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भूमिका वाले सुलतान कुतुबुद्दीन के शासन में टकसाल के गवर्नर रूप में नियुक्त हुआ और वहां के परिपक्व अनुभव के आधार पर ही उसने 'द्रव्यपरीक्षा' का निर्माण सं० १३७५ में किया। कवि ने स्वयं प्रारंभिक दूसरी गाथा में "ढिल्लिय टंकसाल कज्जठिए" वाक्य द्वारा इसे व्यक्त किया है।
द्रव्य परीक्षा की गा० १३९ में ठक्कुर फेरू ने लिखा है कि अब मैं 'राजबन्दिछोड़' विरुद वाले सुलतान कुतुबुद्दीन की नाना प्रकार की चौरस व गोल मुद्राओं का मोल तोल कहता हूँ। गा० १४० में उसने लिखा है कि सोने की ३२, चाँदी की बीस, ७ प्रकार के द्रम्म और ४ प्रकार की ताम्र, कुल मिला कर ६३ हई। गा० १४१-४२ में १४ गोल १४ चौरस १ तेरहमासी और तीन लघु मुद्रा कुल ३२ स्वर्ण मुद्राओं का एवं गा० १४३ में चांदी के रुपयों में १४ चौरस १ गोल रुपया एवं ५ लघु मुद्राओं का वर्णन किया गया है। गा० १४४ में लिखा है कि दुगानी, छगानी मुद्राओं में चाँदी व ताँबे का परिमाण अलाउद्दीन को मुद्राओं के सदश ही है। गा० १४५ में गोल चौगानी मुद्रा का मोल तोल एवं गा० १४६-४७ में अठगानी, बारहगानी, चौवीसगानी, अड़तालीसगानी मुद्राओं में चाँदी व ताम्र धातु का परिमाण, मोल तोल लिखा है। गा० १४८ में विसुवा, सवा विसुवा, ढाई विसुवा, पाँच विसुवा तक के चौकोर ताम्र-मुद्रा का उल्लेख कर अन्तिम गा० १४६ में सं० १३७५ वर्ष में चन्द्र के पुत्र ठक्कुर फेरू ने अपने पुत्र और भ्राता के लिए इस दिशासूचक 'द्रव्यपरीक्षा' को रचना की, ऐसा लिखा है।
ठक्कुर फेरू को रचनाएं ठक्कुर फेरू ने गणितसार ग्रन्थ की रचना भो राजकीय मालगुजारी आदि पदों पर रह कर की थी। उसने गणितसार के चतुर्थ अध्याय को प्रथम गाथा में लिखा है:
"ढिल्लिय रायट्टाणे, कज्ज भूय करण मझमि ।
जं देस लेह पयड़ी, तं फेरू भणइ चंद सुओ ॥१॥" उसने रत्न परीक्षा ग्रन्थ कलिकाल चक्रवर्ती सम्राट अलाउद्दीन खिलजो के रत्नागार के अनुभव से सं० १३७२ में लिखा था। इससे वह अलाउद्दीन सुलतान के मंत्रिमण्डल में विविध विभागों में चिरकाल तक रहा विदित होता है। रत्न परीक्षा को चौथी गाथा देखिए
"अल्लावदीण कलिकाल चक्रवट्टिस्स कोस मज्झत्थं । रयणायक व्य रयणुच्चयं, च नियदिट्ठिए दलृ ।।४॥"
इसी वर्ष में उसने तीन ग्रन्थों को रचना की थी जिसमें रत्नपरीक्षा दिल्ली में और वास्तुसार प्रकरण विजयादसमो के दिन कन्नाणापुर में रचित हुई। ज्योतिषसार में रचना स्थान का उल्लेख नहीं है।
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