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भूमिका सं० १३८१ में भीमपल्ली के साहवीर देव ने सुलतान गयासदीन का फरमान प्राप्त कर श्री जिन कुशलसूरि जो के तत्त्वावधान में संघ निकाला। स्तंभतीर्थ-खंभात में महोत्सव हुए। सा० कडुया के पुत्र खांभराज के अनुज दो० सामल ने बारह सौ द्विवल्लक द्रम्म देकर इन्द्र पद प्राप्त किया। शत्रुञ्जय पर सा० लोहट के पूत्र उखमा ने तीस हजार सात सौ द्विवल्लक द्रम्म देकर इन्द्र पद प्राप्त किया। श्रीमालरु के भाई नीवदेव ने बारह सौ द्विवल्लक द्रम्म से आमात्यपद प्राप्त किया। (यु० गुर्वा० पृ० ७९)
_ये दोनों उल्लेख गुजरात सौराष्ट्र के हैं। द्रव्यपरीक्षा में गा० ८६ में उल्लिखित वेवला मद्रा गर्जरो मद्रा थी और प्रतिशत ६ तोला ।। मासा चांदी एवं अवशिष्ट तांबा थी और १६।। के भाव थी।
इनके अतिरिक्त गुजरात की मुद्राओं में भीमपुरी और लूणसापुरी मुद्राओं का वर्णन गा० ८३ की फुटनोट में देखना चाहिए। रुप्यटका
___सं० १३९० में श्रीजिन पद्मसूरी के पट्टाभिषेक तथा अन्य उत्सवों में सा. हरिपाल-चाचा कड़वा भाई कुलधर ने हजारों रुप्य टंके व्यय किए। (यु०प्र०गु० पृ० ८६) यात्रीसंघ ने नाणा तीर्थ में २०० रुप्य टंके आबू में ५००, जीरावला में १५०, चंद्रावती में २००, आरासण में १५० तारंगा में २०० और तृशृंगम में १५० रुप्य टंका व्यय कए। (यु० प्र० गु० पृ० ८७)
-भंवरलाल नाहटा
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