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ठक्कुर फेरू विरचिता
द्रव्यपरोक्षा
॥ॐ नमो कमलवासिणी देवी ॥
कमलासण कमलकरा छणससिवयणा सुकमलदलनयणा । संजुत्तनवनिहाणा नमिवि महालच्छि रिद्धिकरा ॥१॥ जे नाणा मुद्दाई सिरि ढिल्लिय टंकसाल कज्जठिए । अणुभूय करिवि पत्तिउ वन्हि मुहे जह पयाउ घियं ॥२॥ तं भणइ कलसनंदण चंदसुप्रो फिरऽणुभाय तणयत्थे । तिह मुल्लु तुल्लु दव्यो नामं ठामं मुणंति जहा ॥३।। पढम चिय चासणियं, बीयइ कणगाइ रुप्प सोहणियं ।
तइए भणामि मुल्लं, चउत्थए सव्व मुंदाई ॥४॥ दारं ॥ चासणियं जहा
सुक्कं पलासकटुं गोमय आरनगा अजा अस्थि । कमि तिय इगे गि भायं एगटुं दहिय तं रक्खं ॥५॥
१. कमल के आसन वाली, कमल जैसे हाथों वाली, पूर्णिमा के चन्द्र जैसे मुख वाली और सुन्दर कमलदल जैसे नेत्रों वाली नवनिधान संयुक्त, ऋद्धिकर्वी महालक्ष्मी को नमस्कार करके
२. श्री दिल्ली की टकसाल में कार्यस्थित रह कर, वहाँ जो नाना मुद्राएं वर्तमान हैं, उनका अनुभव करके और जैसे अग्नि में तपाकर घी का प्रत्यय किया जाता है वैसे ही उनका प्रत्यय करके.
३ कलश के बेटे चन्द्र का पुत्र ठक्कुर फेरू अपने भ्राता और पुत्र के लिए उनका वर्णन करता है और उनके जैसे मूल्य, तौल, द्रव्य नाम और स्थान है, उनको कहता है।
४. . पहले प्रकरण में चासनी का, दूसरे में कनकादि तथा रोप्य के शोधन का, तीसरे में मूल्य और चौथे में सर्व मुद्राओं का वर्णन करता हूं। चासनी:
५. पलाश वृक्ष के सूखे काष्ठ, गोबर के आरणिया छाणा (जंगली कण्डे) बकरी की मोंगणी, किसी स्वतः उगे हुए वृक्ष विशेष की लकड़ी; इनका क्रमशः तीन भाग और एक-एक भाग एकत्र जला कर उसकी राख को
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