Book Title: Dravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Author(s): Thakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 41
________________ द्रव्यपरीक्षा बीसविसोवा रुप्पं मासा विसाउजं जि कडिढज्जा। तित्तिय मासा रीसंदिज्जहवइ ते विसोव कसं ॥३२॥ ॥ इति रुप्प वनमालिका ।। अइ चुक्ख रुप्प तंबय कमि पनरह सड़ढ सड़ढ़ चउरीसे । इय भाय वंनियत्थे सोलस चउ कणय घडणत्थे ।।३३।। जारिस वन्नी कीरइ तित्तिय दु जवहिय भित्ति कणओ य । सेस दु जवूण रीसं एवं तोलिक्कु हवइ परं ॥३४॥ रोस सम कणय पढमं गालिवि पुण थोव कणय सह कढियं ।। पुण सेस सहा वट्टिय ता हवइ जहिच्छ वन्नाभं ॥३॥ ३२. बीस विसवा शुद्ध चांदी २० मासा लो, जितने मासे चांदी निकाल कर उतनी रीस मिलाओगे उतने ही विसवे का कस हो जायगा (अर्थात् १७ मासा चाँदी+ ३ मासा रीस की सतरह विसवा चाँदी होगी। रौप्य वनमालिका समाप्त हुई। ३३-३४. अति चोखी चाँदी १५३+ तांबा ४३ की रीस बन गई, ये भाग वन्नी या बान के लिए हैं। सोने के घटन या टांके के लिए १६ चाँदी + ४ रीस मिलाकर काम में लेना। जैसी वन्नी करनी हो उसके हिसाब से दो जो अधिक भित्ति कनक ले और दो जव कम रीस मिलावे इस प्रकार एक तोला होगा। उदाहरण :-८ बान का सोना करना है तो ८ मासा २ जो खरा सोना लेकर उसमें दो जो कम चार मासे रीस मिला दो, जो सोना होगा वह ८ बान का होगा ऐसे ही ९,१० आदि बानों का सोना बनाया जा सकता है। सोने में रीस कैसे मिलानी चाहिए? इसकी विधि-८ मासे २ जौ खरा सोना और दो जो कम ४ मासा रीस मिलानी है तो ३५. पहले रीस के बराबर सोना लेकर साथ गलाओ फिर थोड़ा सोना और डालो फिर शेष भी साथ मिला दो तब जैसा चाहा है उसी बान को श्रेष्ठ वर्णाभ-चमक का सोना बन जायगा। आइने अकबरी में वनमालिका को बनवारी लिखा है अबुलफजल ने रोस का दूसरा योग दिया है उससे पहले का १२ बान उसके समय कसोटी में १०३ बान निकला। मूस = धातु गलाने का पात्र परिया। फक्क = पीसा हुआ चूर्ण । कढिय = गालना काढना, अब राजस्थान में तिजाब काढना = शोधने का पर्याय है। रीस = सोने में मिलाने की खाद । अथवा--सोने की वनमालिका बनाने की दूसरी विधि जिसे पादोनविधि (पाऊण) कहते थे। पादोनविधि के लिए रीस चाहिए, वह गाथा ३६ में बताते हैं : --- Aho! Shrutgyanam

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