Book Title: Dravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Author(s): Thakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 71
________________ ठक्कुर फेरूविरचिता धातूत्पत्तिः अथ धातूत्पत्तिमाह रुप्पं च मट्टियाओ नइ-पव्वयरेणयाउ कणो य । धाउवाओ य पुणो ह्वन्ति दुन्नि वि महाधाऊ ।।१।। पटं च कीडयाओ मिय नाहीओ हवेइ कत्थूरी । गोरोमयाउ दुव्वा कमलं पंकाउ जाणेह ।।२।। मउरंच गोमयाओ गोरोयण होत्ति सरद्विपित्ताओ। चमरं गोपुच्छाओ अहिमत्थाओ मणी जाण ॥३॥ उन्ना य बुक्कडायो दन्त गइंदाउ पिच्छ रोमा (मोरा?) ओ। चम्म पसुवग्गाओ यासणं दारुखण्डाओ ॥४॥ सेलाउ सिलाइच्चं मलप्पवेसाउ हुइ जवाई वरं । इय सगुणेहि पवित्ता उपत्ती जइय नीयानो ॥५।। इत्युत्पत्तिः। अब धातुओं की उत्पत्ति कहते है : १. मिट्टो में चांदी, पर्वत और नदी की रेणुका में स्वर्ण होता है। फिर धातुवाद (धातुविद्या) से दोनों महाधातु हो जाते हैं (अर्थात् अग्नि में परिशुद्धि से मूल्यवान धातु बन जाते हैं)। २. कीड़ों से रेशमी वस्त्र, मृगनाभि से कस्तूरी होली है। गोरोम से दूर्वा और कीचड़ से कमल जानना चाहिए । ३. गोबर में भंवरा, गाय के यकृत स्थित शुष्क पित्त (Gall Bladder of the Cow) से गोरोचन, गोपुच्छ से चामर और साँप के मस्तक पर मणि होता है। ४. भेड़ों से ऊन, गजेन्द्रों से हाथीदांत, मयूर से पीछी, पशु. वर्ग से चर्म और काष्ठ खण्ड से अग्नि होता है। ५. पाषाणशिला में शिलाजीत होता है, खेतों में मल का खाद होने से उत्तम जो आदि होते हैं। नोचे स्थानों में उत्पत्ति होने पर भी ये अपने गुणों में पवित्र है। अब कृत्रिम वस्तुओं से बनाने की विधि कहते हैं : Aho! Shrutgyanam

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