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भूमिका
प्रचीन भारतीय वाङ्मय में यहाँ की समृद्धि अद्वितीय थी और असंख्य स्वर्णमुद्राएँ लोगों के पास विद्यमान थी । आज के समय में उसकी तुलना नहीं की जा सकती । राजाओं और सेठ साहूकारों के दान की राशि लाखों करोड़ों स्वर्ण मुद्राएं थीं । विभिन्न देश की मुद्राओं से भण्डार भरपूर रहता था । यद्यपि कई स्थानों में आदिवासी लोग सौ वर्ष पहले भी वस्तुनों के परिवर्त्तन से काम चलाते थे पर इससे मुद्राओं का अभाव नहीं समझ लेना चाहिए । प्राचीन साहित्य में स्वर्ण, हेम, कनक, सोनैया, द्रव्य, दीनार, टंका आदि नामों से लाखों करोड़ों के दानादि का वर्णन पाया जाता है । मध्यकालीन साहित्य में भी मुद्राओं का उल्लेख स्थान-स्थान पर पाया जाता है । प्रबन्ध चिन्तामणि ( पृ० १२ ) में सालाहन ने चार गाथायें दस करोड़ स्वर्ण देकर ग्रहण की, लिखा है । विक्रमादित्य और भोज-भीम के प्रबन्धों में भी दान में करोड़ों स्वर्ण मुद्रायें देने का उल्लेख है । उसी के पृ० ३५ में काव्य के पारितोषिक में आठ करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ दी, लिखा । पू० ६९ में मयणल्ल देवी ने बहत्तर लाख का बाहुलोड़ कर उठवा दिया लिखा है । पुरातन प्रबन्ध संग्रह के पृ० ३० में आरासणीय नेमिचैत्यप्रबन्ध में 'दीनार सहस्र ४५ विमलो निर्गतः' लिखा है । उस जमाने में कागज के नोटों का प्रचलन नहीं था। एक देश की मुद्रा दूसरे देश में उसमें रहे हुए धातु द्रव्य के आधार पर नाणावट का व्यापार और मुद्रा परिवर्तन चलता था । ठक्कुर फेरू के प्रस्तुत ग्रंथ से यह चारुतया प्रमाणित है ।
ग्रन्थसार :
द्रव्य परीक्षा का निर्माण ठक्कुर फेरू ने दिल्ली की टकसाल के अधिकारी रूप में रहकर अपने विशाल अनुभव से किया है। इसकी प्रारंभिक तीन गाथाओं में पहली में महालक्ष्मी को नमस्कार मंगलाचरण दूसरी व तीसरी में दिल्ली की टकसाल के अधिकारी रूप में रहकर भ्राता और पुत्र के लिए इस ग्रन्थ की रचना का संकल्प करते हुए चौथी गाथा में उसके पहले प्रकरण में चासनी का दूसरे में स्वर्ण रौप्य शोधने का तोसरे में मूल्य और चौथे में सर्व प्रकार की मुद्राओं का वर्णन करूँगा लिखा है। गाथा ५ से ७ तक चासनी की विधि, गा० ८-९ में सीसे की चासनी गा० १० में रौप्य चासनी और गा० १४ तक नाणय, उहक्क, हरजम, रीणी और चक्कलिय द्रव्य की चासनी के पांच प्रकार कहे हैं। गा० १५-१६ में सलाहो ढालने की विधि कही है । गा० १७ से २३ तक सोने को शुद्ध करने की चासनो का वर्णन, गा० २४-२५ में चाँदी और गा० २६-२९ तक मिश्रवल शोचन विधि है। गा० ३० मं कण चर्ण शोधन, ३१-३२ में चाँदी की वनमालिका बनवारी और गा० ३७ तक सोने की वन
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