Book Title: Dharmvidhiprakaranam
Author(s): Shreeprabhsuri
Publisher: Bhadrankar Prakashan

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Page 392
________________ अष्टमं सद्धर्मफलद्वारम् तस्संगमसुहचिंता - कलियाए तद्दिणाउ ललियाए । नयरम्मि अन्नदियहे, जाओ कोमुइमहूसवो रम्मो ॥१३१५॥ चंदकरुज्जलसरवर-जलाइसस्सप्पसस्सखित्ताए । बहिभूमि राया, पत्तो पावद्धिलीलाए ॥१३१६॥ तइया विजणीभूए, समंतओ रायभवणमग्गम्मि । ती वि चेडियाए, ललिया ललियंगमाहवइ ॥१३१७॥ अह अंतेउरमेसा, तं देवीए विणोयमुद्दिसिउं । अहिणवजक्खप्पडिमा- छलेण पुरिसं पवेसेइ ॥१३१८॥ ललिया ललियंगो वि य, ताई चिरजायंसगमसुहाई । आलिंगंति परुप्पर-महियं वल्लीविडविणु व्व ॥१३१९॥ अणुमाणाओ एयं, अंतेउरक्खगेहिं विन्नायं । जह परपुरिसपवेसो, जाओ अंतेउरे नूणं ॥ १३२०॥ पिक्खता वि हु छलिया, वयं ति ते जाव चिंतयंति मणे । ता पावद्धि काउं, समागओ नरवई तत्थ ॥१३२१॥ ते मग्गिऊण अ छलं, नरवइणो विन्नवंति रहसि इमं । परनरपवेससंका, चिट्ठा अंतेउरे देव ! ॥ १३२२|| निस्संचारं चरणे, संठावंतो महीवई तत्तो । अंतेउरस्स मज्झे, पविसइ चोरु व्व एगागी ॥ १३२३ ॥ अह दारनिहियदिट्ठी, चेडी दूराउ तं समायंतं । दट्ठूण महीनाहं, देविं जाणावए झत्ति ॥१३२४॥ तो देवी दासी वि हु, तं नरमुप्पाडिउं विमग्गेण । गिहपुंजयं व बाहिं, सिग्घं चिय पक्खिवंति तया ॥१३२५ ॥ अह सो वि भवणपच्छिम - भागठिए असुइकूवर पडिओ । रहिओ य निलीइत्ता, तत्थेव गुहाइ घूउ व्व ॥१३२६॥ कूवम्मि तम्मि असुइ-द्वाणे दुग्गंध अणुभवाकिन्ने । पुव्वसुहं सुमरंतो, नरगावासे इव ठिओ सो ॥ १३२७|| Jain Education International 2010_02 For Private & Personal Use Only ३५७ 5 10 15 20 25 www.jainelibrary.org

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