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द्रव्यपरीक्षा
रुप्पय कणय तिधाउय इय तिय मुहाण मुल्ल दम्मेहि। वन्निय तुल्ल पमाणे सेस दु धाऊय टंकेण ॥४७॥ नाणा मुद्दाण कए जारिसु टंको पमाणिओ होइ। टंकण तेण मुल्ल गणियव्वं सयल मुद्दाणं ।।४।। भणिसु हव नाणवटै' दम्मितिहि जाम इतिय मुद्दे । इय अग्ध पमाणेणं इत्तिय मुद्दाण कई मुलं ॥४९।। रासिं तिगाइ गुणियं मज्झिम हरिऊण भाउजं लद्धं । तं ताण मुंद मुल्लं न संसयं भणइ फेरू त्ति ।।५०॥
॥ इति मौल्यम् ॥
४७. चांदी की, सोने की और तृधातु (सोना चांदी तांबा मिश्रित) इन तीनों प्रकार की मुद्राओं का मूल्य बान और तोल के परिणाम से द्रम्म मुद्रा से होता है तथा शेष द्विधातु (चाँदी और तांबा मिश्रित) मुद्राओं का मूल्य टंकों से होता है।
४८. मुद्रामों की चांदी करने पर जैसे टंके के प्रमाण की हो उसी टंका के हिसाब से समस्त मुद्राओं का मूल्य गिनना चाहिए अर्थात् अन्य सिक्के की सो मुद्राएं आई उनमें से थोड़ी गालकर नाणय चांदी (गा० ११-१२) बनाकर जिम प्रचलित टंके के अनुसार द्रव्य बैठता हो उसी टंके के अनुपात से उसका मूल्य समझना चाहिए।
४९. अब मैं इतने द्रम्म में इतनी मुद्रा, इस मूल्य के प्रमाण से इतनी मुद्राओं का क्या मूल्य हुआ ? यह 'नाणावट' कहूंगा।
५०. फेरू कहता है कि पहले राशि को तोन से गुणाकार कर बीच का हटा कर जो भाग मिले वही मुद्रा का मूल्य है, इसमें संशय नहीं।
उस समय द्रम्म मुद्रा विशेष प्रचलित थी सं० १३८० में सं० रयपति के संघ द्वारा शत्रुजयतीर्थ में पचास हजार द्रम्म एवं गिरनारतीर्थ में चालीस सजार द्रम्म आमदनी होने का उल्लेख है। इसके पश्चात सं० १३८२ में भीमपल्ली के संघ द्वारा खंभात में १२००) हम्म और शत्रुजयतीर्थ में पन्द्रह हजार द्रम्म आमदनी होने का उल्लेख है। ये द्रम्म मद्राएं कई प्रकार की होती थी, खरतर गच्छ गुर्वावली में इन सब मुद्राओं को "द्विवल्लिक द्रम्म" लिखा है। इस मुद्रा का उल्लेख द्रव्य परीक्षा में वेवला नाम से आया है। यह केवल गुजराज में प्रचलित थी। नाणावट % विभिन्न मुद्राओं को विभिन्न या स्थानीय मद्राओं में बदलने के न्यापार को (नाणा-बटाना) नाणावट कहते है। ऐसे व्यापारी 'नाणावटी' नाम से प्रसिद्ध हुए। उपर्युक्त ४९ वी गाथा की "गणितसार की ६५ वीं गाथा से तुलना कीजिएभणिसु हव नाणवढें नव मुंद लहंति दम्म पणवीसं इय अग्ध पमाणेणं सोलस मुंदाण कइ मुल्लं ॥६५॥
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