Book Title: Dharmvidhiprakaranam
Author(s): Shreeprabhsuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 318
________________ अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम् दो वि तओ मरिऊणं, सोहम्मे सुरवरा समुप्पन्ना । चविऊण तओ जाया, तुमं अहं चिय इह भवम्मि || ३५६ ॥ ता भद्द ! वीयराओ, अहमिहि गहियसंजमत्तेण । तं पुण रागवसाओ, अज्ज वि ममुवरि कुणसि नेहं " ||३५७|| " भणइ सिवो देवो हं, पुरावि जाओ वयस्स गहणाओ । ता एयम्मि वि जम्मे, तं चिय मह देसु पसिऊण ||३५८|| आपुच्छिऊण पियरे, जाव अहं एमि वयगहणहेउं । 64 ता तुभे इह चेव य, चिट्ठह काऊण मह करुणं” ॥३५९॥ 'अह गंतुं सिवकुमरो पियरे विन्नवइ भवभउव्विग्गो । अणुजाण वयगहणे, मं सागरदत्तमुणिपासे" ॥३६०॥ "पियरेहि तओ भणिओ, वच्छ ! वयं जुव्वणम्मि किं तुज्झ । अज्ज वि न अम्ह पुज्जइ, तुह कीलालोयणसुहं पि ॥ ३६९ ॥ अच्चंतनिम्ममो तं, कहमेगपए वि वच्छ ! संजाओ । अपरिचिए इव अम्हे, जं चइतुं वंछसि इयाणि ॥३६२॥ जइ वच्छ ! होसि भत्तो, गिन्हेसि वयं च अम्ह पुच्छाए । ता नक्कारं मुत्तुं न उत्तरं तुज्झ कइया वि" ॥३६३|| 1 " इय सिवकुमरो पियरा - एसेण विणा अणीसरो गंतुं । गिण्हइ भावजइत्तं, तत्थेव विमुक्कसावज्जो || ३६४॥ सागरदत्तमुणीसर- सीसो इत्तो अहं ति निच्छइउं । कुमरो मोणेण ठिओ, मोणं सव्वत्थ सिद्धिकरं " ॥ ३६५॥ "पियरेहि भोयणट्ठा, बलावि उववेसिओ न भुंजइ य । मज्झ न रुच्चइ किंचि वि, इय एग पुण पुण भइ || ३६६ || एवं वयगहणकए, सिवेण उव्वेइओ पिया अहियं । दधम्ममिब्भपुत्तं तम्मित्तं, भणइ आहविउं ॥ ३६७॥ वच्छ ! वयं गिण्हेउं, निवारिएणेह सिवकुमारेण । अइनिठुरहियएणं, चिट्ठइ अंगीकयं मोणं ॥३६८|| Jain Education International 2010_02 २८३ For Private & Personal Use Only 5 10 15 20 25 www.jainelibrary.org

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