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द्रव्यपरीक्षा चासणिय जव दहग्गुण जि टंक मासा हवंति तस्सुवरे । अग्गिस्स भुत्ति दीयइ टंकप्पइ जे जवा होंति ॥१५॥ तं सय मज्झे रुप्पं तहच्छमाणस्स पूरणे जंतं । तंब अहियस्स पुण जुय सल्लाही सा भणिज्जेइ ।।१६।।
॥ इति सल्लाहिका विधिः।। सामन्नेण सुवन्नो बारहि वन्नीय भित्ति कणओ य । पंच जव हीण चिप्पं पिंजरि वन्नी य पंच तुले ॥१७॥ सिय खडिय लूण कल्लर सम मिस्सिय चुन्न सा सलोणीयं । मेलगय कणय चिप्पय करेवि तेण सह पइयव्वं ॥१८॥ तिहु अग्गिक्क सलोणी सत्ति सलणीहि सुज्झए चिप्पं । इक्कारसीय वन्नी इक्कारस जव भवे सुकसं ॥१९॥ सय तोल कणय पइए जं घट्टइ सा सलणियं चिप्पे । चिप्पे दहग्गि पक्के जं घट्टइ तं ३ कायरियं ।।२०।। चिप्पस्स तिन्नि मासा पत्त करिवि भित्ति कणय सह पइए । स तिहाउ जओ घट्टइ भित्तीओ पढम चासणियं ॥२१॥ पच्छा ति अग्गि पक्के पुणो वि तिय मास भित्ति सह पइए। तेरह विसुव जवस्स य इय अंतर वीय चासणिए ॥२२॥
१५-१६. जितने टंक मासा चासनी हो, टंक प्रति जितने जव हों उसके ऊपर दश गुणे जव अग्नि की भुक्ति देवे। उस चाँदी को हाथ में स्थित त्रिकोणयंत्र में पूरित कर देना, अधिक ताम्र वाली की फिर अलग हो इसे सलाहो कहते हैं।
सलाहिका विधि समाप्त हुई। १७. सामान्यतः सोना बारहवानो, भित्ति कनक, पाँच जव कम (११ वान ११ जव) को चीप, तोले में पांच जो कम पांच वान का पिंजर होता है।
१८. श्वेत खडियामिट्टी, लवण, कल्लर को बराबर मिलाकर उस सलोने चूर्ण को मिलावटी सोने की चीप करके उसके साथ जलाना चाहिए।
१९. तीन आग की एक सलोणी, (अर्थात् एक बार सलोनी में सांदकर तीन आग . फेंकना इसे आइने अकबरी में सिताई कहा है) सात सलोनी (२१ आंच) से चीप शुद्ध होती है । वह ग्यारह वान और ग्यारह जव के अच्छे कस वाला चोप सोना होगा।
आइने अकबरी में छः बार सलोनी का १८ आंच मसाला सांदना कहा है।
२०. सौ तोला सोना जलाने से जो घटे उतना चोप सलोनी में गया समझो। फिर सलोनी से अग्नि में जलाने पर जो घटे वह कायरिय-कुकरा होता है। । ।
२१-२२. चिप्प के तीन-तीन मासे के पत्र बनाकर भिनि कनक (शुद्ध सोना) के साथ जलाने पर पहली चासनी में ११ जो घटता है। फिर दूसरी चासनी में उसी तरह तीन
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