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द्रव्यपरीक्षा
सपरोवगारहेऊ नयण- मुणि राम चंद (१३७२) वरिसंम्मि । विजयदसमीइ रइयं गिह पडिमा लक्खणाईणं ॥ ६० ॥ [ वास्तुसार ] तेरइ सइतालइ (१३४७) महमासि, रायसिंहर बाणारिय पागि । चंद तणुब्भवि इय चउपईय, कन्नाणगुरुभत्तिहि कहिये ||२७|| [ युगप्रधान चतुष्पदिका ]
उपर्युक्त अवतरणों से स्पष्ट है कि ठक्कुर फेरू श्रीमानवंश के धाधिया गोत्रीय श्री कालिय या कलस के पुत्र चंद के पुत्र थे ये मूल रूप में कन्नाणा निवासी थे फिर राजकार्य से दिल्ली में भी रहने लगे थे। इनके पुत्र का नाम हेमपाल था जिसके लिए रत्नपरीक्षा और द्रव्यपरीक्षा की रचना की गई थी । द्रव्यपरीक्षा की रचना में भाई का भी उल्लेख किया गया है पर उसका नाम नहीं लिखा है । प्राचीन रचना सं १३४७ की ओर अंतिम सं० १३७५ की है ।
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सं० १३७५ को मिति वैशाख कृष्ण ८ को दिल्ली से महत्तियाण ठक्कुर अचल सिंह ने सुलतान कुतुबुद्दीन के फरमानपूर्वक कलिकाल केवली श्रीजिनचंद्र सूरि जी के सान्निध्य में हस्तिनापुर - मथुरादि यात्रार्थ संघ निकाला था जिसमें ठक्कुर फेरू भी साथ थे । विशेष जानने के लिए युगप्रधानाचार्य गुर्वावली देखना चाहिए | इसके पश्चात् ठ० फेरू के सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं मिलता ।
ठक्कुर फेरू ने अपना कुल धंधकुल वतलाया है। इनके पूर्वजों में घंघ नामक व्यक्ति विशेष प्रभावशाली हुए लगते हैं जिनके वंशज धांधिया गोत्रीय आज भी विद्यमान हैं । वे जवाहिरात का व्यापार करते हैं ।
कन्नाण का संस्कृत नाम गुर्वावलो में कन्यानपन मिलता है । यहाँ की महावीर भगवान की प्रतिमा मुहम्मद तुगलक के समय में श्रीजिनप्रभसूरिजी ने दिल्ली में सुलतान से प्राप्त कर वादशाह के द्वारा वसायी हुई सुलतानसराय-भट्टारक सराय में वादशाह के बनाए हुए जिनालय में स्थापित की थी। श्री जिनप्रभसूरि कृत विविध तीर्थकल्प में उसका वितृस्त विवरण पाया जाता है । नाणा ग्राम अभी भी महेन्द्रगढ के अन्तर्गत विद्यमान है ।
ठक्कुर फेरू, विद्वान जैन श्रावकों में विविध विषयों के ग्रन्थ लेखक एक ही विद्वान हैं जिन्होंने मुसलमान सम्राटों की राज्यसेवा करते हुए अनेक वातों का महत्वपूर्ण अनुभव प्राप्त किया था। उन्होंने अपनी उस जानकारी और अनुभव को उयुक्त ग्रन्थों में भली भांति व्यक्त किया है। प्राकृत भाषा की इन्होंने बहुत बड़ी सेवा की है, इनकी रचनाओं में तत्कालीन इतने पारिभाषिक शब्द पाये जाते हैं। जिनकी उपलब्धि किसी भी कोश में नहीं होती । अब प्राकृत भाषा के जो भी कोश बनें उनमें उन शब्दों को अवश्य लिया जाना चाहिए। वर्तमान में वे शब्द किन किन पर्यायवाची शब्दों में प्रयुक्त हैं इस पर प्रकाश डाला जाना चाहिए।
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