Book Title: Dravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Author(s): Thakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 36
________________ 25 द्रव्यपरीक्षा छाणिय सेर सवायं बंधि गहं बंकनाल धमि मंदं । धव अंगार सवा मणि सोहिय उत्तरइ चासणियं ॥ ६ ॥ तं पुणरवि सोहिज्जइ पण तोला खख बंधिऊण गहं । ता हवइ सहं कूरं अइ निम्मल चासणियं रूप्पं ||७|| ॥ इति सर्व चासनिका मूलसोधनविधिः ॥ सीसस्स प्रमल पत्तं करेवि लहू खंड तुलिवि सोहिज्जा । नीसरह रुप्प सयल सीसं गच्छेइ खरडि महे ||८|| सय तोलामज्झेणं वारह जव सीसए हवइ रुप्यं । पच्छा पुण पुण सोहिय तहावि निकणं न कइयावि || ९ || ॥ इति नाग वासनिका ॥ रुपस्स बीस मासा छ टंक नागं च देइ सोहिज्जा । जं जायइ ते विसुवा एवं हुइ रुप्प चासणियं ॥ १० ॥ ॥ इति रुप्प चासनिका || कपड़छन करके (उसमें से सवा सेर की नहीं बाँधकर बंकनाल बाँकिया द्वारा मन्द आँच से घमन करके घव वृक्ष (घावड़िया) के सवा मन अंगारों से शोधने से (चाँदी की) पासनी उतरती है। = ७. उसे फिर पाँच तोला ( चासनी को ) राख की गही बांध कर (अर्थात् राख पर पानी छिड़क कर कटोरे की आकृति जैसी बना लेना-पाठ करना या पाढ बनाना कहलाता है ।) शोधन करना । वह अति निर्मल 'सहं कूरं' नाम रोप्य चाशनी होती हैं । यह सर्व वासनिका के मूलशोधन की विधि हुई। ८. सोसे का निर्मल पात करके उसके छोटे छोटे टुकड़ों को तोलकर शोधन करना । चाँदी सब निकल जायगी और सीसा खरड़ में चला जायगा । ९. सौ तोला सीसे में बारह जौ चाँदी निकलेगी । खरड़ को फिर बार-बार शोधमे पर भी निष्कण (बिना भुनुक के वह कभी नहीं होगो रेत निकलेगी ही । यह नाग (सीसे से चाँदी की चासनी करना) चासनिका हुई । १०. वट्टे की चाँदो बोसमासों में छ-टंक (२४ मासा) सीसा देकर शुद्ध करें। बॉबी पक्रिया जो हो वह विसुवा (२० विसया) होता है, इस प्रकार रौप्य चासनिका हुई। यह रौप्य पासनिका शेष हुई। सहं कूरं कूर - कण = Small Particles निकल = बिना कण का, कण चांदी (देखिए गा० १३० ) * यही गाया धातूत्पत्तिप्रकरण के गा० २७ में ६ । Aho! Shrutgyanam

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