Book Title: Dravya Pariksha Aur Dhatutpatti
Author(s): Thakkar Feru, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Jain Shastra Ahimsa Shodh Samsthan

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Page 20
________________ ( viii ) उनके भारतीय विद्या भवन छोड कर राजस्थान पधार जाने पर उसका प्रकाशन निरन्तर प्रेरणा के फल स्वरूप राजस्थान पुरातत्त्व ग्रन्थमाला से सं० २०१७ में हो पाया। इसी बीच हमने ठक्कर फेरू के ग्रन्थों का परिचायक निबन्ध इलाहा. बाद से प्रकाशित "विश्ववाणी" को भेज दिया जो उसमें प्रकाशित हआ। उपाध्याय श्री सुखसागर जी के कलकत्ता पधारने पर मैंने उनके शिष्य मुनि कान्तिसागर जी को फेरू के ग्रन्थों की सूचना दी तो उन्होंने भी तत्काल एक निबन्ध लिखकर "विशाल भारत" मासिक में प्रकाशित किया। इस प्रकार ठक्कुर फेरू की प्रसिद्धि साहित्य संसार में व्याप्त हो गई। ___ काकाजी अगरचंदजो की आज्ञा से मैंने १ रत्न परीक्षा २ युगप्रधान और ३ धातूत्पत्ति प्रकरण का हिन्दी अनुवाद कर डाला था पर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रस्तुत द्रव्यपरीक्षा का अनुवाद करना बाकी था। काकाजी ने डा. वासुदेव शरण अग्रवाल को इसको सूचना दी और लाहौर वाले डॉ० बनारसीदास जैन को इसका अनुवाद करने का भार सौंपा। डॉ० साहव ने पांच गाथाओं का अनुवाद करके नमूने स्वरूप भेजा पर उन्हें सन्तोष न हुआ। इसके बाद काकाजी ने मुझे आदेश दिया कि तुम्हारे से जैसा भी हो सके अनुवाद कार्य सम्पन्न कर दो। मैंने लगभग बीस वर्ष पूर्व उसका जैसा भी समझ में आया अनुवाद करके भेज दिया। डा. वासुदेव शरणजी ने इसे मूल अनुवाद और टिप्पणी आदि सहित न्यूमेस्मेटिक सोसायटी से प्रकाशित करा देने को कहा था पर उसे सचारु सम्पादनार्थ रख छोड़ा। मेरी कापी उनके पास ही रही जिसे उनके स्वर्गवास के पश्चात् हमने प्राप्त करके इसकी ऐतिहासिक टिप्पणी लिखने के लिए अपने विद्वान् मित्र डा० दशरथ शर्मा को सौंपा। उन्हें भी अवकाश न मिला और सात-आठ वर्ष के पश्चात् काकाजी ने जोधपुर जाकर वह कापी लाकर मुझे भेजी जिसमें अन्त के कुछ पृष्ठ खो गए थे। मैंने बोस वर्ष पूर्व किए अनुवाद को फिर से मिलाकर नये रूप में तैयार करना प्रारंभ किया और जैसा हो सका प्रस्तुत किया। यद्यपि पारिभाषिक शब्द बाहल्य और विषय की अनभिज्ञतावश जैसा अनुवाद हना है उसे सन्तोषजनक तो नहीं कहा जा सकता पर जिस रूप में बना उसे विद्वानों के समक्ष रख कर प्रकाश में ला देना ही आवश्यक समझा ताकि अधिकारी विद्वान् इस विषय में विशेष शोध पूर्वक महत्वपूर्ण सामग्री विद्वत् संसार के समक्ष प्रस्तुत कर सकें। -भंवरलाल नाहटा Aho! Shrutgyanam

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