Book Title: Dharmvidhiprakaranam
Author(s): Shreeprabhsuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan
View full book text
________________
३५८
5
10
श्रीधर्मविधिप्रकरणम् चिंतइ य जइ इमाओ, कहमवि कूवाउ नीहरिस्सामि । ता दिट्ठदुहफलेहिं, पज्जत्तं मज्झ भोगेहिं ॥१३२८॥ तस्स य अणुकंपाए , देवी दासी य तम्मि कूवम्मि । निच्चं खिवंति फेलं, तीए सो जियइ सुणउ व्व ॥१३२९।। पाउसकाले जाए , पासायजलेहि उत्तरंतेहिं । भरिओ तया स कूवो, पावेण दुट्ठपरिणामो ॥१३३०॥ मडयं व वाहिओ सो, निरंहसा तेण जलपवाहेण । वप्पस्स चा(वा)रियाए परिखित्तो खाइयामज्झे ॥१३३१॥ उल्लालिऊण तत्थ य, सो जलपूरेण फेणपिंड व्व । खित्तो खाइयतीरे, गओ य मुच्छं सलिलभिन्नो ॥१३३२॥ विहिवसओ पत्तीए , कुलदेवीइ व्व तस्स धावीए ।। सो तत्थ तहा दिट्ठो, गोविय नीओ य नियगेहं ॥१३३३॥ पालिज्जंतो तीए , अब्भंगसिणाणभोयणाईहिं । जाओ पुणन्नवतणू , सो छिन्नपरूढरुक्खु व्व ॥१३३४॥ "इत्थ य इमो उवणओ, ललियंगो कामभोगसुक्खेसु । जह निच्चमनिव्विन्नो, तह जीवो एस देहीणं ॥१३३५।। जह देवीपरिभोगो, तह सुक्खं विसयसंभवं तस्स । आवायमत्तमहुरं , परिणामे दारुणसरूवं ॥१३३६।। दुग्गंधकूववासो, गब्भो जणणीइ चावियरसेहि । जं गब्भपोसणं पुण, तं फेलाहारसंकासं ॥१३३७|| जो जलपूरियविट्ठा-कूवाओ चा(वा)रियाइ निक्कासो । सो उवचियगब्भाओ, जोणीए निग्गमो इत्थ ॥१३३८॥ जं परिहाउच्छंगे, पायाराओ बहिट्ठिए पडणं । तं गब्भवासओ पुण, पडणं नणु सूइयाभवणे ॥१३३९।। जं मुच्छणं च तस्स य, जलपूरियखाइयातडठियस्स । सा बहिट्ठियस्स मुच्छा, जररुहिरमयाउ कोसाओ ॥१३४०॥
15
20
25
Jain Education International 2010_02
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426