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व्यपरीक्षा
नाणय उहक्क हरजय रीणी चक्कलिय टंक दस गहिरं । पनरह गुण सोसेणं सोहिय नीसरइ जं रुप्पे ।।११।। तस्साप्रो पाडिज्जइ रुप्पं सीसस्स जं रहइ सेसं । तं चासणिय सरूवं अन्नं जं खरडि मज्भि हवे ||१२|| नीचुच्च नारणाओ कमेण नउ दु जव किंच हीणहया । संगहई खरडि रूपं अवस्स चासणिय समयंमि ||१३| हरजय चासणिय दुगं दह दह टंकस्स मेलि गहि अद्धं । पउण दु जवंतरेसु ह दु जवंतरि बाहुडइ नूणं ।। १४ ।। ॥ इति द्रव्य चासनिका ॥
खरंडि, खरल = सीसा मिश्रित चांदी को खरड़ कहते हैं, सोना चांदी मिश्रित भी खरड़ि, खडल, खरल खरड़ कहलाती है । पन्ना-माणक तामड़ा आदि रत्नों की भी खरड़ होती है जिसमें मिट्टी-पत्थर मिला रहता है। उसे साफ करके नगीने या मणियें बनती है।
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नाग = सीसे को कहते हैं, सफाई के लिए चाँदी को सीसे के साथ गाला जाता है । बिसुवा = बीस विसवा अर्थात् खरी चांदी |
११-१२. नाणय', डहक्क, हरजय, रीणी, चक्कलिय" दस टंक लेकर पन्द्रह गुणे सीसे के साथ शोधने पर जो चाँदी निकले उसे ढाल लेना सीसे की चांदी जो शेष रहे,
दूसरी जो खरड़ में हो वही चासनी का स्वरूप हैं ।
१२. नीची-ऊँची छोटी-बड़ी मुद्राओं की "नाणय" पौदी क्रमशः चार और दो जव या कुछ होनाधिक खरड़ का रौप्य हो, उसे चासनी के समय अवश्य संग्रह करें। १४. दस दस टंक की हरजय चासनीद्वय को मिलाकर गही शोधने से पौने दो जवान्तर से दो जवान्तर तक निश्चित ही वापस मिल जाती है ।
द्रव्य की चासनी समाप्त हुई ।
१. नाणय = सिक्के का सोना चाँदी ।
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डहक्क – धुएं की या खरड़ की चाँदी संभावित है ।
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हरजय हरजा चाँदी से बना हुआ सिक्का हरजय हो सकता है ।
रीणी = गलाए हुए सोने को परगहनी में डाल कर बनायी कांबी या लम्बी सलाई रीणक्षरित जुआई हुई, परगहनी में शेषो मुद्राओं का वर्णन भागे गाथा ५२ व ५५ में देखिये ।
चक्कलिय= सोने चांदी का मोटा गोल रूप गदिया, पपिया
चासनी करने के बाद सोने या चाँदी को विभिन्न रूपों में रखा जाता है। लम्बी मलाई रूपनी या कवी गोलरूप गद्दा या थपिया फूल की पंखड़ियों का मा छितरा रूप हरता या खाल और गोल; ठोस रूप डाला या डमी कहलाता है।
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