Book Title: Dharmvidhiprakaranam
Author(s): Shreeprabhsuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 394
________________ ३५९ 10 अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम् जा तस्स धाइया पुण, देहावटुंभकारिणी जया । सा कम्मपरीणामस्स, संतई इह मुणेयव्वा ॥१३४१॥ जंबू भणइ पियाओ, तं ललियंगं पुणो वि जइ देवी । पविसावइ अंतपुरं, ता किं सो पविसए नो वा ॥१३४२।। अह जंपंति पियाओ, सो कह पविसेइ मंदबुद्धी वि । तं सुमरंतो दुक्खं, विट्ठाकूवम्मि पडणभवं ॥१३४३॥ जंबू पभणइ सो वि हु, अन्नाणवसेण पविसइ कहं पि । सन्नाणु त्ति अहं पुण, गब्भे न खिवेमि अप्पाणं" ॥१३४४॥ इय अट्ठहि भज्जाहिं, जंबूपहुणा वि तत्थ अन्नुन्नं । विहिपडिसेहकहाओ, कहिओ सोलस इमाओ ॥१३४५॥ "करिसगहत्थिकलेवर-वानरइंगालदाहयसियाले । विज्जाहरसंखधमे, सिलाजऊ दो य थेरीओ ॥१३४६॥ आसे गामउडसुए, वडवा मासाहसु त्ति पक्खी य । तिन्नि उ मित्ता माहण-सुया य ललियंगए चेव" ॥१३४७॥ एवं च जंबपहणो, विन्नाउं सुदिढनिण्णयं ताओ । पडिबोहं पत्ताओ, पियाउ तं खामिउं बिंति ॥१३४८।। जह नित्थरसि तुमं पहु !, नित्थारसु सहेव अम्हे वि । तूसंति मह प्याणो, न हि नियकुक्खिभरित्तेण ॥१३४९॥ अह सिरिजंबूपहुणो, पियराइं ससुरबंधवाओ वि । जंपंति तस्स पुरओ, इत्तो अम्हं पि पव्वज्जा ॥१३५०॥ पभवो वि भणइ बंधवं !, पियराणं साहिऊण सिग्घमहं । पव्वज्जाइ सहाओ, तुज्झ भविस्सामि निब्भंतं ॥१३५१॥ तो पभवं पइ जंपइ, जंबुपहू इय करेसु निव्विग्छ । मा पडिबंधं बंधव !, बंधुजणाणं करिज्जासु ॥१३५२॥ इत्तो य विभायाए , विभावरीए महासओ जंबू । संचरइ महिड्डिए , निक्खमणमहं समासज्ज ॥१३५३॥ 15 20 25 Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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