Book Title: Dharmvidhiprakaranam
Author(s): Shreeprabhsuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 398
________________ ३६३ अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम् "एयम्मि जंबुनामे, केवलमुपाडिउं सिवं पत्ते ।। नो मणपज्जवनाणं, कस्स वि परमावही नो य ॥१३९३॥ नाहारगतणुलद्धी, केसि पि हु नो पुलागलद्धी वि । कत्थ वि नो जिणकप्पो, नारुहणं खवगसेढीए ॥१३९४॥ नो होही उवरितणं, संजमतियगं च कत्थ वि मुणीण । इय रिद्धी अन्ना वि हु , निव ! पच्छा हीणहीणतरा" ॥१३९५॥ इय सिरिसुहम्मपहुणो, वयणं सोऊण कोणिओ निवई । तप्पयपउमं नमिउं, पुणो वि चंपाइ संपत्तो ।।१३९६॥ तट्ठाणाउ सुहम्मो, जंबूपहुपमुहपरियरसमेओ । बोहंतो भवियजणं, पत्तो सिरिवीरजिणपासे ॥१३९७॥ गहिया सुहम्मगुरुणा, दिक्खा पन्नासवरिसमाणेण । तो तीसं वरिसाइं, विहिया सिरिवीरपयसेवा ॥१३९८॥ अह चरमतित्थनाहे, मुक्खगए सिरिसुहम्मगणहारी । छउमत्थो तित्थमिमं, बारसवरिसाइ पालेइ ॥१३९९।। अह बाणउई वरिसा-णंते संपत्तकेवलन्नाणे । वरिसाणि अट्ठ विहरइ, बोहंतो भवियसत्तगणं ॥१४००॥ वरिससयाऊ जाओ, भयवं निव्वाणगमणसमयम्मि । ठावेइ गणहरपए , सिरिजंबुपहुं नियट्ठाणे ॥१४०१॥ "अह अहियजायमहिमो, समत्थमुणिसत्थथुणियपयपउमो । जिणपन्नत्तविहीए, विहुयरओ विहरइ महीए ॥१४०२॥ तत्तो तिव्वतवाओ, निम्महियासेसकम्मसंघाओ। पडिहयसंसयट्ठाणं, सो पावइ केवलन्नाणं ॥१४०३॥ पयडियलोयालोओ, संजणियासेसकोसिपपमोओ। तइया तिहुयणविइओ, अपुव्वसूरु व्व सो उइओ" ॥१४०४॥ सोलस वासाइ गिही, छउमत्थो वीस चरणरयणनिही । 25 चउयालीसं जाओ, केवलनाणी सुविक्खाओ ॥१४०५॥ 15 20 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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