Book Title: Dravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Author(s): Thakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 70
________________ विसुवा सवाय विसुवा अषवा पइका य तांब चउरंसा। तुल्लेग कमि चडंता मासाओ जाम पण मासा॥१४॥ ॥ इति साहे मुद्राः ॥ एवं दव्यपरिक्खं दिसिमित्तं चंदतणय फेरेण । भणिय सुय-बंधवत्थे तेरह पणहत्तरे वरिसे ॥१४॥ इति श्री चन्द्रांगज ठक्कुर फेरू विरचिता द्रव्यपरीक्षा समाप्ता ।। १४८ ताम्र की चतुरस्र विसवा, सवा विसवा, आधी और चौथाई चार प्रकार की "साहामुद्रा" तोल में क्रमश: बढ़ती हुई एक मासा, सवा मासा, डेढ मासा और यावत् पांच मासा की होती है। १४९ संवत् तेरह सौ पचहत्तर वर्ष में चन्द्र के पुत्र फेरू ने अपने पुत्र और भ्राता के लिए दिशासूचक मात्र यह द्रव्यपरीक्षा कही है। श्रीचन्द्र के पुत्र ठक्कुर फेरू रचित द्रव्यपरीक्षा समाप्त हुई। Aho! Shrutgyanam

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