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द्रव्यपरीक्षा
रुप्पिग तोली वट्टा चउदस चउरंस हेम सम तुल्ला। पंच विहा रुप्पइया इग दु ति चउमासि अद्ध तुला ।।१४३।।
॥ इति रुप्यमुद्राः (२१)। दुग्गाणी य छगाणी तुल्ले मुल्ले य रुप्प तंबे य । उल्लाई सम जाणह अन्ने अन्ने वि हि भणिमो ||१४४॥ चउगाणी वट्ट सए सोल सवा टंक नव जवा रुप्पं । चउमासा तुल्लेणं न संसयं इत्थ नायव्वं ।।१४५।। (२९) रूप्यमा २० विवरणम् । १५ टंका मुद्रा नानाविध तो०
१ संवृत्ताकारु तो०१ १४ चतुःकोणा तोलो यथा-१ ५ १० २० ३० ४० ५०
६० ७० ८० ९० १०० १५० २०० एवं । ५ रुपीया मुद्रा नाना तोलो ।
१ मासा १।१ मासा २१ मा० ३ १ मासा ४ । १ मासा ६। संवृत्ता
संघ निकाला था। हस्तिनापुर तीर्थ के भंडार में डेढ लाख जयथल मुद्रा की आय हुई। योगिनीपुर के निकट तिलपथ में द्रमकपुरीयाचार्य के चुगली खाने से सुलतान ने संघ को रोक लिया। आचार्य श्री सुलतान से मिले तो वह बड़ा प्रभावित हुआ और उन्हें निर्दोष पाकर दुष्टस्वभावो द्रमकपुरीयाचार्य को जेल में डाल दिया करुणासमुद्र पूज्यजी ने उसे मुक्त करा कर अपने स्थान भेजा। बादशाह ने प्रभावित होकर खंडासराय में चातुर्मास कराया तथा बहुतसी धर्म प्रभावना हुई। बादशाह के कथन से श्रावण महीने में फिर संघ निकाला गया । वापस आकर शेष चातुर्मास खण्डासराय में बिताया गया। ग्रंथकार ठक्कुर फेरू भी संघ यात्रा व द्रमकपुरीयाचार्य को छुडाने आदि में प्रमुख व्यक्ति थे। (देखें युगप्रधानाचार्य गुर्वावली। गुर्वावली में कुतुबुद्दीन को अलाउद्दीन का पुत्र लिखा है।)
१४३. एक तोले का रुपया गोल होता है और चौकोर रुपये चौदह प्रकार के उपरिवणित सोने की मद्रा के जैसे वजन वाले होते हैं। (छोटे) रुपये पांच प्रकार के होते हैं जो एक मासा दो मासा, तीन मासा, चार मासा और छ मासा के गोल होते हैं।
रौप्यमुद्रा समाप्त हुई।
१४४. दुगानी और छगानी मुद्रा में चांदी व तांबे की तौल और मोल अल्लाई मुद्रा के बराबर जानो । अन्यान्य का भी कहता हूँ।
१४५. एक सौ गोल चौगानी मुद्रा में सवा सोलह टांक अर्थात् पाँच तोला दो मासा और मो अब ऊपर चांदी होती है। वह तौल में चार मासे को एक होता है, इसमें संशय नहीं जालना।
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