Book Title: Dravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Author(s): Thakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 29
________________ भूमिका अल्लावदीण कलिकाल-चक्कवट्टिस्स कोसमज्झत्थं । रयणायकव्व रयणुच्चयं च नियदिट्ठिए दठ्ठ॥४॥ सिरि घंधकुले आसी कन्नाण-पुरम्मि सिद्धि कालियओ। तस्सुव ठक्कुर चंदो फेरू तस्सेव अंगरुहो ॥१३१।। तेणिह रयणपरिक्खा विहिया नियतणय हेमपालकए। कर मुणि गुण ससि' वरिसे अल्लावदी विजयरज्जम्मि ॥१३२॥ तेण य रयणपरिक्खा रइया संखेवि ढिल्लिय पुरीए । कर मुणि गुण'ससि'वरिसे अल्लावदोणस्स रज्जम्मि ॥१२६।। ____ x x x x x [रत्नपरीक्षा] जे नाणा मुद्दाई सिरि ढिल्लिय-टंकसाल कज्जठिए । अणुभूय करिवि पत्तिउ वन्हि मुहे जह पयाउ घियं ॥२॥ तं भणइ कलसनंदण चंदसुओ फिरऽणुभाय तणयत्थे । एवं दवपरिक्खं दिसिमित्तं चंदतणय फेरेण । भणिय सुय-बंधवत्थे तेरह पणहत्तरे वरिसे ।।१४९।। [द्रव्य परीक्षा पासी सड्ढकुलेसु सिट्टि कलसो ठाणे सुकन्नाणए। तस्संगस्स हो सूठक्कूरवरो चंद व चंदो इह । फेरू तत्तणओ य तेण रइयं जोइस्ससारं इमं, दो सत्तऽग्गिग (१३७२) वच्छरे दुगसयं गाहा दु चत्ताहियं ॥२४२।। [ज्योतिषसार तं सयललोयहेऊ फेरू पभणेइ चंद्रसुओ।।२।। x ढिल्लीय रायढाणे कज्जं भूय करण मज्झमि । जं देस लेहपयड़ी तं फेरू भणइ चंदसुओ ॥१॥ उद्देस पंचगमिमं चंदासुय फेरुणा अओ भणियं । जह देस करुप्पत्ती चट्टिय समए मुणिज्जेइ ॥३३॥ [गणितसार सिरिघंधकलसकूल संभवेण चंदा सुएण फेरेण । कन्नाणपुरठिएण य निरक्खिउं पुव्वसत्थाई ।।५९।। Aho! Shrutgyanam

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