥ ४० गंडक नदी में संभूत, चक्राङ्कित, आवर्तयुक्त, गोल, कृष्णवर्ण शालग्राम कुमार स्वर्णयुक्त पवित्र हैं। ४१ भक्त लोग विष्णु की तरह शालग्राम को पूजते हैं। श्रेय, मुक्ति और पापहरण के लिए उसका ध्यान करते हैं । कर्पूर : ४२ दक्षिण समुद्रतट की महाभूमि में केले के वन व केले के गूदवाले वृक्ष है। वहाँ केले के गर्भ में कर्पूर कहरवा (तृणकान्त मणि) की भांति उत्पन्न होता है। (वे वृक्ष हिमालय की तराई में होते हैं और कहरवा सभी प्रकार रक्त-पित्त रोग के लिए शामक और अमृत तुल्य है।) ४३. इक्कडि, भीमसेन और चीना तीन प्रकार का कृत्रिम कर्पूर होता है। उनका क्रमशः बीस, दस, और छः विंशोपक मूल्य एक विसवा भर तोल के लिए होते हैं। ४४. शरीर में सुगन्ध करने वाला, अस्थि, मज्जा तक भेदक, शीतल वाय-श्लेष्मपित्त, ताप और आंव को हरनेवाला कर्पूर होता है। अगर: ४५. खासदुवार, कृष्णागर, तिल्लिय और सेंवालक नामक अगर के मल्य में क्रमश: बीस, दस, तीन और एक विंशोपक का अन्तर है। Aho! Shrutgyanam Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पावत्पत्तिः अइकढिण गवलवन्नं मझे कसिणं सरुक्ख गरुयं च । उण्हं घसिय सुयंचं वाहे सिमिसिमइ अगरवरं ॥४६॥ इत्यगरम् मलयगिरि पव्वयंमि सिरिचंदणतरुवरं च अहिनिलयं । अइसीयलं सुबंधं तग्गंधे सयल वण गंधं ॥४७॥ सिरिचंदणु तह चंदणु नीलवई सूकडिस्स जाइ तियं । तह य मलिन्दी कउही वव्वरु इय चंदणं छविहं ॥४८।। वीसं वारटु इगं तिहाउ पा विसुव चंदणं सेरं । पण तिय दु पाउ टंका जइथल चउतिनि कमि मुल्लं ॥४९॥ सिरिचंदणस्स चिण्हं वन्ने पीयं च घसिय रत्ताभं । साए कडयं सीयं सगंठि संताव नासयरं ।।५।। इति चन्दनम्। नयवाल-कासमीरा कामख्या मिय चरन्ति सुकमेण । मासी मुत्थगठि उनं कत्थूरिय अरुण पीयघणा ।।५१।। नयवाला-कासमीरे मियनाही हवइ वीस विसुवा य । पंचि उरमाइ पव्वय संभूय दहट्ट जाणेह ।।५२।। ४६. बगर जंगली भैंसों के रंग का अति कठिन बीच में कृष्ण, भारी और उष्ण होता है। घिसने पर सुगंधी देता है । अग्नि में जलाने पर सिमसिम शब्द करता है। चंदन : ४७ मलयगिरि पर्वत के ऊपर श्रीचंदन के वृक्ष होते है और वहाँ साँपों का निवास है। वे अत्यन्त शीतल और सुगंधित है। उनकी सुगंध से समूचा वन सुगंधित हो जाता है। ४८. श्रीचंदन, नोलवइ, सूकड़ ये चंदन को तीन जातियाँ हैं। और भी मलिन्दी, कउही, बबरू ये कुल छ: प्रकार की जातियाँ चन्दन की हैं। ४९. बीस, बारह, आठ, एक, त्रिभाग (१), और चौथाई (१) विसवा वाले वंदन के एक सेर तोल पर पाँच, तीन, दो, पाव टंका और चार, तीन जीथल (एक प्रकार का सिक्का) क्रमशः मूल्य है। ५०. श्रीचन्दन का लक्षण --वर्ण पीला, घिसने से रक्ताभ, स्वाद में कडुआ, शीतल, गांठ सहित (? रहित). सन्ताप को नाश करने वाला है। कस्तूरिका : ५१. नेपाल, काश्मीर, कामरूप देशों में क्रमशः मृग विचरण करते रहते है। जटामासी, मुस्तग के साथ कस्तुरी आती है और लाल-पीली और घनीभूत--जमी हुई होती है। ५.. नेपाल, काश्मीर की कस्तुरी बीम विसवा शुद्ध होती है। एवं पंचिउरम् (?) आदि पर्वत में उत्पन्न दस-आठ जानना। Aho! Shrutgyanam Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धातुत्पत्तिः मियनाहि वीणओ हुइ पण तोला जाम चम्म सह तुल्लो । तस्सकणु वार विसुवा चम्मो विसुवट्ठ उद्देसो ||५३ || मियनाहि उण्हमहुरं कडुयं तिक्खं कसायसुगंधं । दुग्गंधि छद्दि तावं तियदोसहरं च सुसणेहं ॥ ५४ ॥ इति मृगनाभी कत्थूरिका: । कसमीरि जडि केसरि देसे हुइ कुंकुमं सुगन्ध वरं । वीस वारट्ठ विसुवा पण आदण हुरुमयस्स भवं ।। ५५॥ इति कुंकुमम् । मुर मास कुट्ठ वालय नह चंदण अगर मुत्थ छल्लीरं । सिल्हारस खंडजुयं सम मिस्स दहंग वर धूपं ॥ ५६ ॥ इति धूपः कपूर सुरहिवासिय चन्दणसंभूय परम सिय वासा । मासीवालय संभव कत्थूरिय वासिया सामा ।। ५७ ।। इति वास: L इति ठक्कुर फेरू विरचिते धातोत्पत्तिकरणीविधिः समाप्ता ॥। श्री विक्रमादित्ये संवत् १४०३ वर्षे फागुण सु० ८ चन्द्रवासरे मृगसिर नक्षत्रे लिखितम्। सा० भावदेवाङ्गज पुरिसड । श्रात्मवाचन पठनार्थे सुभमस्तु । ५३. मृगनाभि जब भली प्रकार परिपक्व - पुष्ट या पीन हो तो चमड़े सहित वजन पाँच तोला होता है । उसके कण बारह बिसवा और चर्म - चमड़ा आठ बिसवा होता है । ५४. मृगनाभि उष्ण, मधुर, कटुक, तीखी, कषैली एवं सुगन्धयुक्त होती है । दुर्गन्ध, छर्दि, ताप को दूर करती है और त्रिदोषहर एवं सुस्निग्ध है । कुंकुम : ५५. काश्मीर देश, जवड़ि और केसरिदेश (मध्य एसिया) में केसर पर्वत में कुंकुम सुगन्धित अच्छी होती है जो शुद्धि में क्रमशः बीस, बारह, आठ बिसवा होती है। अदन ओर हुरमुज की केसर पांच बिसवा होती है. । धूप :-- ५६. मुर, जठामासी, कूठ, बालक (बाल छड़), नख, चंदन, अगर, मोत्या, छल्लर, सिल्हारस, इनमें बराबर खांड मिलाने से उत्तम दशाङ्ग धूप होता है । वास :-- ५७. कर्पूर को सुगन्धि से वासित, चन्दन से परम श्वेत वास बनता है। लेकिन जटामासी और बालक को कस्तूरी से वासित किया जाय तो काली वास बनेगा । श्री ठाकुर फेरू विरचित 'घातोत्पत्ति करणी विधि' समाप्त हुई श्री विक्रमादित्य संवत् १४०३ वर्ष फाल्गुन सुदी ८ सोमवार मृगशिरा नक्षत्र में लिखित सा० भावदेव के पुत्र पुरिसड़ ने अपने वाचने-पढ़ने के लिये लिखी । शुभमस्तु । Aho! Shrutgyanam Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OUR PUBLICATIONS 1. Studies in the Bhagavati Sutra. -by Dr..J.C. Sikdar. 2. हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन -ले० डा० नेमिचन्द्र शास्त्री 3. सुदंसणचरिउ -सं० डा० होरालाल जैन 4. A Critical Study of the Paumacariyam --by Dr. K. R. Chandra. 5. Anuyogaddaraim (English Translation) --by Sri T. Hanaki 6. Visesavasyakabhasyam (with Kottyacarya's Tika) -ed. Dr. N. Tatia 7. Prakrit-Gadya-Padya-Bandha _-ed. Dr. N. Tatia & Dr. R. P. Poddar 8. रघ साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन -ले० डा० राजाराम जैन 9. Studies in Buddhist and Jain Monachism -by Dr. N. K. Prasad 10. Indian Logic : its problems as treated by its Schools --by Dr. K. K. Dixit. 11. An Introduction to Karpuramanjari (with text) ---by Dr. R. P. Poddar 12. Phonetic Changes in Indo-Aryan Languages --by Dr. S. C. Majumdar. 13. कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन -ले० डा० प्रेमसुमन जैन 14. Nayacandrasuri's Rambhamanjari -ed. Dr. R. P. Poddar. 15. ठक्कुरफेरूकृता द्रव्यपरीक्षा और धातूत्पत्ति -सं० श्री भंवरलाल नाहटा / 16. Vaishali Research Institute Bulletin No. 1. 17. Vaishali Research Institute Bulletin No.2. Aho! Shrutgyanam